झारखंड: खेलगांव मेगा स्पोर्टस काम्पलेक्स घोटाला में सुदेश महतो पर कसेगा शिकंजा, फंसेंगे कई रसूखदार

झारखंड की राजधानी रांची के खेलगांव मेगा स्पोर्टस काम्पलेक्स घोटाले की सीबीआइ ने FIR दर्ज कर जांच शुरु कर दी है। मामले में अननोन के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गयी है। इस जांच जांच को वर्ष 2007 में गठित विधानसभा की विशेष कमेटी की गोपनीय रिपोर्ट मुकाम तक पहुंचाने में मददगार साबित होगा। 

झारखंड: खेलगांव मेगा स्पोर्टस काम्पलेक्स घोटाला में सुदेश महतो पर कसेगा शिकंजा, फंसेंगे कई रसूखदार

रांची। झारखंड की राजधानी रांची के खेलगांव मेगा स्पोर्टस काम्पलेक्स घोटाले की सीबीआइ ने FIR दर्ज कर जांच शुरु कर दी है। मामले में अननोन के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गयी है। इस जांच जांच को वर्ष 2007 में गठित विधानसभा की विशेष कमेटी की गोपनीय रिपोर्ट मुकाम तक पहुंचाने में मददगार साबित होगा। 

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घोटाले की शिकायत मिलने के बाद तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष आलमगीर आलम ने विशेष कमेटी बनाने का निर्देश दिया था। कमेटी ने वर्ष 2008 में विधानसभा अध्यक्ष को रिपोर्ट सौंपी, जिसमें घोटाले की बिंदुवार पुष्टि करते हुए जांच कराने की अनुशंसा तत्कालीन सरकार से की गई थी।इसमें तत्कालीन मंत्री और उनके आप्त सचिव द्वारा किए गए विदेश भ्रमण का जिक्र करते हुए उल्लेख किया गया है। उन्होंने इसका बिल तक जमा नहीं किया। यह विदेशी मुद्रा के उपयोग-दुरुपयोग से जुड़ा मामला है। इसके लिए मंत्री से कारण पूछते हुए आप्त सचिव के खिलाफ विभागीय कार्यवाही की जाए। इसकी सूचना लेखा और अंकेक्षण महानिरीक्षक को भी दी जाए। सुदेश महतो उस समय राज्य सरकार के खेल मंत्री थे।

विशेष कमेटी की रिपोर्ट में इसका भी उल्लेख है कि जिस समय रांची में निर्मित होने वाली महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए मंत्री एवं अन्य अधिकारी विदेश भ्रमण कर रहे थे, उस समय फरवरी 2007 में गुवाहाटी में संपन्न हुए राष्ट्रीय खेल परियोजना का निर्माण वहां हो रहा था। मिनिस्टर अथवा किसी भी अफसर ने गुवाहाटी जाकर वहां की खेल संरचनाओं का अध्ययन करना मुनासिब नहीं समझा। इसकी जगह खेल संचरना का अध्ययन करने के लिए विदेश यात्रा पर गये।
मिनिस्टर और आप्त सचिव द्वारा बिल सरकार को नहीं सौंपने को विशेष कमेटी ने नियम विरुद्ध आचरण और मर्यादा के अनुरूप नहीं बताया। रिपोर्ट में इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया गया है कि सरकार ने इस बारे में उन्हें स्मारित तक नहीं किया और कोई कार्रवाई नहीं की गई। रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। अगर इसी को आधार बनाकर सीबीआइ एक्शन लें तो इसे मुकाम तक पहुंचाया जा सकता है।

शर्तेों से खास कंपनियों को हुआ फायदा

विधानसभा की विशेष कमेटी ने जांच में पाया कि मेगा स्पोर्टस काम्पलेक्स के निर्माण में रखी गई शर्तों के कारण चुनिंदा कंट्रेक्टर को फायदा हुआ। दो निविदा प्रपत्र परामर्शी द्वारा तैयार किया गया। गैर अनुसूचित श्रेणी की सामग्रियों की आपूर्ति के लिए प्रकाशित निविदा में सीमित आपूर्तिकर्ता भाग ले पाए। इससे निविदा में प्रतिस्पर्धा का अभाव रहा और निविदा की दर मोलभाव (निगोशिएशन) के दौरान कम नहीं किया। इससे परियोजना की लागत दर में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई। गोपनीय रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि परामर्शी ने निविदा में शिड्यूल रेट निर्धारित करते समय इन सामग्रियों के बाजार भाव का जायजा लिया था अथवा नहीं? अगर उन्होंने बाजार भाव का जायजा लिया था तो बढ़े हुए दर पर निविदादाताओं की शर्तों को क्यों स्वीकार किया?

