पूर्वोत्तर में BJP के 'चाणक्य' हिमंत बिस्वा सरमा, असम में बीजेपी की जीत में अहम योगदान

सम में लगातार दूसरी बार बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने के पीछे हिमंत बिस्वा सरमा की बड़ी मेहनत बताई जाती है। लोकप्रियकता के मामले में सर्बानंद सोनोवाल से किसी भी मायने में वह कम नहीं हैं। इस चुनाव में उनका जोरदार प्रचार अभियान, तेज व आक्रामक रणनीति बीजेपी की जीत की अहम वजह रही जिसके चलते पार्टी ने उन्हें सर्बानंद की जगह सीएम की कुर्सी सौंपा है।

पूर्वोत्तर में BJP के 'चाणक्य' हिमंत बिस्वा सरमा, असम में बीजेपी की जीत में अहम योगदान

गुवहाटी। असम में लगातार दूसरी बार बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने के पीछे हिमंत बिस्वा सरमा की बड़ी मेहनत बताई जाती है। लोकप्रियकता के मामले में सर्बानंद सोनोवाल से किसी भी मायने में वह कम नहीं हैं। इस चुनाव में उनका जोरदार प्रचार अभियान, तेज व आक्रामक रणनीति बीजेपी की जीत की अहम वजह रही जिसके चलते पार्टी ने उन्हें सर्बानंद की जगह सीएम की कुर्सी सौंपा है।
कांग्रेस छोड़ आये बीजेपी में

हिमंत बिस्वा सरमा को। सरमा राहुल गांधी पर अनदेखी का आरोप लगाकर कांग्रेस छोड़कर वर्ष 2015 में बीजेपी में शामिल हुए थे। उनका आरोप था कि वह जब राहुल गांधी से मिलने पहुंचे थे तो कांग्रेस नेता का ध्यान मुझसे ज्यादा अपने कुत्ते पर था। सरमा कभी कांग्रेस नेता तरुण गोगोई के सीएम काल में उनके करीबी हुआ करते थे लेकिन आज वह असम बीजेपी के सबसे ताकतवर नेता माने जाते हैं। 
पीएचडी हैं 52 साल के हिमंत बिस्वा सरमा 
असम की 126 विधानसभा सीटों में से इस बार बीजेपी ने 75 सीटों पर जीत हासिल की है। हिमंत बिस्वा सरमा ने जलुकबाड़ी सीट पर लगातार पांचवीं बार जीत हासिल की है। हिमंत बिस्वा सरमा का जन्म एक फरवरी, 1969 को हुआ। उनके पिता का नाम कैलाश नाथ सरमा और मां का नाम मृणालिनी देवी है। सरमा ने गुवाहाटी के कामरुप एकैडमी स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई की। फिर गुवाहाटी यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की। सरमा ने 1996 से 2001 के बीच गुवाहाटी हाई कोर्ट में लॉ की प्रैक्टिस भी की थी। सरमा ने रिकी भुयान से सन् 2001 में शादी की थी। सरमा और उनकी पत्नी का एक बेटा और एक बेटी हैं। वह वर्ष 2017 में सरमा बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट भी चुने गये थे।
AASU की है पॉलिटिक्स शुरु

हिमंत बिस्वा सरमा के राजनीतिक करियर की शुरुआत सन् 1980 में हुई, जब वह छठी क्लास में थे। उन्होंने ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ज्वाइन की। वर्ष 1981 में AASU पर कार्रवाई शुरू हुई। इस दौरान सरमा को प्रेस तक विज्ञप्ति और अन्य सामान पहुंचाने का काम मिला था।
2001 से अब तक लगातार हैं एमएलए
कुछ साल बाद ही उन्हें AASU के गुवाहाटी यूनिट का जनरल सेक्रटरी बनाया गया। 1990 के दशक में कांग्रेस में शामिल हुए सरमा ने पहली बार गुवाहाटी के जालुकबाड़ी से 2001 में चुनाव लड़ा। उन्होंने यहां असम गण परिषद के नेता भृगु कुमार फुकान को हराया।उसके बाद से आज तक सरमा इस सीट पर जीत दर्ज करते आये हैं। कांग्रेस सरकार में सरमा ने असम में शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, कृषि, योजना और विकास, पीडब्ल्यूडी और वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभागों का दायित्व संभाला है। हालांकि, सीएम तरुण गोगोई के साथ खटपट की वजह से सरमा ने आखिरकार साल 2016 विधानसभा चुनावों से पहले उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया।

राहुल गांधी के कुत्ते को लेकर छोड़ी थी कांग्रेस!
हिमंत बिस्वा सरमा को राहुल गांधी के कुत्ते से प्रेम को तरजीह देना कभी रास नहीं आया। एक बार सरमा ने खुद ट्वीट करके यह बताया था कि जब कांग्रेस उपाध्यक्ष (राहुल गांधी) के साथ असम के अहम मसलों पर बातचीत चाहते थे। उस वक्त राहुल अपने पालतू कुत्ते को बिस्किट खिलाने में व्यस्त थे। सरमा ने कहा था कि उन्होंने इसलिए ही कांग्रेस पार्टी को छोड़ा था।

2016 में भी थे सीएम के दावेदार

हिमंत बिस्वा सरमा ने 2015 में कांग्रेस से मतभेद के बाद बीजेपी का दामन थामा था। तरुण गोगोई के साथ राजनीतिक मतभेदों के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी के सभी विभागों से इस्तीफा दे दिया था। वह प्रभाव और प्रमुखता में मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल से अधिक थे। 2016 के चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की जीत के एक बड़े कारक के रूप में प्रसिद्धि के साथ-साथ सीएए आंदोलन और कोरोना महामारी की चुनौतियों से निपटने में भी हिमंत बिस्वा शर्मा का योगदान सबसे ज्यादा रहा।

सरमा उत्तर-पूर्व भारत में  बीजेपी की उपस्थिति को और अधिक मजबूती में भी बढ़ाने के लिए पार्टी के प्रयास का नेतृत्व कर रहे हैं। होम मिनिस्टरी के अलावा लगभग सभी महत्वपूर्ण विभागों को संभालने के अलावा हिमंत बिस्वा सरमाउत्तर-पूर्व डेमोक्रेटिक एलायंस (NEDA) के संयोजक हैं। वह उत्तर-पूर्व में अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए बीजेपी के सफल "विशेष उद्देश्य वाहन" हैं।