Brahmeshwar mukhiya murder case : ब्रह्मेश्वर मुखिया मर्डर केस में CBI ने नहीं पेश की डायरी, अगली सुनवाई एक फरवरी को

बिहार के बहुचर्चित ब्रह्मेश्वर मुखिया मर्डर केस में आरा के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (तृतीय) ने अगली सुनवाई के लिए एक फरवरी की तारीख तय की है। हालांकि, इस मामले की जांच कर रही सीबीआइ ने डायरी पेश नहीं की है। सीबीआइ द्वारा पूरक चार्जशीट दाखिल किए जाने के बाद बुधवार को दूसरी तारीख थी।

Brahmeshwar mukhiya murder case : ब्रह्मेश्वर मुखिया मर्डर केस में CBI ने नहीं पेश की डायरी, अगली सुनवाई एक फरवरी को
ब्रह्मेश्वर मुखिया (फाइल फोटो)।
  • एक्स एमएलसी हुलास पांडे समेत आठ लोगों को सीबीआई ने बनाया है आरोपित 

पटना। बिहार के बहुचर्चित ब्रह्मेश्वर मुखिया मर्डर केस में आरा के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (तृतीय) ने अगली सुनवाई के लिए एक फरवरी की तारीख तय की है। हालांकि, इस मामले की जांच कर रही सीबीआइ ने डायरी पेश नहीं की है। सीबीआइ द्वारा पूरक चार्जशीट दाखिल किए जाने के बाद बुधवार को दूसरी तारीख थी।

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एक्स एमएलसी हुलास पांडेय की मुश्किलें बढ़ीं... ,CBI की चार्जशीट ने कई लोगों में पैदा किया डर
रणवीर सेना सुप्रीमो ब्रह्मेश्वर मुखिया मर्डर केस में सीबीआई द्वारा कोर्ट में दायर चार्जशीट में आरोपित बनाये गये नेम्ड लोगों को परेशान बढ़ने वाली है।  सीबीआई ने इस कांड में कुल आठ लोगों के विरुद्ध चार्जशीट दायर किया है। इसमें एक्स एमएलसी हुलास पांडेय के अलावा अभय पांडेय, नंद गोपाल पांडेय उर्फ फौजी, रीतेश कुमार उर्फ मोनू, अमितेश कुमार पांडेय उर्फ गुड्डू पांडे, प्रिंस पांडेय, बालेश्वर पांडेय और मनोज राय उर्फ मनोज पांडेय का नाम शामिल है। मुखिया पुत्र से लेकर कंट्रेक्टर तक है। इनमें नंदगोपाल पांडेय उर्फ फौजी, प्रिंस पांडेय अभय पांडेय एवं रितेश उर्फ मोनू के नाम राज्य पुलिस के आरोप-पत्र में भी थे जो पूर्व में कोर्ट से बेल पर छूटे थे। जबकि, हुलास पांडेय, अमितेश पांडेय उर्फ गुड्डू , बालेश्वर राय एवं मनोज राय इस मामले में बेल पर नहीं है। ऐसे में अदालत में उपस्थित होने को लेकर समन या नोटिस कभी भी जारी हो सकता है। 
राजनीतिक प्रतिशोध में की गई थी बरमेश्वर मुखिया की मर्डर
रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर सिंह उर्फ बरमेश्वर मुखिया की मर्डर राजनीतिक प्रतिशोध में की गई थी। यह दावा केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) ने आरा जिला एवं सत्र न्यायालय के सेशन जज-तृतीय के कोर्ट में दायर 24 पन्नों के पूरक आरोप पत्र (चार्जशीट) में किया है। सीबीआई के डीएसपी वी. दीक्षित ने हत्या आर्म्स एक्ट एवं साजिश अधिनियम के तहत यह आरोप पत्र दाखिल किया है।
राजनीतिक पतन का डर बना मर्डर का कारण
सीबीआई ने चार्जशीट में उल्लेख किया है कि जांच से पता चला है कि ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह उर्फ ब्रह्मेश्वर मुखिया रणवीर सेना के प्रमुख थे।र 1990 के दशक के दौरान वे कथित तौर पर सामूहिक हत्या के मामलों में अगस्त 2002 से जेल में थे। जुलाई 2011 में जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने किसान और मजदूरों को एकजुट करना शुरू कर दिया था। उन्हें एक छत के नीचे लाते हुए एक राष्ट्रवादी किसान संगठन का गठन किया था। आरोप है कि सक्रियता बढ़ने के बाद प्रतिद्वंदी के आंखों की किरकिरी बनने लगे। इसके बाद षड्यंत्र रचा गया। एक जून 2012 की सुबह बजे जब वे कतीरा आवास के पास टहल रहे थे तभी शरीर में छह गोलियां दाग कर उनकी मर्डर कर दी गई थी। पुत्र इंदु भूषण ने आरा के नवादा पुलिस स्टेशन में नेम्ड एफआइआर दर्ज कराई थी। एक साल बाद 2013 में राज्य सरकार ने इस हत्याकांड की जांच सीबीआइ को सौंप दी थी।