नागार्जुन कंस्ट्रक्शन का चयन भी संदेह से परे नहीं

विधानसभा की विशेष कमेटी के सदस्य डा. राधाकृष्ण किशोर ने निष्कर्ष में यह जिक्र किया है कि खेलगांव के निर्माण के लिए नागार्जुन कंस्ट्रक्शन का चयन भी संदेह के परे नहीं है। कागजातों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि यह चयन एकल निविदा के आधार पर हुआ है। इसके लिए जिम्मेदार कंपनी आइएलएफएस के कारण सरकार को डेवलपर्स से केवल साढ़े 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी प्राप्त हो रही है, जबकि बाजार की हिस्सेदारी दर काफी ज्यादा है। आइएलएफएस के उन तर्कों से सहमत होना संभव नहीं है, जिसके आधार पर उसने साढ़े 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी को उचित बताया है। आइएलएफएस को सरकार द्वारा दी गई 80 लाख रुपये की अग्रिम राशि को डेवलपर्स के चयन के बाद वापस कर दिया जाना था, लेकिन उसने निविदा शर्तों में इसका उल्लेख नहीं किया जो सरकार के साथ वादाखिलाफी है और उसके अनैतिक और कपटपूर्ण आचरण का द्योतक है।

जांच समिति के सदस्य

सरयू राय - संयोजक, राधाकृष्ण किशोर, गिरिनाथ सिंह, रवीन्द्रनाथ महतो, रवीन्द्र कुमार राय, मनोज कुमार यादव और अपर्णा सेन गुप्ता सदस्य।

200 करोड़ का बजट और 424 करोड़ खर्च
झारखंड में 34वें राष्ट्रीय खेल के आयोजन के लिए खेल सामग्री की खरीद के साथ खेलगांव कांप्लेक्स के निर्माण में भी भारी अनियमिता हुई थी। गलत तरीके से मैनहर्ट का चयन परामर्शी के तौर पर किया गया था। वहीं तत्कालीन खेल मंत्री व उनके आप्त सचिव के विदेश दौरे पर भी बेवजह का खर्च हुए थे। राज्य सरकार की लापरवाही के कारण खेलगांव कांप्लेक्स के निर्माण का बजट भी 206 करोड़ से बढ़ाकर 340 करोड़ और फिर 424 करोड़ किया गया था।


विधानसभा की तीन सदस्यीय जांच कमेटी में तमाम गड़बड़ियों को उजागर किया गया था। इस जांच कमेटी की रिपोर्ट का रिफरेंश के तौर पर झारखंड हाईकोर्ट के फैसले में भी जिक्र किया गया है। विधानसभा जांच कमेटी की रिपोर्ट भी सीबीआई जांच के आदेश की बड़ी वजह बनी।तत्कालीन विभागीय सचिव ने परियोजना के रूपांकन की संपुष्टि के लिए आईआईटी दिल्ली के आर्किटेक्ट डिपोर्टमेंट को भेजा था, वहीं अग्रिम के तौर पर 40 लाख का भुगतान किया गया। यह संपुष्टि नहीं हो पायी, ऐसे में यह व्यय बेकार पाया गया था। ल्यांग और सिंप्लेक्स कंपनी ने गलत जानकारी देकर टेंडर पाया था, इसका भी जिक्र रिपोर्ट में है।

मिनिस्टर समेत पांच गये थे विदेश, लेकिन नहीं दी रिपोर्ट

खेलगांव कांप्लेक्स अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो, इसके लिए पांच सदस्यीय कमेटी विदेश गई थी। तत्कालीन मंत्री, उनके आप्त सचिव, दो विभागीय सचिव और एक मुख्य अभियंता स्तर के अधिकारी बतौर तकनीकी विशेषज्ञ विदेश गए थे, लेकिन तत्कालीन मंत्री व उनके आप्त सचिव ने यात्रा विपत्र ही नहीं दिया। जब पांच सदस्यीय टीम विदेश गई थी, उस दौरान गुवाहाटी में फरवरी 2007 में राष्ट्रीय खेल के लिए खेल कांप्लेक्स का निर्माण हो रहा था, लेकिन किसी ने गुवाहाटी जाकर वहां के खेल संरचनाओं का अध्ययन मुनासिब नहीं समझा। विदेश भ्रमण के बाद फिर से परियोजना के स्कोप में बढ़ोतरी की गई थी। गैर अनुसूचित सामग्रियों के आपूर्ति के लिए निविदा की शर्त ऐसी थी कि इसमें कम संख्या में आपूर्तिकर्ता निविदा में शामिल हुए। निविदा में उद्त दर को नेगोशिएशन के दौरान कम नहीं किया गया। ऐसे में परियोजना में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई।

