Jharkhand: धनबाद मेयर आरक्षण नीति के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका, सरकार से 17 दिसंबर तक जवाब तलब

धनबाद मेयर पद आरक्षण नीति को चुनौती देने वाली शांतनु चंद्रा की रिट याचिका पर झारखंड हाईकोर्ट सख्त। सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग से 17 दिसंबर तक जवाब मांगा। नगर निगमों के नए वर्गीकरण और आरक्षण नीति की वैधता पर उठे गंभीर सवाल।

Jharkhand: धनबाद मेयर आरक्षण नीति के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका, सरकार से 17 दिसंबर तक जवाब तलब
शांतनु चंद्रा उर्फ बबलू पासवान ने दी चुनौती।
  • धनबाद के युवा समाजसेवी शांतनु चंद्रा उर्फ बबलू पासवान ने दायर की है रिट याचिका 

रांची। झारखंड में नगर निकाय चुनाव से ठीक पहले मेयर पद के आरक्षण और नये वर्गीकरण को लेकर बड़ा कानूनी विवाद खड़ा हो गया है। धनबाद के युवा समाजसेवी शांतनु कुमार चंद्रा उर्फ बबलू पासवान द्वारा दायर रिट याचिका पर झारखंड हाईकोर्ट ने गंभीर रुख अपनाते हुए राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग से विस्तृत जवाब मांगा है।

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झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की और सरकार से पूछा कि आखिर नगर निगमों को दो वर्गों—क और ख—में बांटने का आधार क्या है?

क्या है मामला?

याचिकाकर्ता शांतनु चंद्रा ने अपनी याचिका में राज्य सरकार द्वारा झारखंड नगरपालिका निर्वाचन एवं स्थापना नियमावली 2012 में किए गए हालिया संशोधन को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि— नगर निगमों का दो नये वर्गों ‘क’ और ‘ख’ में विभाजन असंवैधानिक है। संविधान के अनुच्छेद 243-Q में केवल तीन प्रकार के निकाय हैं—नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम। इनसे अलग किसी नए वर्ग या श्रेणी का प्रावधान संविधान में नहीं है। सरकार ने कार्यपालक आदेश के माध्यम से नया विभाजन कर दिया, जो न सिर्फ असंवैधानिक बल्कि मनमाना और भेदभावपूर्ण है।

धनबाद बनाम गिरिडीह के आरक्षण पर सवाल

प्रार्थी ने तर्क दिया कि 2011 की जनगणना के अनुसार— धनबाद में अनुसूचित जाति की आबादी लगभग दो लाख है, फिर भी मेयर का पद अनारक्षित रखा गया। गिरिडीह में एससी आबादी सिर्फ 30 हजार है, लेकिन मेयर का पद एससी के लिए आरक्षित कर दिया गया। इतने बड़े जनसांख्यिकीय अंतर के बावजूद आरक्षण नीति का यह निर्धारण “तर्कहीन, पक्षपातपूर्ण और कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण” बताया गया है।

कोर्ट में क्या हुआ?

चीफ जस्नेटिस की बेंच सुनवाई के दौरान सरकार से कई कड़े सवाल पूछे। कोर्ट  ने कहा: नगर निगमों को दो वर्गों में बांटने का कानूनी औचित्य क्या है? धनबाद और गिरिडीह के मेयर पद के आरक्षण में इतना विसंगति क्यों? नियमावली में किए गए संशोधन का आधार, उद्देश्य और प्रक्रिया क्या रही? बेंच ने इस संशोधन को गंभीर मसला माना और सरकार को निर्देश दिया कि– “अगली सुनवाई में सभी संबंधित दस्तावेज, संशोधन की कॉपी और निर्णय का आधार अदालत के सामने प्रस्तुत किया जाए।”

याचिकाकर्ता का पक्ष

शांतनु चंद्रा ने कहा कि— “नगर निगमों के वर्गीकरण में की गई गड़बड़ियों से चुनाव की निष्पक्षता पर बड़ा सवाल खड़ा होता है। हमें विश्वास है कि न्यायालय के हस्तक्षेप से जनता के अधिकारों की रक्षा होगी।” उनके अधिवक्ता विनोद कुमार ने दलील दी कि— संशोधन पारदर्शिता, सार्वजनिक विमर्श, और कानूनी प्रक्रिया के बिना किया गया। इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित होगी। सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े होते हैं।

अब आगे क्या?

कोर्ट ने राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग से 17 दिसंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई इसी दिन होगी, जिसमें पूरे मामले पर विस्तृत बहस होने की संभावना है।

निष्कर्ष

मेयर पद आरक्षण और नगर निगमों के नए वर्गीकरण ने राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में हलचल बढ़ा दी है। धनबाद के युवा समाजसेवी की याचिका पर हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी ने संकेत दे दिया है कि मामला बेहद गंभीर है और इसपर निर्णायक आदेश आने की पूरी संभावना है।