Bihar Srijan Scam Bhagalpur : मुख्य आरोपी रजनी प्रिया भेजी गयी जेल, अमित की मौत की पहेली में उलझी CBI

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिला स्थित साहिबाबाद में अरेस्ट हुई बिहार के भागलपुर सृजन घोटाला की आरोपित रजनी प्रिया को शुक्रवार को सीबीआई के प्रभारी जज महेश प्रसाद की कोर्ट में सीबीआई ने पेश किया। कोर्ट ने उसे न्यायिक हिरासत में लेते हुए 21 अगस्त तक के लिए सेंट्रल जेल बेउर जेल भेज दिया। रजनी के विरोधाभाषी बयान के कारण सीबीआई की उलझनें बढ़ गई हैं। अपनी गिरफ्तारी के बाद उसने सीबीआई को बताया कि बीमारी के कारण उनके हसबैंड अमित कुमार की मौत हो चुकी है।

Bihar Srijan Scam Bhagalpur : मुख्य आरोपी रजनी प्रिया भेजी गयी जेल, अमित की मौत की पहेली में उलझी CBI
रजनी प्रिया व अमित कुमार (फाइल फोटो)।
  • रजनी के विरोधाभाषी बयान बनी सीबीआइ के लिए परेशानी
  • अमित की मौत का प्रमाण मांगने पर मुंह खोलने से बचती रही रजनी
  • मनोरमा देवी की मौत के बाद अमित के पास ही था सृजन का पूरा लेखा-जोखा 

पटना। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिला स्थित साहिबाबाद में अरेस्ट हुई बिहार के भागलपुर सृजन घोटाला की आरोपित रजनी प्रिया को शुक्रवार को सीबीआई के प्रभारी जज महेश प्रसाद की कोर्ट में सीबीआई ने पेश किया। कोर्ट ने उसे न्यायिक हिरासत में लेते हुए 21 अगस्त तक के लिए सेंट्रल जेल बेउर जेल भेज दिया। रजनी के विरोधाभाषी बयान के कारण सीबीआई की उलझनें बढ़ गई हैं। अपनी गिरफ्तारी के बाद उसने सीबीआई को बताया कि बीमारी के कारण उनके हसबैंड अमित कुमार की मौत हो चुकी है।

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मनोरमा देवी का सबसे छोटा बेटा है अमित
बताया जाता है कि साहिबाबाद में जब रजनी के पड़ोसी हसबैंड  के बारे में पूछते थे तो वह बताती थी कि उनका हसबैंड ऑस्ट्रेलिया में डॉक्टर है। सृजन घोटाले की किंगपिन व रजनी की सास मनोरमा देवी की मौत के बाद सृजन का पूरा लेखा-जोखा अमित के पास ही था। सृजन से कई आईएएस, आईपीएस, बिल्डर और भागलपुर के बिजनसमैन लाभान्वित हुए हैं। अब ऐसे लोगों पर गाज गिर सकती है। मनोरमा देवी के तीन पुत्रों में अमित सबसे छोटा है। सबसे बड़ा पुत्र डॉ. प्रणव ऑस्ट्रेलिया में डॉक्टर है। प्रणव के छोटे भाई बब्बू की मौत रोड एक्सीडेंट में रांची में हो गई थी।  अमित ऐसी कोई गंभीर बीमारी से ग्रसित नहीं था कि उसकी मौत हो जाए। सीबीआई सोसेर्ेज का कहना है कि रजनी प्रिया अपने हसबैंड  की मौत होने की बात तो कहती है, लेकिन प्रमाण मांगने पर वह चुप्पी साध लेती है। सीबीआई इस सवाल का भी जवाब तलाश रही है कि रजनी ने अपने पड़ोसियों को कैसे बताया कि उसके हसबैंड ऑस्ट्रेलिया में डॉक्टर हैं। जबकि उसके जेठ ऑस्ट्रेलिया में डॉक्टर हैं।
अमित की बहनों की जानकारी जुटा रही है सीबीआई
अमित की चार बहनें हैं, जिनमें से दो दिल्ली में रहती हैं। दो अन्य बहनें कहां रह रही हैं, इसका पता भी सीबीआई कर रही है। मनोरमा ने अपने जीवनकाल में अपनी बेटियों को भी संपत्ति दी थी। रजनी प्रिया की गिरफ्तारी के समय उसके फ्लैट में उसका पुत्र (बाबू) और एक सहायक भी था, उन दोनों को उनकी बुआ अपने साथ ले गई। मनोरमा की मौत के बाद ही सृजन घोटाले को लेकर उस संस्था के शीर्ष पदाधिकारियों के बीच विवाद शुरू हुआ। अपने जिंदा रहने के दौरान ही मनोरमा ने सृजन का पूरा कारोबार पुत्र अमित व पुत्रवधू रजनी प्रिया के हाथों में सौंप दिया। जब सृजन द्वारा सरकारी धनराशि नहीं लौटाई जाने लगी और चेक बाउंस होने लगे, तब अफसरों के बीच खलबली मची।
