पहलगाम की घटना ने बताया कौन दोस्त, कौन दुश्मन: नागपुर में विजयादशमी उत्सव पर बोले मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा—पहलगाम हमला हमें सिखा गया कि कौन सा देश भारत का सच्चा मित्र है और कौन सा दुश्मन।

पहलगाम की घटना ने बताया कौन दोस्त, कौन दुश्मन: नागपुर में विजयादशमी उत्सव पर बोले मोहन भागवत
RSS के स्थापना के 100 वर्ष पूरे ।
  • संघ में जातीय भेदभाव नहीं होता: रामनाथ कोविंद
  • मोहन भागवत और रामनाथ कोविंद ने की शस्त्र पूजा
  • आरएसएस मुख्यालय नागपुर के रेशमबाग मैदान में विजयादशमी उत्सव

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो गये हैं। आरएसएस अपना 100वां स्थापना दिवस विजयादशमी के मौके पर नागपुर के ऐतिहासिक रेशमबाग मैदान में भव्य आयोजन के साथ मनाया। इस अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पूर्ण गणवेश में मंच पर उपस्थित रहे।
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पहलगाम ने सिखाया दोस्त और दुश्मन की पहचान: भागवत 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए अपने 41 मिनट के भाषण में मोहन भागवत ने कहा- “22 अप्रैल को पहलगाम में सीमा पार से आए आतंकवादियों ने हिंदू धर्म पूछकर 26 भारतीय नागरिकों की हत्या की। इस हमले से पूरा देश शोक और आक्रोश में था। सरकार और सेना ने मजबूत जवाब दिया। इस घटना से हमें यह सिखा मिला कि कौन देश हमारा मित्र है और कौन दुश्मन।” उन्होंने कहा कि पहलगाम दुर्घटना हुई, धर्म पूछकर उनकी हत्या की गयी। उसके चलते पूरे देश में क्रोध और दुख था। सेना और सरकार ने पूरी तैयारी से जवाब दिया। सारे प्रकरण में हमारे नेतृत्व की दृढता का चित्र प्रकाशित हुआ। यदि हम सबके प्रति मित्रता रखेंगे लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए सजग रहना होगा।

आतंकवाद, विविधता और एकता पर संदेश
भागवत ने कहा कि भारत सबके साथ दोस्ती का भाव रखेगा, लेकिन सुरक्षा को लेकर सजग और शक्तिशाली रहना ज़रूरी है।संघ प्रमुख ने चेताया कि हिंसक आंदोलनों से उद्देश्य पूरे नहीं होते बल्कि अराजकता का माहौल बनता है, जिससे बाहरी ताकतें फायदा उठाती हैं। उन्होंने कहा कि भारत की विविधता ही उसकी ताकत है और आज उसे तोड़ने की कोशिशें हो रही हैं, जिसे रोकना होगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने जो नई टैरिफ नीति अपनाई उसकी मार सभी पर पड़ रही है। इसलिए दुनिया में आपसी संबंध बनाने पड़ते हैं। आप अकेले नहीं जी सकते लेकिन ये निर्भरता मजबूरी में न बदल जाए। इसलिए हमको इसको मजबूरी न बनाते हुए जीना बनाते हुए आत्मनिर्भर होना पड़ेगा।

हमारी विविधताओं को खत्म करने की कोशिश 
आरएसएस प्रमुख ने कहा, शाखा से स्वंयसेवकों में राष्ट्र के प्रति भक्ति का निर्माण होता है। किसी भी देश को ऐसा होना हो तो समाज में एकता चाहिए। हमारा देश विविधताओं का देश है। बीच के काल में आक्रमण हुए विदेश भारत आ गए। यहां के लोगों ने उनके पंत को स्वीकार किया,अंग्रेज चले गये लेकिन कुछ परंपराएं यहां रह गईं। अब हम उन परंपराओं का सम्मान कर रहे हैं। हम उन्हें पराया नहीं मानते। हम दुनिया की सभी परंपराओं का स्वागत करते हैं।

