बिहार: विजय कुमार सिन्हा बने नेता प्रतिपक्ष , सम्राट चौधरी को BJP ने विधान परिषद में नेता बनाया

बिहार विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते ही विजय सिन्हा को बीजेपी ने विधान मंडल दल का नेता घोषित कर बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी। विधान परिषद में पार्टी ने सम्राट चौधरी को नेता घोषित किया है। विधानसभा उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी ने बताया कि विजय सिन्हा को नेता विरोधी दल के रूप में मान्यता दे दी गई है।

बिहार: विजय कुमार सिन्हा बने नेता प्रतिपक्ष , सम्राट चौधरी को BJP ने विधान परिषद में नेता बनाया
  • जातीय समीकरण के साथ नीतीश को जवाब देने में फिट हों सिन्हा
  • सम्राट से कुशवाहा में पैठ बनायेगी बीजेपी

पटना। बिहार विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते ही विजय सिन्हा को बीजेपी ने विधान मंडल दल का नेता घोषित कर बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी। विधान परिषद में पार्टी ने सम्राट चौधरी को नेता घोषित किया है। विधानसभा उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी ने बताया कि विजय सिन्हा को नेता विरोधी दल के रूप में मान्यता दे दी गई है।

यह भी पढ़ें:बिहार:नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार ने जीता विश्वासमत, 160 MLA ने किया समर्थन,BJP का वॉकआउट

विजय सिन्हा के माध्यम से बड़ा संदेश देने की कोशिश
विपक्ष की भूमिका में पहुंचने के बाद विजय सिन्हा और सम्राट चौधरी को सदन में प्रतिनिधित्व देकर बीजेपी ने बड़ा संदेश दिया है। बीजेपी के इस पहल को सर्व समाज को साधने का प्रयास माना जा रहा है। विजय सिन्हा सवर्ण समाज और सम्राट चौधरी अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं। बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष के पद पर पहले से पिछड़ा समाज के डा. संजय जायसवाल को बिठा रखा है। वहीं, अभी पार्टी की ओर से  दोनों सदन में विपक्ष के मुख्य सचेतक और उप मुख्य सचेतक के नाम की घोषणा बाकी है। दोनों सदन में इन और चार पदों के जरिए पार्टी सामाजिक संतुलन को साधने का प्रयास करेगी। फिलहाल विजय सिन्हा और सम्राट चौधरी को प्रतिनिधित्व देकर बीजेपी ने सत्ता पक्ष के आधार वोट बैंक में सेंध लगाने का काम किया है।
सुबह स्पीकर थे, शाम में नेता विपक्ष बन गये
बुधवार की सुबह तक बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय सिन्हा बुधवार की शाम होते-होते विधानसभा में नेता विपक्ष बन गए। एनडीए सरकार में डिप्टी सीएम बीजेपी विधायक दल के नेता तारकिशोर प्रसाद और उपनेता रेणु देवी नेता विपक्ष के रेस में पिछड़ गये। बतौर स्पीकर ही नीतीश कुमार से सदन में भिड़ गए विजय सिन्हा ने नेता विपक्ष पद की बाजी मार ली। कहा जा रहा है कि विजय सिन्हा को नीतीश से विधानसभा में टकराने के बाद नीतीश के विरोध के चेहरे के तौर पर देखा जा रहा था। इसे पार्टी ने समुचित तौर पर स्वीकार कर लिया है।

ऐसे विजय सिन्हा बने नेता विपक्ष
विजय सिन्हा और नीतीश कुमार का विधानसभा में टकराना संसदीय इतिहास के लिए भले एक खराब उदाहरण हो जब दोनों एक-दूसरे को परंपरा और नियम समझा रहे थे। लेकिन यह सीधी तकरार विजय सिन्हा के पक्ष में गई। पहले भी जब 2020 में विधानसभा अध्यक्ष के लिए नाम चला था तो नंद किशोर यादव से प्रेम कुमार तक का नाम चला था लेकिन आखिर में पार्टी ने विजय सिन्हा को चुना। पार्टी की नजर विजय सिन्हा पर पहले से थी।बीजेपी ने बिहार में नया नेता और नेतृत्व उभारने के मकसद से सुशील कुमार मोदी को राज्यसभा मेंबर बना दिल्ली बुला लिया। नंद किशोर यादव और प्रेम कुमार तक को किनारे कर दिया लेकिन पिछले दो साल में नीतीश सरकार में शामिल भाजपा के मंत्री उस अपेक्षा पर खरे नहीं उतर पाए। ऐसे में जब नीतीश कुमार महागठबंधन सरकार के मुखिया बन गये तो नीतीश के खिलाफ सबसे मजबूत चेहरा के तौर पर पार्टी को विजय सिन्हा से बेहतर कोई विकल्प नहीं दिखा।