भागलपुर के तत्कालीन डीएम आदेश तितरमारे के निर्देश पर लगभग एक हजार करोड़ रुपये के मामले में केस किया गया। कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी हुई। बाद में यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया। सीबीआई तब से रजनी प्रिया व अमित को ढूंढ रही थी। रजनी प्रिया तो पकड़ी गई पर सीबीआई को घोटाले के मास्टरमाइंड अमित के बारे में अबतक कोई सुराग नहीं मिल पाया है। सीबीआई सोर्सेज का कहना है कि रजनी के बयान के आधार पर अमित की मौत के कारणों का पता लगाया जा रहा है।  सीबीआई को इस बात की भी आशंका है कि इस घोटाले से कई वीआईपी जुड़े हैं। इस कारण अमित के जिंदा या मुर्दा होने का खेल भी खेला जा रहा हो।
बेटे अमित व बहू रजनी ने संभाली मनोरमा की विरासत
सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड, सबौर की संस्थापक सह सचिव मनोरमा देवी की मौत 14 फरवरी, 2017 को हुई थी। संस्था की सचिव मनोरमा देवी की मौते के बाद उसकी बहू रजनी प्रिया व बेटेअमित कुमार ने विरासत संभाली। इसके लगभग छह महीनेके बाद सृजन घोटालेका पर्दाफाश तब हुआ, जब जिला प्रशासन ने सात अगस्त, 2017 को पहली एफआइआर दर्ज करायी। इससे पहले ही रजनी प्रिया और अमित कुमार अपने बच्चे के साथ फरार हो गये। जांच टीम यह मान कर चल रही थी कि 11 अगस्त तक प्रिया कुमार और अमित कुमार अपने देश में ही हैं। वह इसलिए भी कि उनके पासपोर्ट जब्त करनेके लिए 12 अगस्त को पासपोर्ट कार्यालय को लिखा गया था।

रजनी के हसबैंड अमित की हो चुकी है मौत!
रजनी प्रिया के अनुसार उसके हसबैंड अमित कुमार की बीमारी से मौत हो चुकी है। हालांकि सीबीआई पूछताछ के दौरान वह इससे जुड़ा कोई सबूत नहीं दी है। अमित की मौत की जानकारी रजनी ने पूछताछ में सीबीआई को दी है। मौत की पुष्टि होनेके बाद ही कोर्ट मेंरिपोर्ट दाखिल करेगी। सृजन घोटाले में चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी रजनी प्रिया और उनके हसबैंड अमित कुमार की अरेस्टिंग नहीं हो पाने परसीबीआई कोर्ट ने आधे से ज्यादा मुकदमे में भगोड़ा घोषित किया हुआ है। सीबीआई ने 29 नवंबर 2022 को रजनी प्रिया के तिलकामांझी स्थित आवास पर इश्तेहार चिपकाये थे। सीबीआई केस आरसी संख्या 12-ए 2017 में सीबीआई के इंस्पेक्टर योगेंद्र शेहरावत के नेतृत्व में पहुंचा। सीबीआई की टीम ने सीबीआई की स्पेशल कोर्ट से 30 अगस्त 2022 को फरार आरोपित रजनी प्रिया के विरुद्ध जारी इश्तेहार चिपकाने की कार्रवाई की थी। इसके बाद, टीम के सदस्यों ने तिलकामांझी पुलिस स्टेशन एरिया के न्यू विक्रमशिला कॉलोनी के प्राणवती लेन स्थित मकान के आगे बाकायदा डुगडुगी पिटवाई और इश्तेहार चिपकाए थे। सीबीआई की टीम भागलपुर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड समेत पांच सार्वजनिक जगहों पर इश्तेहार चिपका कर लोगों से आरोपियों के बारे में सूचना देने की अपील की।