झारखंड: दिल्ली दरबार ही तय हुआ कांग्रेस जिला अध्यक्ष का नाम, प्रदेश अध्यक्ष समेत कई MLA को झटका

कांग्रेस दावा करती रही है कि पार्टी के जिलाध्यक्ष का चुनाव कार्यकर्ताओं के विचार एवं टैलेंट हंट से होगा। जिलाध्यक्ष बनने के लिए इस बार दिल्ली दरबार का चक्कर नहीं लगाना होगा। टैलेंट हंट से लेकर कार्यकर्ताओं से विचार विमर्श भी हुआ, लेकिन जिलाध्यक्षों की घोषणा दिल्ली दरबार में से हुई है।

झारखंड: दिल्ली दरबार ही तय हुआ कांग्रेस जिला अध्यक्ष का नाम, प्रदेश अध्यक्ष समेत कई MLA को झटका

रांची। कांग्रेस दावा करती रही है कि पार्टी के जिलाध्यक्ष का चुनाव कार्यकर्ताओं के विचार एवं टैलेंट हंट से होगा। जिलाध्यक्ष बनने के लिए इस बार दिल्ली दरबार का चक्कर नहीं लगाना होगा। टैलेंट हंट से लेकर कार्यकर्ताओं से विचार विमर्श भी हुआ, लेकिन जिलाध्यक्षों की घोषणा दिल्ली दरबार में से हुई है। 

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25 जिलाध्यक्षों में एक भी मुस्लिम नहीं
झारखंड में कांग्रेस के 25 जिला अध्यक्षों की जो लिस्ट जारी की गयी हैं उसमें एक भी मुस्लिम नहीं है। इसको लेकर सुगबुहाट शुरु हो गयी है। जिलाध्यक्ष के दावेदारों ने भी दिल्ली दरबार की दौड़ लगानी शुरू कर दी थी। सभी दावेदार दिल्ली दरबार के अपने-अपने आकाओं को सेट करने में लगे थे।नये जिला अध्यक्षों के चयन में पूरी तरह प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय की चली है।

धनबाद में प्रदेश अध्यक्ष की पसंद सुल्तान अहमद पिछड़ गये

झारखंड कांग्रेस के प्रसिडेंट राजेश ठाकुर, बेरमो एमएलए कुमार जयमंगल सिंह, झरिया एमएलए पूर्णिमा नीरज सिंह, जामाताड़ा एमएलए इरफान अंसारी समेत कई एमएलए के करीबी को जिला अध्यक्ष बनने का मौका नहीं मिला है। प्रदेश अध्यक्ष समेत कई एमएलए लोकसभा चुनाव को लेकर अपने पसंद की जिला अध्यक्ष चाह रहे थे लेकिन मौका नहीं मिल सका है। धनबाद में प्रदेश अध्यक्ष की पसंद में जिला अध्यक्ष के लिए टॉप पर सुल्तान अहमद व झरिया एमएलए के पसंद किसी अन्य नेता थे। लेकिन संतोष सिंह ने बाजी मार ली। हालांकि संतोष का प्रदेश अध्यक्ष से भी बेहतर संबंध है। संतोष सिंह व झरिया एमएलए पूर्णिमा नीरज सिंह में छत्तीस का रिश्ता जगजाहिर है। संतोष सिंह को प्रमुख रुप से सीनीयर कांग्रेस लीडर अजय दूबे समेत अधिकांश नेताओं का समर्थन मिला है।

रवींद्र वर्मा को लगा बड़ा झटका, कार्यकारी अध्यक्ष की भी कुर्सी गयी

बोकारो में बेरमो एमएलए अपने मन के जिला अध्यक्ष की कोशिश में थे लेकिन ऐसा नहीं हो सका। रांची में सुबोधकांत सहाय की चली है। गिरिडीह में एक्स एमपी तिलकधारी प्रसाद सिंह के पुत्र को जिला अध्यक्ष बनाया गया है।  धनबाद में जिलाध्यक्ष के गंभीर दावेदारों में  पुराने नेता मदन महतो, ललन चौबे, संतोष कुमार सिंह, अशोक कुमार सिंह, सुल्तान अहमद, शमशेर आलम, रविंद्र वर्मा एवं वैभव सिन्हा शामिल थे। प्रदेश नेतृत्व का जोर सुल्तान अहमद पर है। इधर सुल्तान अहमद के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा शमशेर आलम रहे। शमशेर आलम कांग्रेस में लंबे समय से सक्रिय हैं। पिछले नगर निगम चुनाव के मेयर चुनाव में दूसरे नंबर पर रहकर शमशेर ने सभी को चौंका दिया था।शमशेर का कहना था कि वह ओबीसी अंसारी समुदाय से हैं और जिसकी आबादी मुस्लिमों में सर्वाधिक है। सुल्तान सवर्ण समुदाय से आते हैं, मुस्लिम समाज में उसकी आबादी बहुत ही कम है। इसे देखते हुए भी जिलाध्यक्ष के लिए उनका चयन होना चाहिए। इंटक के झारखंड अध्यक्ष राकेश्वर चौबे समेत प्रदेश के कई नेता ललन चौबे के समर्थन में थे। मदन महतो के समर्थन में पूर्व मंत्री मन्नान मल्लिक थे।