पूरक चार्जशीट के अनुसार सीबीआई को जांच में पता चला कि जुलाई, 2011 में जेल से बाहर आने के बाद बरमेश्वर मुखिया की बक्सर, भोजपुर, रोहतास, जहानाबाद, गया और औरंगाबाद जिलों में विशेष जाति, किसान और मजदूरों के बीच बढ़ती लोकप्रियता से प्रतिद्वंद्वी के राजनीतिक करियर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना शुरू हो गया था। सीबीआई ने चार्जशीट में कहा है कि बरमेश्वर मुखिया ने इन क्षेत्रों के किसान और मजदूरों को एकजुट करना शुरू कर दिया था और राष्ट्रवादी किसान संगठन का गठन किया था।
साक्ष्य के तौर पर उल्लेख  है कि उस समय हुलास पांडेय का समर्थन क्षेत्र भी भोजपुर, बक्सर और रोहतास जिलों में मुख्य रूप से एक ही समुदाय विशेष के बीच था। उन्होंने 2010 में आरा-बक्सर स्थानीय निकाय से एमएलसी (विधान पार्षद) का चुनाव जीता था। सीबीआई के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि अपने राजनीतिक पतन के डर से एक्स एमएलसी हुलास पांडेय ने अभय पांडेय, नंद गोपाल पांडे उर्फ फौजी, रितेश कुमार उर्फ मोनू सिंह, अमितेश कुमार पांडे उर्फ गुड्डु पांडे, प्रिंस पांडे, बालेश्वर रा मनोज के साथ मिलकर मर्डर की साजिश रची है।
स्कॉर्पियो से उतरने के बाद पकड़ लिया हाथ, फिर दाग दीं छह-छह गोलियां
सीबीआई ) ने आरा जिला एवं सत्र न्यायालय के सेशन जज-तृतीय के कोर्ट में दायर 63पन्नों के पूरक आरोप-पत्र में किया है। जांच में पता चला है कि जुलाई, 2011 में जेल से बाहर आने के बाद बक्सर, भोजपुर, रोहतास, जहानाबाद, गया और औरंगाबाद जिलों में विशेष जाति, किसान और मजदूरों के बीच उनकी बढ़ती लोकप्रियता से प्रतिद्वंदी के राजनीतिक करियर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना शुरू हो गया था।

वर्ष 2016 में पकड़ा गया आरोपी फौजी( फाइल फोटो)
ऐसे दिया गया था घटना को अंजाम
सीबीआई ने अपने जांच यह खुलासा किया है कि एक जून, 2012 की सुबह चार बजे हुलास पांडेय, अभय पांडेय, नंद गोपाल पांडे उर्फ फौजी, रितेश कुमार उर्फ मोनू, मनोज राय उर्फ मनोज पांडे बालेश्वर राय एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। अमितेश कुमार पांडे उर्फ गुड्डु पांडे एवं प्रिंस पांडे कतीरा मोड़ के पास थे। हुलास पांडेय और बालेश्वर राय स्कार्पियो में थे, मनोज राय गाड़ी चला रहे थे। जबकि, अभय पांडे, नंद गोपाल पांडे उर्फ फौज, रितेश कुमार मोनू, अमितेश कुमार पांडे उर्फ गुड्डु पांडे और प्रिंस पांडेय पैदल थे। मुखिया को उनके घर के पास नियमित की तरह टहलते देखा तो मनोज राय उर्फ मनोज पांडेय ने पहले उन्हें स्कार्पियो में बुलाया। ब्रह्मेश्वर सिंह मुखिया को स्कार्पियो की बीच वाली सीट पर बैठाया गया।