इश्तेहार वारंट तामिला के लिए सीबीआई कई बार प्राणवती लेन स्थित अवधेश मेंशन पहुंची और डुगडुगी बजाकर दोनों के घर वारंट चस्पां किया। एजेंसी ने दोनों के खिलाफ इनाम भी घोषित कर रखा था। घोटाले के खुलासे के बाद अमित कुमार और रजनी प्रिया पर रेड कॉर्नर तक जारी किया गया, ताकि दोनों विदेश न भाग सकें। दोनों की फोटो देश के सभी एयरपोर्ट और इंटरनेशनल बस स्टैंडों पर चस्पां किए। ताकि कहीं से भी दोनों की भनक एजेंसी को लगे और अरेस्ट किया जा सके।
रांची, पुणे, मुंबई और गाजियाबाद में छिपती रही रजनी
सीबीआई सोर्सेज का कहना है कि अरेस्टिंग के डर से रजनी घोटाले में पहली एफआइआर दर्ज होने के बाद से ही भागलपुर से भाग गई थी। वह रांची गई फिर वहां से पुणे, मुंबई और गाजियाबाद में रहने लगी। सीबीआई को झांसा देनेके लिए उसने सभी मोबाइल नंबर बदल लिये थे। नये मोबइल नंबर से सीमित लोगों के संपर्क में ही रहने लगी। सीबीआई और ईडी ने कई बार कॉल डिटेल रिपोर्ट के आधार पर लोकेशन की पड़ताल की, लेकिन दोनों राडार पर नहीं आ सके।
सृजन घोटाला एक नजर में

गैर-सरकारी संस्थान सृजन सहकारी सहयोग समिति के नाम से सबौर और भागलपुर के कुछ बैंकों में अकाउंट थे। इन अकाउंट्स में कुछ सरकारी योजनाओं की अनुदान राशि के अलावा अन्य लेन-देन होती थी। वर्ष 2004 से 2014 के बीच बड़ी संख्या में कई सरकारी बैंक अकाउंट्स से राशि अवैध तरीके से सृजन के अकाउंट्स में ट्रांसफर कर दी जाती थी। सरकारी अकाउंट्स का फर्जी बैलेंस सीट बनाकर इसमें हमेशा राशि दिखाई जाती थी। इस काम में सरकारी अफसर से लेकर बैंक अफसर और अन्य कर्मियों की मिलीभगत रहती थी। इसके एवज में उन्हेंकमीशन मिलता था। यह राशि अलग-अलग तरीके से बाजार मेंउपयोग की जाती थी। इससे जुड़े लोगों को अपने बिजनस के लिए दी जाती थी। इस सरकारी राशि को ये लोग ब्याज पर भी बाजार में कुछ लोगों को देते थे। जब सरकारी अकाउंट में कोई चेक जमा होता, तो उस समय उतनी राशि इस अकाउंट में जमा करा दी जाती थी। इससे यह घोटाला वर्षों तक किसी की पकड़ में नहीं आया। इसी दौरान सृजन की प्रमुख मनोरमा देवी का अचानक निधन हो गया। इसका कुछ लोगोंने फायदा उठाते हुए सरकारी राशि वापस अकाउंट में नहीं लौटाई। तीन अगस्त, 2017 को 10.32 करोड़ रुपये का एक चेक सरकारी अकाउंट में जमा किया, तो यह बाउंस कर गया। इसके बाद पूरे घोटाले की पोल परत दर परत खुलकर सामने आ गई।
केपी रमैया की लिखे लेटर पर तैयार हुई घोटाले की इमारत
भागलपुर के प्रशासनिक इतिहास में आईएएस अफसर रहे कुंदरू पालेम रमैया (केपी रमैया) पहले डीएम हैं। जो किसी कोर्ट से भगोड़ा घोषित किये गये। पटना स्थित स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने सृजन घोटाला में एक्स डीएम केपी रमैया के अलावा सृजन संस्था के किंगपिन दिवंगत मनोरमा देवी के बेटे अमित कुमार और बहू रजनी प्रिया को भगोड़ा घोषित किया था। सीबीआई की दर्ज एफआइआर 14 ए/2017 मेंरमैया, रजनी व अमित तीन साल से फरार चल रहे थे। सीबीआई ने इस एफआईआर में 18 मार्च 2020 को 28 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। इस पर कोर्ट से समन के बावजूद हाजिर नहीं होने पर रमैया समेत 10 लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया गया था। सीबीआई के खोज के प्रयास के बाद भी रमैया पकड़ से बाहर रहे। आंध्रप्रदेश के नेलौर जिला निवासी 1986 बैच के आईएएस अफसर केपी रमैया जेडीयू से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। 