Bageshwar Baba से प्रेरणा लेकर नौशीन ने सनातन धर्म अपनाया,  गंगा नहाकर छोड़ा इस्लाम, मंदिर में रचायी शादी

बागेश्वर बाबा के प्रवचन से प्रभावित होकर मुजफ्फरपुर की नौशीन परवीन से रुक्मणि बन गई है। इस्लाम छोड़ सनातनी बनी नौशीन ने गंगा में डुबकी लगाई। हिंदू रीति-रिवाज के साथ वैशाली के रहने वाले प्रेमी के साथ मंदिर में शादी रचा ली। 

Bageshwar Baba से प्रेरणा लेकर नौशीन ने सनातन धर्म अपनाया,  गंगा नहाकर छोड़ा इस्लाम, मंदिर में रचायी शादी
इस्लाम छोड़ मंदिर में रचायी शादी।

हाजीपुर। बागेश्वर बाबा के प्रवचन से प्रभावित होकर मुजफ्फरपुर की नौशीन परवीन से रुक्मणि बन गई है। इस्लाम छोड़ सनातनी बनी नौशीन ने गंगा में डुबकी लगाई। हिंदू रीति-रिवाज के साथ वैशाली के रहने वाले प्रेमी के साथ मंदिर में शादी रचा ली। 
 मंदिर में शादी के दौरान लड़के के परिवारवालों ने ज्वेलरी-कपड़े चढ़ाये। हल्दी और घृतढारी की भी रस्में हुई। वर पक्ष की महिलाओं ने बारी-बारी से दुल्हन को चुमाया। फिर मंगल गीत भी गाये गये। हाजीपुर में सहथा गांव निवासी उमाशंकर कुंवर के पुत्र रौशन कुमार को मुजफ्फरपुर जिले के गीजास गांव निवासी नौशीन परवीन से पढ़ाई के दौरान लव अफेयर हो गया। हालांकि, अलग-अलग धर्मों से होने के कारण दोनों शादी के पवित्र बंधन में नहीं बंध पा रहे थे।

पंडित ने बताया धर्मांतरण का विधि-विधान
नौशी परवीन ने बताया कि इसी दौरान उसने बाबा बागेश्वर का प्रवचन सुना। उनका कार्यक्रम सुनकर धर्म बदलने की प्रेरणा मिली। इसके बाद वह अपने प्रेमी के साथ लालगंज के आचार्य कमलाकांत पाण्डेय और पंडित संजय तिवारी से मिलने पहुंची और धर्मांतरण के विधि-विधान के बारे में जाना।

गाय के दूध-घी-गोबर से स्नान
युवती ने पंडित द्वारा बताये गये विधानों पर चलने की ठानी और रविवार की सुबह गंगा की सहायक नदी नारायणी (गंडक) के तट पर पहुंची। वहां आचार्यों ने लड़की का धर्मांतरण यानी घर वापसी कराया। धर्मांतरण के तहत गंगा नदी में स्नान के साथ गाय के दूध, दही, घी, गोबर, सर्व औषधि, भष्म आदि से भी स्नान कराते हुए मंत्रोच्चारण के साथ लड़की का सनातन धर्म में प्रवेश कराया गया।
हिंदू रिवाज से मंदिर में शादी
सनातन धर्म में आते ही गिजास गांव की नौशीन परवीन नारायणी नदी को साक्षी मानकर रुक्मणि बन गई। इसके बाद दोनों प्रेमी युगल लालगंज रेपुरा स्थित अर्धनारीश्वर शिव मंदिर पहुंचे। इस दौरान लड़के का पूरा परिवार भी मौजूद था। मंदिर में पहले सत्यनाराण भगवान की पूजा की गई। इसके बाद विवाह विधि शुरू हुई। आचार्य ने शादी के सात वचनों से दूल्हा-दुल्हन को बांधा। कन्या दान की रस्म भी हुई और भगवान भोलेनाथ की परिक्रमा कर दोनों सात जन्मों के लिए एक-दूसरे के हो गये।