रणवीर सेना सुप्रीमो की निकली शव यात्रा।
सीबीआई ने जांच में पाया है कि घर की ओर जाने वाली गली के ठीक आगे स्कार्पियो राेकने के बाद ब्रह्मेश्वर मुखिया और हुलास पांडेय स्कार्पियो से उतरे और शेष पांच अन्य व्यक्ति अभय पांडे, नंद गोपाल पांडे उर्फ फौजी, रितेश कुमार उर्फ मोनू, अमितेश कुमार पांडे उर्फ गुड्डु पांडे और प्रिंस पांडे पैदल ही उनका पीछा करते हुए उनके पास पहुंच गए। नंद गोपाल पांडेय उर्फ फौजी और अभय पांडे ने ब्रह्मेश्वर मुखिया के दोनों हाथ पकड़ लिए और हुलास पांडेय ने अपनी पिस्तौल से मुखिया पर छह राउंड फायर किए। जिससे वे जमीन पर गिर गये। मुखिया की मर्डर के बाद बाकी लोग भी घटनास्थल के आसपास थे और गुड्डु पांडे अपने हाथों में एके-47 लेकर सड़क पर खड़ा था। हुलास पांडे और बालेश्वर राय वहां से मनोज राय के साथ स्कॉर्पियो में आरा रेलवे स्टेशन की ओर चले गए और बाकी लोग अभय पांडे, नंद गोपाल पांडे उर्फ फौजी, प्रिंस पांडे, अमितेश कुमार पांडे गुड्डु पांडे और रितेश कुमार उर्फ मोनू वहां से पैदल भाग गये।

सीबीआई ने 30 लोगों को बनाया गया गवाह
सीबीआई ने ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड को लेकर जो पूरक चार्जशीट दाखिल किया है उसमें 30 लोगों को गवाह बनाया है। इसमें मुखिया पुत्र इंदु भूषण एवं ओम नारायण राय के अलावा करीब 12 आम लोगों, सदर अस्पताल के चार डाॅक्टर एवं एफएसएल के जांच पदाधिकारी समेत पुलिस एवं सीबीआई के सब इंस्पेक्टर एवं डीएसपी से लेकर 13 अफसर गवाह बनाये गये है। एफएसएल का जांच रिपोर्ट एवं पोस्टमार्टम रिपोर्ट आदि को संलग्न किया गया है।

ब्रह्मेश्वर मुखिया मर्डर केस  के कौन आरोपित कहां के निवासी
हुलास पांडेय : मूल गांव नावाडीह, काराकाट, रोहतास, वर्तमान पटना
अभय पांडेय : मूल गांव नंदपुर, ब्रह्मपुर, बक्सर, वर्तमान, कतीरा, आरा
नंद गाेपाल पांडेय : जोगियां, बिक्रमगंज, रोहतास
रितेश उर्फ मोनू सिंह : मूल गांव कुरमुरी, सिकरहटा, भोजपुर, वर्तमान जमेशदपुर, झारखंड
अमितेश पांडेय उर्फ गुड्डू : मूल गांव इमादपुर, भोजपुर, वर्तमान गोला राेड, पटना
प्रिंस पांडेय : मूल गांव नंदपुर-ब्रह्मपुर, बक्सर, वर्तमान कतीरा, नवादा
बालेश्वर राय : मूल गांव चासी नारायणपुर, वर्तमान पता तिलक नगर, कतीरा, आरा
मनोज राय उर्फ मनोज पांडेय : मूल गांव, नावाडीह काराकाट, रोहतास

हुलास पांडेय ने लोजपा (रामविलास) के प्रदेश संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष पद से दिया इस्तीफा
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रदेश संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हुलास पांडेय ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने यह कदम रणवीर सेना के प्रमुख रहे ब्रह्ममेश्वर मुखिया हत्याकांड की सीबीआई जांच के बाद आरा व्यवहार न्यायालय में समर्पित चार्जशीट में अपना नाम आने पर उठाया है। उन्होंने कहा कि मैंने नैतिकता के आधार पर पार्टी के प्रदेश संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिया है। पटना में पार्टी ऑफिस में पत्रकारों से बातचीत में हुलास पांडेय ने अपने ऊपर लगे आरोप को निराधार बताया। उन्होंने कहा कि ब्रह्ममेश्वर मुखिया से कभी मेरा संबंध नहीं रहा है।
सीबीआई के आरोपों को चुनौती देंगे 
हुलास ने कहा कि लगता है किसी ने जांच एजेंसी को गुमराह किया है। मुझे चार्जशीट की सूचना मीडिया से मिली है। मेरे खिलाफ सीबीआई द्वारा न्यायालय में समर्पित पूरक चार्जशीट (आरोप पत्र) न्यायसंगत नहीं है। हम न्यायालय की शरण में जाएंगे और अपने ऊपर लगे आरोप को चुनौती देंगे। हुलास ने पत्रकारों से कहा कि मुझे न्यायालय पर पूरा भरोसा है कि मुझे इंसाफ मिलेगा। उन्होंने यह भी बताया कि घटना के दिन मैं अपने पटना स्थित सरकारी आवास पर था और सरकार द्वारा प्रतिनियुक्त कई अंगरक्षक मेरे साथ थे। फिर भी 10 वर्षों के बाद मेरा नाम अप्रत्याशित ढंग से आरोप पत्र में जोड़ा गया।