सब के अपने पूजा स्थान,उनका सम्मान होना चाहिए
भागवत ने कहा कि आज अपने देश में इन विविधताओं को भेद में बदलने की कोशिश चल रही है। सब अपनी जगह ठीक हैं हम एक ही हैं हम अलग नहीं है। एकता के चलते हमारा सबका आपस का व्यवहार सम्मानपूर्वक होना चाहिए। सब के अपने पूजा स्थान हैं। उनका सम्मान होना चाहिए। यहां सब साथ रहते हैं, जैसे बर्तन साथ रहते हैं, तो आवाज हो जाती है। समाज में इतने लोग हैं अगर छोटी बातों पर कुछ हो जाता है, सड़क पर निकल आयए, तो यह ठीक नहीं है। शासन प्रशासन अपना काम बिना पक्षपात के करते हैं, लेकिन समाज की युवा पीढ़ी को सजग होना पड़ेगा, क्योंकि ये अराजकता का व्याकरण है, इसे रोकना पड़ेगा। हमारा एकता का आधार हमारी विविधिता है। भारत की विशेषता है वो सर्व समाजसेवक है।
जैसा आपको देश चाहिए वैसा आपको होना पड़ेगा 
मोहन भागवत ने कहा, भाषण देने वालों को भी अपने जीवन में बदलाव लाना होगा। उन्हें उदाहरण देना पड़ेगा। जो समाज को अपना मानकर चलते हैं, वैसा नेतृत्व चाहिए। संघ का अनुभव है कि व्यक्ति निर्माण से समाज परिवर्तन और समाज परिवर्तन से व्यवस्था परिवर्तन होता है। उन्होंने कहा कि सब जगह ऐसा ही होता है। हर एक राष्ट्र में समाज का अपना तरीका था सब जगह खत्म हो गया लेकिन भारत में यह अभी भी चल रहा है। समाज के क्रियाकलापों से मुनष्य का निर्माण होता है आदत बदले बिना बदलाव नहीं आता। जैसा आपको देश चाहिए वैसा आपको होना पड़ेगा। संघ की शाखा ये आदत बदलने का तरीका है। 100 सालों में सबकुछ देखा संघ को राजनीति में आने का न्योता मिला लेकिन उसने नहीं किया। स्वयंसेवकों ने शाखा को हमेशा चलाया है। आदत बननी चाहिए, लेकिन छूटनी नहीं चाहिए।
शमाज को बदलना होगा ताकि सिस्टम बदल सके
मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया में बेचैनी है, उथल-पुथल है, इसके बीच दुनिया भारत से अपेक्षा कर रही है। नियति भी यही चाहती है कि भारत कोई हल निकालेगा। भारत उन्हें मार्गदर्शन देगा। पहली बात है कि दुनिया की व्यवस्था में परिवर्तन तो चाहिए, लेकिन सभी आगे चल रहे हैं। एकदम पीछे मुड़ेंगे तो गाड़ी पलट जाएगी, इसलिए धीरे-धीरे कदमों से पीछे पलटना होगा। तब इस व्यवस्था का सही से काम होगा।उन्होंने कहा कि दुनिया को धर्म की दृष्टि देनी होगी। यह सबको चलने वाला उन्नति वाला मार्ग दुनिया को देना होगा। ऐसा संघ भी मानता है। जैसा समाज है वैसी व्यवस्था चलेगी। इसलिए समाज को बदलना होगा ताकि सिस्टम बदल सके। समाज को नए आचरण में ढालना होता है।
बाहर की ताकतों को खेल खेलना का मौका मिलेगा 
संघ प्रमुख ने कहा - प्राकृतिक उथल-पुथल के बाद पड़ोसी देशों में भी उथल-पुथल देखने को मिल रही है। कभी-कभी होता है प्रशासन जनता को ध्यान में रखकर नीति नहीं बनाता, उनमें असंतोष होता है लेकिन उसका इस तरह से सामने आना वह ठीक नहीं है। इतनी हिंसा सही नहीं है। लोकतांत्रिक तरीके से बदलाव आता है।उन्होंने कहा कि ऐसे ही हिंसक परिवर्तनों से उद्देश्य नहीं मिलता बल्कि अराजकता की स्थिति में बाहर की ताकतों को खेल खेलना का मौका मिल जाता है। पड़ोसी देशों में ऐसा होना हमारे लिए चिंता का विषय है, क्योंकि वे पहले हमारे लोग ही थे। परिस्थिति ऐसी हैं कि सुख सुविधा बढ़ी, राष्ट्र पास आए,आर्थिक लेने देन के जरिए पास आए। मनुष्य जीवन में जंग और कलह चल रहे हैं अब परिवारों में भी टूटन आ रही है।
आजादी में महात्मा गांधी का भी प्रमुख योगदान 
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आज हम संघ के 100 साल पूरे होने के अवसर पर विजयादशमी कार्यक्रम में एकत्र हुए हैं। यह साल श्री गुरु तेग बहादुर के बलिदान का 350वां वर्ष है। हिंद की चादर बनकर जिन्होंने अन्याय से समाज की मुक्ति के लिए अपना बलिदान दिया। ऐसे विभूति का स्मरण इस साल होगा।" उन्होंने कहा,"आज गांधी जी की भी जयंती है। उनका योगदान अविस्मरणीय है। आजादी के बाद भारत का तंत्र कैसा चले उसके बारे में विचार देने वालों में उनका नाम था।"इस अवसर पर हम उनकी याद में श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।  उन्होंने कहा कि सादगी विनम्रता के प्रतीक, जिन्होंने देश के लिए प्राण दिए ऐसे ही एक लाल बहादुर शास्ती की भी जयंती है। परिस्थिति एक जैसी नहीं होती, अनेक रंगो जैसी होती है। हमारी आशाएं और विश्वास को मजबूत करता है।