2014 में उन्होंने वीआरएस लेकर पॉलिटिक्स ज्वाइन की थी। सीएम नीतीश कुमार ने उन्हें जेडीयू में शामिल कराया था। जेडीयू ने उन्हें लोकसभा चुनाव में सासाराम से कैंडिडेट बनाया, लेकिन हार गये।  1986 बैच के बिहार कैडर के आईएएस अफसर 1989 में वे पहली ज्वाइनिंग भभुआ के एसडीओ बने। 1986 बैच के आईएएस अफसर रहे रमैया, बांका, भागलपुर बेगूसराय और पटना के डीएम भी रहे थे। वीआरएस से पहले एससी-एसटी विभाग के प्रधान सचिव थे। महादलित आयोग के सचिव भी थे।
रमैया ने ही लेटर लिख सरकारी पैसे रखने के दिये थे निर्देश
सीबीआई की चार्जशीट में बताया गया कि सरकारी बैंक अकाउंट्स को लूटने के लिए सृजन महिला विकास सहयोग समिति ने जो जाल बिछाया था, इसे डीएम रहते हुए केपी रमैया ने ही शह दी थी। उन्होंने सभी सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं को अधिकृत पत्र जारी कर सृजन में पैसा जमा करने के लिए कहा था। सीबीआई का आरोप है कि डीएम रहते हुए केपी रमैया ने 18 दिसंबर 2003 को जिले के सभी बीडीओ, ग्रामीण विकास, पंचायत समिति सदस्य व सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं को एक पत्र लिखा था। पत्र के बाद 2004 से जिले के कई बीडीओ ने सृजन के अकाउंट में राशि जमा की थी। डीएम केपी रमैया ने लेटर में कहा था कि उन्होंने निरीक्षण के दौरान पाया कि सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड का बैंक ब्रांच जिला केंद्रीय सहकारिता बैंक भागलपुर से संबद्ध है। जो पूर्व के डीएम व डीडीसी द्वारा संपुष्ट है। इसलिए समिति के बैंक में सभी तरह के अकाउंट खोलकर इन्हें प्रोत्साहित किया जा सकता है। पूर्व डीएम रमैया ने यह पत्र (पत्रांक-1136 दिनांक 20 दिसंबर 2003 ) को लिखा था। इस पत्र के बाद ही 2004 सेजिलेके कई बीडीओ ने सृजन के खाते में राशि जमा की। सबौर ब्लॉक कौंपस स्थित ट्रायसेम भवन को भी 2004 में तत्कालीन डीएम के आदेश पर उस वक्त रहे सीओ ने सृजन को लीज पर दे दी।
सृजन महिला विकास सहयोग समिति अहम पद पर थी रजनी
अरबों रुपये के सृजन घोटाले की जिस सृजन महिला विकास सहयोग समिति नामक संस्था के जरिये नींव रखी गई थी। उसके दस अहम पद धारकों में एक रजनी प्रिया भी थी।सृजन संस्था की जनक और घोटाले की मास्टर माइंड रही मनोरमा देवी ने जीवित काल में ही अपने बेटे अमित कुमार और बहू रजनी प्रिया के हाथों अप्रत्यक्ष रूप में संस्था पर कंट्रोल दे दिया था।मौत से पहले मनोरमा गंभीर रूप से बीमार थी, तब अमित और रजनी प्रिया ही उसे भागलपुर से एयर एंबुलेंस से इलाज के लिए ले गये थे। मनोरमा ने  अपने जिंदा रहते ही संस्था के 10 अहम पद धारकों में अपनी बहू रजनी को शामिल कर लिया था। रजनी के अलावा संस्था की अहम पद धारकों में शुभ लक्ष्मी प्रसाद, सीमा देवी, जसीमा खातून, राजरानी वर्मा, अपर्णा वर्मा, रूबी कुमारी, रानी देवी, सुनीता देवी सुना देवी को भी शामिल किया था। इनमें रजनी, जसीमा, अपर्णा, राजरानी तो काफी चर्चा में रही थी।
