बिहार यंग थिंकर्स फोरम का हिंदी दिवस के अवसर पर वेब संगोष्ठी का आयोजन

बिहार यंग थिंकर्स फोरम ने सोमवार 14 सितंबर को हिंदी दिवस के मौके पर एक वेब संगोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता पद्मश्री उषा किरण खान थी। कार्यक्रम का संचालन शुभ्रास्था ने किया।

बिहार यंग थिंकर्स फोरम का हिंदी दिवस के अवसर पर वेब संगोष्ठी का आयोजन

पटना। बिहार यंग थिंकर्स फोरम ने सोमवार 14 सितंबर को हिंदी दिवस के मौके पर एक वेब संगोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता पद्मश्री उषा किरण खान थी। कार्यक्रम का संचालन शुभ्रास्था ने किया।

हिंदी भाषा की ऊपर प्रकाश डालते हुए पद्मश्री उषा किरण खान ने बताया कि केवल हिंदी भाषा के मौजूदा पराभव को चिन्हित करना गलत होगा। भाषा संस्कृति एवं जीवन पद्धति का एक अंग है इसलिए आज के व्यस्त जीवनशैली में हिंदी का पराभव हुआ है। गत सरकारों की दोषपूर्ण शिक्षा नीतियों पर प्रहार करते हुए पद्मश्री खान ने बताया कि भाषाई उन्नति तभी संभव है जब एक अच्छी शिक्षा नीति ईमानदारी के साथ लागू की जाये। 

बिहार की साहित्यिक इतिहास के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि बिहार एक गांव प्रधान राज्य है। साहित्यिक रचनाओं पर इसका सीधा प्रभाव देखा जा सकता है। अपितु बिहार की पारम्परिक भाषा भोजपुरी, मगही एवं मैथिली रही पर, हिंदी को बिहार ने पूर्णरूपेण अपनाया। इसके उदाहरण स्वरुप उन्होंने अयोध्या प्रसाद खत्री एवं देवकी नंदन खत्री द्वारा लिखित उपन्यास "चंद्रकांता" एवं "चंद्रकांता संतत" बताया जो 1888 में लिखी गयी थी। उत्तर बिहार के बाबा नागार्जुन,फणीश्वर नाथ रेणु, रामधारी सिंह दिनकर और दक्षिण बिहार के राजा राधिका रमन सिंह, कामता सिंह जैसे साहित्यकारों ने बिहार को हिंदी साहित्य के क्षेत्र में बहुत यश अर्जित करवाया। हिंदी को आज़ादी की भाषा बताते हुए उन्होंने बताया कि अंग्रेज़ों के खिलाफ क्रांति में हिंदी भाषा ने जनमानस की एकता को साधने में सफलता पायी। 

उन्होंने नयी पीढ़ी को साहित्यिक अध्यन के तरफ आकर्षित करने हेतु समकालीन हिंदी लेखकों की रचनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने यह आशा जताई कि नयी पीढ़ी के नवीनतापूर्ण रचनायें नये पाठकों को लुभायेगी तथा इससे हिंदी साहित्य का विकास होगा। हिंदी साहित्यिक रचनाओं पर स्पष्ट राजनितिक प्रतिबिम्ब होने की समकालीन परम्परा पर चिंता जताते हुए उन्होंने बताया कि एक साहित्यकार को राजनितिक विचारों से ऊपर उठ कर साहित्यिक रचनाएं करनी चाहिए। अंत में पद्मश्री खान ने सभी को हिंदी दिवस की शुभकामनायें दी। इसे हिंदी के जन्मदिवस स्वरुप उल्लास से मनाने की कामना की।