24 अप्रैल 2022 राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की 48 वी  पुण्यतिथि पर विशेष: सिंहासन खाली करो  कि जनता आती  है 

बिहार के लाल राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बेगूसराय जिले के  ग्राम सिमरिया बाबू रवि सिंह के पुत्र के रूप में एक साधारण किसान परिवार में 23 सितम्बर 1908 को हुआ था। दिनकर जी जब दो वर्ष के थे तो इनके पिता की मृत्यु हो गई।

24 अप्रैल 2022 राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की 48 वी  पुण्यतिथि पर विशेष: सिंहासन खाली करो  कि जनता आती  है 

पटना। बिहार के लाल राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बेगूसराय जिले के  ग्राम सिमरिया बाबू रवि सिंह के पुत्र के रूप में एक साधारण किसान परिवार में 23 सितम्बर 1908 को हुआ था। दिनकर जी जब दो वर्ष के थे तो इनके पिता की मृत्यु हो गई।

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मां मनरूप देवी ने दिनकर जी का लालन पालन किया।पिता के मरने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नही थी। वर्ष 1928 में मैट्रीक परीक्षा पास करने के बाद सन 1932 में पटना कॉलेज से इतिहास से ग्रेजुएशन किया। ग्रजुएशन के बाद शिक्षक की नौकरी कर ली। वर्ष 1934 में बिहार सरकार में निबन्धक के पद पर नियुक्ति हुए।
कविता और साहित्य से लगाव 
दिनकर जी को बचपन से ही कविता से लगाव था। मैट्रिक में पढ़ने के दौरान ही ये अपनी कविता लिखना शुरू कर दिया। पटना में पढ़ाई के दौरान इनका काशी प्रसाद जयसवाल ओर अन्य लोगो के साथ संपर्क हुआ। इन्होंने संस्कृत, बंगला, उर्दूओर अंग्रेजी साहित्य का स्वाध्यन किया।  वर्ष1934 में सरकारी नौकरी में आ जाने के बाद भी इनकी साहित्य साधना में कमी नही आई ।
काव्य रचनाये: हुंकार,रश्मिरथी ,उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा,रेणुका समेत अन्य। दिनकर जी की रचनाएं ओर कविता में देश की गुलामी से मुक्ति केलिये छट पटाहट दिखती है ।इनकी कवितायों ने देश के क्रांतिकारियों में वल भरने का काम किया।वर्ष 1977 में सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में जयप्रकाश नारायण ने दिनकरजी की कविता की पंक्ति,,  सिंहासन खाली करो कि जनता आती है , को आंदोलन का नारा बनाया।

अंग्रेजो द्वारा प्रताड़ित
अंग्रेजो द्वारा प्रताड़ित बिहार सरकार में निबन्धक की नौकरी के दौरान दिनकर जी को अपने साहित्य और काव्य रचनायों के लिये पॉटरी होना पड़ा।अंग्रेजो का मानना था कि इनकी कवितायों से आंदोलनकारियों को बल मिलता है। इस कारण इनसे कई एक वार शोकॉज पूछा गया। वर्ष 1936 से 1942 के बीच इनका 22 वार ट्रांसफरर हुआ। वैशाली जिले के लालगंज निबंधन कार्यालय के निबन्धक के रूप में मात्र तीन माह काम किया।र क्रांतिकारियों से सम्पर्क के नाम पर पटना बुला लिया। मुख्यालय में इन्हें जन सम्पर्क का उप निर्देशक बना दिया गया।
1947 के आजादी के बाद छोड़ दी नौकरी 
देश की आजादी के बाद दिनकर जी ने सरकारी नौकरी छोड़ दी। इस समय तक देश मे साहित्यकार और कवि के रूप में ये काफी प्रचलित हो चुके थे। दिनकर जी उत्तर बिहार का प्रमुख कॉलेज लंगट सिंह के हिंदी विभागाध्यक्ष के रूप में सन1947 से 1952 तक कार्य किया। 1952 में राज्यसभा के प्रथम सत्र में संसद हुई। दिनकर जी 1962 तक राज्यसभासदस्य रहे।1962 भारत चीन युध्य में भारत की हार पर संसद में प्रधान मंत्री नेहरू की तीखी आलोचना की जिस वजह से इनको कांग्रेस ने संसद में जाने का दुबारा मौका नही दिया।
1964 में इन्हें भगलपुर यूनिवर्सिटी का वीसी बनाया गया। वह 1965 से भारत सरकार के हिंदी सलाहकार के पद पर रहे। 24 अप्रैल 1974 को मद्रास में दिनकर जी ने अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार सिमरिया घाट में ही हुआ।
पुरस्कार और सम्मान 

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को साहित्य जगत का ज्ञानपीठ पुरष्कार,ओर साहित्य अकादमी पुरश्करो के अलावे कई पुरस्कार मिले। इन्हें पदम विभूषण से भी अलंकृत किया गया। सेंट्रल गवर्नमेंट ने 1999 में दिनकर जी के नाम का डाक टिकट भी जारी किया।