भागलपुर डीएम ने 22 अगस्त 2017 को आदेश दिया था, जिसके बाद रजनी पर अन्य पद धारकों की तरह तथ्यों को छिपाने, बैंकों के साथ किये जा रहे संव्यवहार का आंशिक तथ्य रखने आदि जैसे आपराधिक कार्य करने और एके मिश्रा एंड एसोसिएट की तरफ से किए गए वैधानिक अंकेक्षण प्रतिवेदन के आलोक में जानबूझ कर फर्जी विवरण बनाने,  झूठी जानकारी देने, प्राधिकृत व्यक्ति को अपेक्षित जानकारी नहीं देने के मामले के केस दर्ज किया गया। इसके बाद, आलोक में सबौर थानाध्यक्ष ने 23 अगस्त 2017 को धोखाधड़ी समेत कई गंभीर आरोपों में केस दर्ज किया।
मनोरमा ने नहीं लिखा था बहू का पता
सृजन घोटाले की मुख्य आरोपी मनोरमा देवी ने बहू रजनी प्रिया किसी तरह की परेशानी न हो, इसलिए रजनी का पता सृजन संस्था में अहम पद धारक बनाने के बाद भी नहीं दर्शाया था। इससे बहू पर सास मनोरमा के न रहने के बावजूद कोई आंच न जा जाए। उसने रजनी और अपनी करीबी रही जसीमा खातून, अपर्णा वर्मा और राजरानी वर्मा का भी पता वाले कॉलम में मालूम नहीं लिखकर छोड़ दिया था। इस गंभीर अपराध को देखते हुए डीएम ने भारतीय दंड संहिता 1860 के तहत वैधानिक प्रक्रिया का पालन करते हुए आपराधिक मुकदमा दर्ज करने की शक्ति का इस्तेमाल कर केस दर्ज कराया था। सीबीआई ने तब रजनी प्रिया, जसीमा, अपर्णा, राजरानी समेत दस आरोपियों के खिलाफ 31 दिसंबर 2020 को ही आरोप पत्र सौंप दिया था।

ऐसे हुआ सृजन घोटाला
भागलपुर में वर्ष 2003 में डीएम रहते हुए केपी रमैया ने सभी सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं को पत्र जारी कर सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड के बैंक अकाउंट्स में रुपये जमा कराने के लिए कहा था। इसके बाद इस एनजीओ के बैंक अकाउंट में रुपये जमा कराये गये थे। सृजन एनजीओ की सचिव मनोरमा देवी ने अपनी मौत से पहले ही बहू रजनी प्रिया को एनजीओ का सचिव बना दिया था। इससे खफा लोगों ने सृजन के बैंक खाते में जमा रुपये वापस नहीं किये और भू-अर्जन का खाता बाउंस हो गया। तत्कालीन डीएम आदेश तितरमारे ने शक के आधार पर जांच कराई तो अरबों का घोटाला सामने आया।
बिहार का सृजन घोटाला 
बिहार में भागलपुर के लगभग एक हजार करोड़ का सृजन घोटाले  की सरगना या मास्टरमाइंड मनोरमा देवी नामक महिला रही। मनोरमा देवी का 14 फरवरी, 2017 को निधन हो गया। मनोरमा देवी की मौत के बाद उनकी बहू प्रिया और बेटा अमित कुमार इस घोटाले के सूत्रधार बने। रजनी प्रिया झारखंड कांग्रेस के सीनीयर लीडर अनादि ब्रह्मा की बेटी हैं जो एक्स सेंट्रल मिनिस्टर के करीबी माने जाते हैं। मनोरमा देवी और उनकी संस्था सृजन को शुरू के दिनों में कई आईएएस अफसरों जिसमें - अमिताभ वर्मा, गोरेलाल यादव, के पी रामैया शामिल हैं, ने बढ़ाया। गोरेलाल यादव के समय एक अनुसंशा पर दिसंबर 2003 में सृजन के बैंक अकाउंट में सरकारी पैसा जमा करने का आदेश दिया गया। उस समय बिहार की सीएम राबड़ी देवी थीं। डीेम केपी  रामैया ने 200 रुपये के महीने पर सबौर ब्लॉक में एक बड़ा जमींन का टुकड़ा सृजन को दिया। किसी जिला डीएम के कार्यकाल में अगर सर्वाधिक सृजन के अकाउंट में पैसा गया तो वो था वीरेंद्र यादव जिसके 2014 से 2015 के बीच लगभग  285 करोड़ सृजन के अकाउंट में गया।  वीरेन्द्र भी लालू यादव के करीबी माने जाते थे।
