Shibu Soren: तीर-धनुष बैन हटाने के पीछे की कहानी, कैसे दिशोम गुरु ने सरकार को झुकाया
झारखंड में तीर-धनुष लेकर चलने पर लगे बैन को हटाने में शिबू सोरेन की भूमिका जानिए। कैसे दिशोम गुरु ने सरकार पर दबाव डाल ऐतिहासिक फैसला दिलवाया।

रांची। झारखंड के जननायकऔर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन, जिन्हें लोग प्यार से दिशोम गुरु कहते हैं, ने राज्य के आदिवासी समुदाय के लिए कई ऐतिहासिक फैसले दिलवाये हैं। इनमें सबसे अहम रहा तीर-धनुष लेकर चलने पर लगे प्रतिबंध को हटवाना।
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दरअसल, एक समय ऐसा था जब झारखंड (तब बिहार का हिस्सा) कोल्हान में गुवा गोलीकांड के बाद बिहार सरकार ने आदिवासियों के पारंपरिक हथियार तीर-धनुष लेकर चलने पर बैन लगा दी थी। सरकार का तर्क था कि इससे हिंसक घटनाओं में बढ़ोतरी हो सकती है। लेकिन इस फैसले ने आदिवासी समाज में गुस्सा भर दिया, क्योंकि तीर-धनुष उनकी संस्कृति, परंपरा और पहचान का अहम हिस्सा है।
शिबू सोरेन ने चाईबासा में जनसभा कर पहली बार सरकारी पाबंदी को नहीं मानते हुए पारंपरिक हथियार तीर-धनुष के साथ शामिल हुए थे।इसके बाद उन्होंने बिहार गवर्नमेंट प्रेशर बना कर तीर-धनुष पर लगाई गई पाबंदी को हटावाया था। यह जानकारी गुवा गोलीकांड की घटना के प्रत्यक्षदर्शी सह झारखंड आंदोलनकारी भुवनेश्वर महतो ने दी है। उन्होंने कहा कि गुवा गोली कांड से पूर्व ग्रामीण जंगलों में अपने गांवों की जमीनों पर दखल करने और वहां जंगल काटकर फिर से खेती की तैयारी कर रहे थे।
वन विभाग के विरोध में शुरू हुआ आंदोलन
वन विभाग की टीम ने वर्ष 1980 की अग्सत माह में जंगल काटने के आरोप में 108 ग्रामीणों को गिरफ्तार करके गुवा पुलिस स्टेशन ले गया। झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़े नेता मछुवा गागराई, सूलापुर्ती, मोरा मुंडा, देवेंद्र मांझी, बहादुर उरांव आदि इस आंदोलन के नेतृत्व में थे।
पुलिस की गोली मारे गये आदिवासी
भुवनेश्वर ने बताया कि सूला पुर्ती ने गिरफ्तारी के खिलाफ गुवा पुलिस स्टेशन घेराव की योजना बनायी। देवेन्द्र मांझी ने बहादुर उरांव और उन्हें आंदोलन का नेतृत्व के लिए गुवा भेजा। गुवा अयरपोर्ट में आठ सितंबर 1980 को लोगों की भीड़ जुटी। मांग-पत्र बनाया गया। लोग बाजार में मीटिंग के लिए आगे बढ़े।लोगों की मांग थी कि 108 गिरफ्तार लोगों को रिहा करो, पुलिस जुल्म बंद करो, गुवा-जामदा के मजदूरों को स्थायी करो, जमीन के लिए मुआवजा दो और झारखंड प्रांत अलग करो। मांग पत्र सौंपने के बाद मीटिंग में लगभग पांच हजार लोग जुटे थे। पुलिस ने मिटिंग खत्म करने को बोल कर लाठीचार्ज करना शुरू कर दिया। भीड़ में फायरिंग की गयी। जीतू सोरेन और बागी देवगम इसी गोलीकांड में मारे गये। इसके खिलाफ आंदोलनकारियों की ओर से तीर चलने लगे। आधा घंटे तक तीर-गोली की एनकाउंटर चलती रही। इसके बाद भी नौ घायलों को हॉस्पिटल इलाज के लिए ले जाया गया, वहां पुलिस वालों ने घायलों पर गोली चला दी, जिससे नौ लोगों की मौत हो गयी। इसके बाद आदिवासियों के पारंपारिक हथियार तीर-धनुष पर तत्कालीन बिहार सरकार ने पाबंदी लगा दी।
आंदोलन का मोर्चा शिबू सोरेन ने संभाला
आदिवासियों पर हुए जुल्म की जानकारी होते ही दिशोम गुरु शिबू सोरेन एक्टिव हो गये। चाईबासा में 10 अक्टूबर 1980 को आमसभा आयोजित की गयी। आमसभा को रोकने के लिए प्रशासन के द्वारा 144 धारा लगा दी गयी थी, बावजूद बैरिकेड तोड़कर 10-15 हजार लोग सभा में शामिल हुए। बाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सरकार पर दबाव डालकर तीर-धनुष पर से पाबंदी हटवायी।
शिबु सोरेन ने पत्तल के प्लेट में खाया था खाना
झारखंड आंदोलनकारी रहे मो. बारिक ने पहली जनवरी 1992 को याद करते हुए कहते हैं। खरसावां गोलीकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने दिशोम गुरु शिबू सोरेन आये हुए थे। उस दौरान झामुमो के जिला अध्यक्ष कैप्टन कुदादा थे। जबकि मुझे जिला उपाध्यक्ष का पद दिया गया था। गुरुजी ने खबर भेजवाया कि चाईबासा सर्किट हाउस में भोजन का इंतजाम करके रखो। चाईबासा सर्किट हाउस में सभी के लिए भोजन का इंतजाम किया गया। गुरुजी के साथ चाईबासा के सांसद कृष्णा मार्डी, विधायक हेबर गुड़िया समेत अन्य लोगों के साथ दोपहर तीन बजे चाईबासा सर्किट हाउस पहुंचे।उनको भोजन लगाने के लिए प्लेट लगाया जा रहा था, तो उन्होंने स्टील के प्लेट को देखा और कहा कि इसे हटा लो और पत्तल के प्लेट में खाना लगाओ, क्योंकि गुरुजी सादा भोजन करते थे। इसलिए सभी को स्टील के प्लेट को हटा कर पत्तल का प्लेट लगाया गया। सभी लोग खाना खाकर कुछ देर आराम करने के बाद वापस जमशेदपुर लौट गये।बारिक ने कहा कि सर्किट हाउस में कई लोगों से मिल कर उनकी समस्या की जानकारी लिये और लोगों को एकजुट होकर रहने का निर्देश दिया था।