फ्लैश बैक
एक जून पर वर्ष  2012 की घटना है। सुबह के सवा चार बजे बिहार के शाहबाद का भोजपुर जिला उसके खोपिरा गांव के निवासी ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह उर्फ मुखिया जिसे जल्दी उठने की आदत थी। वे सूर्योदय से पहले उठ जाया करते थे और मॉर्निग वॉक किया करते थे। नौ साल की लंबी जेल की सजा काटने के बाद बाहर आये मुखिया सुबह की सैर पर निकलते हैं। महज अपने घर से 200 मीटर की दूरी पर छह लोगों द्वारा उन पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई जाती है। घटनास्थल पर ही ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह की मौत हो जाती है। इसके बाद का वो काला दिन बिहार के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाता है। मगध का क्षेत्र हो या शाहबाद का क्षेत्र तमाम जो उनके समर्थक थे वो तीन लाख से ज्यादा की संख्या में उनकी शवयात्रा में शरीक होते हैं। पुलिस प्रशासन पूरी तरह से उस दिन लाचार सी दिखती है।

भोजपुर से पटना तक मचा तांडव

मुखिया की मर्डर से बिहार से लेकर दिल्ली तक सियासत गर्मा गई। आरा समेत पटना, औरंगाबाद, जहानाबाद और गया जिला समेतत अन्य जगहों पर उपद्रव औऱ हिंसा देखने को मिली। आरा में सरकारी तंत्र को निशाने पर लिया गया। स्टेशन से लेकर सर्किट हाउस तक को आग के हवाले कर दिया गया। आरा में भीड़ ने तत्कालीन डीजीपी अभयानंद पर भी हमला बोलने की कोशिश की थी और उनपर हाथ तक उठा दिया था। बीजेपी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सीपी ठीकुर और पूर्व विधायक रामाधार शर्मा पर हमला हुआ। ऐसा लग रहा था मानो पूरा बिहार उस वक्त बेबस हो चुका था।

कौन थे ब्रह्मेश्वर मुखिया

साल 1917 की बात है, उस वक्त ब्रह्मेश्वर सिंह मुखिया का जन्म भी नहीं हुआ था। लेकिन ये साल बेहद ही महत्वपूर्ण है। वजह है कि रणवीर चौधरी जिनके नाम पर रणवीर सेना की स्थापना होती है। शाहबाद का जो भोजपुर का क्षेत्र है वहां राजपूतों का वर्चस्व था। उनके हाथों से जमीन छीनकर भूमिहारों को सुपर्द किया जाता है। रणवीर चौधरी उनका नाम था जिसे भूमिहारों का मसीहा माना जाता था। उन्हीं के नाम पर साल 1994 में रणवीर सेना की स्थापना होती है। 1967 में बंगाल के नक्सलबाड़ी से नक्सल आंदोलन शुरू होता है। बंगाल के जमींदारों की जमीन पर लाल झंडा गाड़ दिया जाता था। यहीं से नक्सल आंदोलन शुरू होता है जो बिहार पहुंचते-पहुंचते इतना भयानक रूप ले लेता है कि सिर्फ 1990 से साल 2002 के बीच में चार दर्जन से ज्यादा खूनी नरसंहार हो जाते हैं। जिसमें सभी तबके के लोग मारे जाते हैं। ब्रह्मेश्वर मुखिया का जन्म खोपिरा गांव में हुआ। वो अपने गांव के मुखिया थे। रणवीर सेना और मुखिया पर आरोप लगा कि बारा और सेनारी का बदला लेने के लिए 1997 की 1 दिसंबर को लक्ष्मणपुर बाथे में 58 लोगों को मौत के घाट उतारा गया। इसके बाद बथानी टोला समेत कुछ और नरसंहारों में भी रणवीर सेना पर आरोप लगे। 29 अगस्त 2002 को पटना के एक्जीबिशन रोड से ब्रह्मेश्वर मुखिया को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। ब्रह्मेश्वर मुखिया को उस वक्त तक 277 लोगों की हत्या और उनसे जुड़े 22 अलग-अलग मामलों का आरोपी बनाया गया था। 9 साल जेल की सजा काटने के बाद आठ जुलाई 2011 को उनकी रिहाई हुई। जेल से छूटने के बाद ब्रह्मेश्वर मुखिया ने 5 मई 2012 को अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन के नाम से संस्था बनाई और कहा कि वो मुख्यधारा में आकर अब किसानों के हित की लड़ाई लड़ेंगे।