सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला,SC/ST एक्ट में अग्रिम जमानत तभी, जब अपराध साबित न हो

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: SC/ST एक्ट में अग्रिम जमानत तभी मिलेगी जब प्रथम दृष्टया यह साबित हो कि अपराध नहीं हुआ। CJI ने हाईकोर्ट का आदेश पलटा।

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला,SC/ST एक्ट में अग्रिम जमानत तभी, जब अपराध साबित न हो
सुप्रीम कोर्ट 9फाइल फोटो)।
  •  अग्रिम जमानत पर लगा दी शर्त
  • CJI ने हाईकोर्ट का आदेश पलटा

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम (SC/ST Act) से जुड़े एक अहम मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने स्पष्ट किया कि इस एक्ट के तहत अग्रिम जमानत तभी दी जा सकती है जब प्रथम दृष्टया यह साबित हो जाए कि आरोपी पर लगे आरोप निराधार हैं और उसने अपराध नहीं किया।
यह भी पढ़ें:NIRF Ranking 2025: IIT मद्रास देश का नंबर 1 इंस्टीाच्युट, IISc बेंगलुरु टॉप यूनिवर्सिटी, देखें पूरी रैंकिंग

दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक आरोपी को अग्रिम जमानत दी थी, जिस पर जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर सार्वजनिक रूप से अपमानित करने का आरोप था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस आदेश को पलटते हुए कहा कि SC/ST वर्ग को उनके नागरिक अधिकारों से वंचित न किया जाए और उन्हें अपमान या उत्पीड़न से बचाना इस अधिनियम का मूल उद्देश्य है।CJI ने यह भी स्पष्ट किया कि इस अधिनियम का मकसद समाज के वंचित तबकों को सुरक्षा देना है और किसी भी तरह के अपमान या उत्पीड़न को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।
चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के वी चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ये फैसला दिया। बेंच बॉम्बे हाईकोर्ट के एक आरोपी को अग्रिम जमानत देने वाले आदेश को रद कर दिया।  शख्स पर कथित तौर पर अपीलकर्ता को उसके जाति के नाम का उल्लेख करके सार्वजनिक रूप से गाली दी थी और अपमानित किया था। चीफ जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को रद्द किया जिसमें एक आरोपी को जमानत दी गई थी। आरोपी पर जातिसूचक शब्दों से सार्वजनिक रूप से अपमानित करने का आरोप था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, बताया जा रहा है कि जस्टिस अंजारिया द्वारा लिखित फैसले में यह उल्लेख किया गया कि प्रथम दृष्टया मामला एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3 के तहत दंडनीय अपराधों के तत्वों के आधार पर बनता है। कहा गया कि आरोपियों ने शिकायतकर्ता को लोहे की छड़ से पीटा और उसके घर को जलाने की धमकी दी। शिकायतकर्ता की मां और चाची के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया। साथ ही उन्हें भी जातिवादी गाली से संबोधित किया गया।
शिकायतकर्ता ने लगायेआरोप 
कहा गया कि आरोपी ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता को उसके जाति के नाम से अपमानित किया था। इसके साथ ही घर जलाने की धमकी भी दी थी। इस दौरान 'मंगत्यानो' शब्द का इस्तेमाल साफ तौर से शिकायतकर्ता को अपमानित करने के इरादे से किया गया। यह अपमान इसलिए किया गया क्योंकि शिकायतकर्ता ने आरोपी की इच्छा के अनुसार, विधानसभा चुनाव में एक विशेष उम्मीदवार को वोट नहीं दिया था।
सुप्नीम कोर्ट साफ किया कि पहली नजर में यह मामला बनता है या नहीं यह तय किये जाने के समय निचली अदालतें मिनी ट्रायल करके साक्ष्य के दायरे में नहीं आ सकती है। कोर्ट ने साफ किया कि अपराध प्रथम दृष्टया न बनना एक ऐसी स्थिति है, जहां पर न्यायालय केवल एफआईआर में दिये गये बयानों से ही इस नतीजे पर पहुंच सकती है। इस प्रकार के मामलों में एफआईआर में दिये गये आरोप काफी निर्णाय होंगे।
यह है मामला
बेंच ने शिकायतकर्ता किरण द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट के 29 अप्रैल के आदेश के विरुद्ध दायर अपील को स्वीकार करते हुए आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत रद्द कर दिया। यह मामला 2024 में हुए विधानसभा चुनाव से जुड़ा है, जब महाराष्ट्र के धाराशिव जिले में चुनाव के बाद हुई झड़प में एक दलित परिवार पर हमला किया गया था। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने हमले के दौरान जातिसूचक गालियां गदी थीं।थीं नवंबर 2024 में दर्ज एफआइआर में धाराशिव जिले के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने आरोपी को राहत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद आरोपी राजकुमार जीवराज जैन हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जहां मामले को राजनीति से प्रेरित बताते हुए आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी गयी थी।।