जांच में पाया गया कि सरकारी राशि को सरकारी बैंक अकाउंट में जमा करने के बाद तत्काल अवैध रूप से साजिश के तहत या तो जाली साइन या बैंकिंग प्रक्रिया का दुरुपयोग कर ट्रांसफर कर लिया जाता था। जब भी किसी लाभार्थी को चेक के द्वारा सरकारी राशि का पेमेंट किया जाता था तो उसके पूर्व ही अपेक्षित राशि सृजन द्वारा सरकारी अकाउंट में जमा कर दिया जाता था। इस सरकारी राशि के अवैध ट्रांसफर में सृजन के सचिव मनोरमा देवी के अलावा, सरकारी पदाधिकारी और कर्मचारी और दो बैंको - बैंक ऑफ़ बरोडा और इंडियन बैंक के पदाधिकारी और उनके कर्मचारी पूरे साजिश में सक्रिय रूप से शामिल होते थे। जिला प्रशासन से संबंम्बंधित बैंक अकाउंट्स के पासबुक में एंट्री भी फ़र्ज़ी तरीके से की जाती थी. स्टेटमेंट ऑफ़ अकाउंट को बैंकिंग सॉफ्टवेयर से तैयार नहीं कर फ़र्ज़ी तरीके से तैयार किया जाता था।
मनोरमा देवी सृजन के अकाउंट में जमा पैसा को बाजार में ऊंचे सूद पर देती थी या अपने मनपसंद लोगों को जमीन, बिजनस या अन्य धंधे में निवेश करने के लिए देती थी  पूरे साजिश में शामिल अफसरोंका भी वो पूरा ख्याल रखती थी। उन्हें करोड़ तक कमीशन या ज्वेलरी दिये जाते थे। मनोरमा देवी के कुछ राजनेताओं से करीबी संबंध रहे हैं जिनमें बीजेपी लीडर भी शामिल हैं। ये उनके ऑफिसियल कार्यक्रम के अलावा निजी कार्यक्रम में नियमित रूप से शामिल होते थे।
जाने मनोरमा देवी के बारे में
मनोरमा देवी ने भागलपुर में सृजन संस्था की शुरुआत मात्र दो महिलाओं के साथ की थी। मनोरमा देवी अति साधारण महिला थी जो किसी तरह गुजर बसर करके घर चलाती थी। उसने सृजन संस्था की शुरुआत की तो इसमें महिलाओं की संख्या बढ़ कर लगभग छह हजार हो गयी। गरीब, पिछड़ी, महादलित महिलाओं के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने और उन्हें आत्मनिर्भर करने के उद्देश्य से इस संस्था की शुरुआत की गयी थी। महिलाओं का लगभग 600 स्वयं सहायता समूह बना कर उन्हें स्वरोजगार से सृजन ने जोड़ा। वर्ष 1991 में मनोरमा देवी के हसबैंड अवधेश कुमार का असामयिक निधन हो गया था। वे रांची में लाह अनुसंधान संस्थान में वरीय वैज्ञानिक के रूप में पदस्थापित थे। हसबैंड की मौत के बाद छह बच्चों की परवरिश का जिम्मा मनोरमा पर आ गया।
 सिलाई मशीन सेशुरू हुई थी सृजन की कहानी ,1000 करोड़ की सरकारी राशि का हुआ घोटाला
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मनोरमा देवी ने 1993-94 में सबौर में किराये के एक कमरे में सुनीता और सरिता नामक दो महिलाओं के सहयोग से एक सिलाई मशीन रख कर कपड़ा सिलने का काम शुरू किया। इसके बाद रजंदीपुर पैक्स ने 10 हजार रुपये लोन दिया। कपड़े तैयार कर उसे बाजर में बेचा जाने लगा। आमदनी बढ़ने लगी, तो सिलाई-कढ़ाई का काम आगे बढ़ता गया। एक से बढ़ कर कई सिलाई मशीनों पर काम होने लगा। इसके साथ-साथ महिलाओं की संख्या भी बढ़ने लगी। वर्ष 1996 मेंसृजन महिला का समिति के रूप में रजिस्ट्रेशन हुआ। इसमें मनोरमा देवी सचिव के रूप काम कर रही थी। महिलाओं को समिति सेजुड़ता देख सहकारिता बैंक ने 40 हजार रुपये कर्ज दिया। काम से प्रभावित होकर सबौर बीडीओ ओॉफिस के कैंपस स्थित ट्रायसम भवन (सरकारी) में समिति को अपनी गतिविधियों के आयोजन की अनुमति मिली। बाद में 35 साल की लीज पर यह भवन समिति को मिल गया।