विधानसभा की जांच कमेटी ने पाया था कि राष्ट्रीय खेल के लिए खेलगांव कांप्लेक्स बनाने को लेकर राज्य सरकार और खेलकूद विभाग के अधिकारियों के बीच परियोजना की रूपरेखा स्पष्ट नहीं थी। राज्य सरकार के गंभीर नहीं होने की वजह से परियोजना के स्कोप में बार-बार परिवर्तन हुआ और लागत व्यय में बढ़ोतरी होती गई। राज्य सरकार को योजना के व्यय का 25 फीसदी वहन करना था, लेकिन सरकार ने शेष 75 फीसदी राशि केंद्र से लेने के लिए पहल नहीं की, ऐसे में पूरा खर्च राज्य को उठाना पड़ा।

सबसे बेहतर एजेंसी को नहीं दिया गया टेंडर

निविदा प्रपत्र तैयार करने के लिए मेकन को निविदा पूर्व परामर्शी नियुक्त किया गया था। मेकन को चार लाख का अग्रिम भुगतान भी दिया गया। बाद में तकनीकी मूल्यांकन में सर्वोच्च अंक पाने वाले निविदादाता को छांट देने के बाद उसके साथ नेगोशिएशन किए बिना दूसरे स्थान पर अंक प्राप्त करने वाले परामर्शी मैनहर्ट का चयन किया गया। चयन का आधार यह बताया गया कि परामर्शी मैनहर्ट की निविदा में परियोजना की अनुमानित लागत 206 करोड़ बतायी गई थी, जो सरकार के द्वारा निर्धारित परियोजना की प्राक्कलन राशि 200 करोड़ के सबसे निकट थी, लेकिन बाद में परियोजना की लागत मैनहर्ट के द्वारा दी गई लागत के दोगुने से बढ़ गई। ऐसे में निविदा में परामर्शी द्वारा दी गई लागत का प्राक्कलन संदेहास्पद प्रतीत होने का जिक्र विधानसभा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में किया था। रिपोर्ट में जिक्र था कि मैनहर्ट के परामर्शी बनने के बाद बढ़े हुए स्कोप को तैयार कर लिया जाना उचित नहीं था, क्योंकि यह परियोजना आकार के बढ़ने की वजह बनी।
मेगा स्पोर्ट्स कांपलेक्स के निर्माण में अनियमितता की FIR
सीबीआइ ने पहली FIR झारखंड हाई कोर्ट से एक जनहित याचिका पर 11 अप्रैल 2022 को जारी आदेश पर दर्ज की है। यह FIR वर्ष 2011 में रांची में आयोजित 34वें राष्ट्रीय खेल के लिए रांची में निर्मित मेगा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स के निर्माण में अनियमितता से संबंधित है। इसके आइओ सीबीआइ के पटना स्थित एसीबीके डीएसपी सुरेंद्र दीपावत को बनाया गया है। यह मामला धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और पद के दुरुपयोग से संबंधित है। इस FIR अज्ञात लोक सेवक व अज्ञात निजी व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया है। 
206 करोड़ रुपये का बजट बढ़कर पहले 340 करोड़ और फिर 424 करोड़ रुपये हो गया
झारखंड हाई कोर्ट ने 11 अप्रैल 2022 को 2017, 2018 व 2019 में दाखिल तीन अलग-अलग पीआइएल पर सुनवाई के बाद सीबीआइ को जांच का आदेश दिया था। इसमें झारखंड विधानसभा की कमेटी की नौ जनवरी 2008 की रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है। पूर्व की रिपोर्ट के अनुसार 424 करोड़ रुपये के रांची, धनबाद व जमशेदपुर में बने मेगा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स के निर्माण में भी अनियमितता की पुष्टि हो चुकी है। मेगा स्पोर्ट्स कंपलेक्स  निर्माण के लिए पहले 206 करोड़ रुपये का बजट था, जो बढ़कर पहले 340 करोड़ और फिर 424 करोड़ रुपये हो गया।