विजय सिन्हा के बहाने नाराज भूमिहारों को संदेश

विजय सिन्हा भूमिहार जाति से आते हैं। इस जाति को बिहार में बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है। बिहार में सवर्णों का ज्यादातर वोट लगातार कई चुनावों से मिल रहा है। भूमिहार जाति से बीजेपी ने बिहार से गिरिराज सिंह को सेंट्रल मिनिस्टर बना रखा है। नीतीश की नई सरकार के कैबिनेट विस्तार में जेडीयू के चार एमएलए शामिल नहीं हुए थे और संयोग से वो चार भूमिहार जाति से ही थे।विजय कुमार सिन्हा (54) लखीसराय से तीन बार के एमएलए हैं। बिहार विधानसभा अध्यक्ष से पहले राज्य सरकार में श्रम संसाधन मंत्री रह चुके हैं। भूमिहार समाज से आनेवाली विजय सिन्हा की छवि सदन में अपनी बातों को बेबाक तरीके से रखने की है। 15 साल की उम्र में ही ये राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गये थे। कॉलेज के दिनों में ये छात्रसंघ के विभिन्न पदों का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 74 एमएलए वाली BJP को एक ऐसा नेता चाहिए था जो सामने से अटैक करें। इसमें विजय कुमार सिन्हा सबसे फिट बैठ रहे थे। पार्टी की तरफ से दो डिप्टी CM बनाए गए थे, लेकिन दोनों के पास फिलहाल इस स्तर की क्षमता नहीं थी कि वे CM नीतीश कुमार की आंख में आंख डालकर बात कर सकें।

एंटी लालू वोट के लिए विजय व सम्राट BJP के लिए परफेक्ट

बताया जाता है कि सुशील मोदी के काल से लगातार भूमिहार नेताओं को BJP में साइडलाइन किया जा रहा था। बड़े-बड़े फेस जो उभर रहे थे वे सुशील मोदी काल में दब गये। बोचहां उपचुनाव में बीजेपी RJD से मात खाई है। ऐसे में सवर्णों में एंटी बीजेपी के लहर को रोकने में ये निर्णय अहम साबित होगा। एंटी लालू वोट को हासिल करने में भी ये दोनों परफेक्ट फिट बैठते हैं। बीजेपी में पहले से ही कुशवाहा लीडर की कमी थी। नीतीश के लव-कुश समीकरण को तोड़ने में सम्राट चौधरी को आगे बढ़ाना अहम साबित होगा। यही कारण है कि पहले इन्हें विधान परिषद में भेजा गया। इसके बाद इन्हें मंत्री बनाया गया। अब ये अहम पद दिया गया है।

बीजेपी ने जातिगत समीकरण को भी साधने की कोशिश
 सत्ता से हटने के बाद भाजपाने दोनों सदनों में अपेक्षाकृत युवा नेताओं का मनोनयन किया है। विजय सिन्हा जहां अगड़े (भूमिहार) जाति से हैं, वहीं सम्राट चौधरी कुशवाहा (पिछड़े) समाज से आते हैं। इन दोनों के मनोनयन से बीजेपी ने जातिगत समीकरण को भी साधने की कोशिश की है। विजय सिन्हा ने विधानसभा अध्यक्ष के रूप में अपनी अच्छी छाप छोड़ी है। वे लखीसराय से एमएलए हैं। वहीं विधान पार्षद सम्राट चौधरी को सरकार में मंत्री के साथ ही विपक्ष में रहने का भी खासा अनुभव है।विजय सिन्हा और सम्राट चौधरी दोनों की छवि तेज-तर्रार नेता और प्रखर वक्ता की है। विधानसभा अध्यक्ष के रूप में विजय सिन्हा की छवि तर्कपूर्ण बयानों के साथ विरोधियों को घेरने वाले नेता के रूप में उभरी है। विधानसभा में नीतीश कुमार और विजय सिन्हा के बीच हुए विवादों में भी ये स्पष्ट तौर पर दिखा था।

कुर्मी की जगह कुशवाहा में पैठ बनाने की कोशिश

सम्राट चौधरी पिछड़ा वर्ग के कुशवाहा जाति से आते हैं। बिहार में OBC समुदाय की एक बड़ी आबादी है। इसमें यादवों और कुर्मी के बाद कुशवाहा(कोइरी) समाज की सबसे ज्यादा भागीदारी है। नीतीश कुमार को जहां कुर्मी का नेता माना जाता है, तो तेजस्वी की पैठ RJD में है। सम्राट चौधरी के बहाने BJP OBC में सेंधमारी करने की कोशिश की है। बिहार में कुशवाहा की कुल आबादी लगभग 7% है।

तीन बार मिनिस्टर मुख्य सचेतक रह चुके हैं सम्राट चौधरी

स्रमाट चौधरी तीन बार मंत्री रहने के साथ, विधानसभा में विपक्ष के मुख्य सचेतक रह चुके हैं। सम्राट चौधरी बिहार भाजपा के उपाध्यरक्ष भी रह चुके हैं। वह 1999 में कृषि मंत्री और 2014 में शहरी विकास और आवास विभाग के मंत्री के साथ मौजूदा एनडीए सरकार में पंचायती राज मंत्री थे। सम्राट को राजनीति विरासत में मिली है। उनके पिता शकुनी चौधरी सात बार एमएलए और एमपी रह चुके हैं। माता पार्वती देवी तारापुर से एमएलए रह चुकी हैं।