RSS में जातीय भेदभाव नहीं: रामनाथ कोविंद
ष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी समारोह को संबोधित हुए चीफ गेस्ट पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा, "आज का विजयादशमी उत्सव आरएसएस की शताब्दी का प्रतीक है। नागपुर की पावन भूमि आधुनिक भारत की कुछ महान विभूतियों की स्मृतियों से जुड़ी है। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और डॉ. भीमराव अंबेडकर भी उनमें शामिल हैं। उन्होंने कहा कि समाज में यह भ्रांति है कि संघ में जातीय भेदभाव होता है, लेकिन ऐसा नहीं है। उन्होंने डॉ. हेडगेवार और डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों को एक जैसा बताया और कहा कि दोनों ने समाज को जोड़ने और एकता पर बल दिया।

दो डॉक्टरों का मेरे जीवन में अहम योगदान: रामनाथ कोविंद
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि उनकी जिंदगी पर दो डॉक्टरों की अमिट छाप रही है। एक हैं डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और दूसरे हैं डॉ. भीमराव आंबेडकर। उन्होंने कहा कि उनके जीवन निर्माण में इन दोनों महान विभूतियों का विशेष योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक हैं, जबकि डॉ. आंबेडकर ने इस देश को समृद्ध संविधान दिया, जिसकी बदौलत वह एक आमजन होते हुए भी देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंच सके।


आंबेडकर और हेडगेवार के विचार एक जैसे
उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर की चिंताएं और विचार प्रक्रिया डॉ. हेडगेवार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी ही थी। उन्होंने कहा कि जैसे आंबेडकर ने समाज के सभी वर्गों को जोड़ने पर जोर दिया था, उसी तरह संघ भी एकात्मता स्तोत्र के जरिए यही संदेश देता है। उन्होंने कहा कि संघ की समावेशी दृष्टि इसका प्रमाण है। रामनाथ कोविंद ने कहा कि हमारी इस एकता के आधार को बाबा साहब आंबेडकर ने inherent cultural unity (अंतर्निहित सांस्कृतिक एकता) कहा है। उन्होंने कहा कि हमें इसी सांस्कृतिक सामूहिक एकता की आधारशिला को कभी नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार नेसंघ की स्थापना के लिए सबसे शुभ और सार्थक दिन चुना।
पूर्व राष्ट्रपति ने सरसंघचालकों के योगदान भी गिनाये
वअपने संबोधन के दौरान रामनाथ कोविंद ने डॉक्टर हेडगेवार से लेकर मोहन भागवत तक संघ के अब तक के सफर में सरसंघचालकों के योगदान भी गिनाये। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी जी को उद्धृतद्धृ किया और एक सम्मेलन का उल्लेख करते हुए कहा कि अटल जी नेदलित विरोधी आरोपों पर स्पष्ट किया था कि हम मनुस्मृति के नहीं, बल्कि भीम स्मृति के अनुयायी हैं। यही भारत का संविधान है। भीम स्मृति से तात्पर्य संविधान से है, जिसका निर्माण बाबा साहब आंबेडर ने किया था।
1991 में संघ से हुआ पहला परिचय
कोविंद ने अपने जीवन के उन पलों को भी याद किया, जब संघ से उनका पहली बार परिचय हुआ था। उन्होंने कहा कि 1991 में वह बतौर बीजेपी कैंडिडेट कानपुर के घाटमपुर विधानसभा सीट से उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे। उसी समय चुनाव प्रचार के दौरान संघ के अधिकारियों और स्वयंसेवकों सेउनका पहली बार परिचय हुआ था। संघ के लोगों नेजातिगत भेदभाव से रहित होकर उनका चुनाव प्रचार किया था। उन्होंने कहा कि संघ में जातीय आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता बल्कि संघ सामाजिक एकता का पक्षधर रहा है। कोविंद ने कहा कि उनकी जीवन यात्रा में स्वयंसेवकों के साथ जुड़ाव और मानवीय मूल्यों से बड़ी प्रेरणा मिली है। इसका उल्लेख उन्होंने अपनी आत्मकथा में किया है, जो इस साल के अंत तक प्रकाशित हो जायेगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी समारोहशस्त्र पूजा और प्रदर्शन
शताब्दी वर्ष पर आयोजित इस कार्यक्रम में शस्त्र पूजा के साथ आधुनिक हथियारों की प्रतिकृतियां और ड्रोन भी प्रदर्शित किए गए। 21,000 से अधिक स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में पथ संचालन और घोष की प्रस्तुति दी। सुबह लगभग साढ़े सात बजेशुरू हुए इस समारोह में संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने सबसे पहले शस्त्र पूजा की, जो धर्मकी रक्षा और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इसके बाद योग प्रदर्शन, प्रात्यक्षिक, नियुद्ध, घोष और प्रदक्षिणा जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने मैदान को गुंजायमान कर दिया। शताब्दी वर्ष के कारण इस बार कार्यक्रम की भव्यता में तीन गुना वृद्धि हुई, जिसमें पूर्ण गणवेश में 21,000 सेअधिक स्वयंसेवक शामिल हुए। यह संख्या पिछले वर्षों से कहीं अधिक थी।