Jharkhand: झारखंड हाई कोर्ट से IAS विनय चौबे को झटका, बेल पिटीशन खारिज

झारखंड हाई कोर्ट ने IAS विनय चौबे की बेल पिटीशन को खारिज कर दिया है। यह मामला गंभीर आरोपों से जुड़ा है और अब उन्हें न्यायिक प्रक्रिया का सामना करना होगा।

Jharkhand: झारखंड हाई कोर्ट से IAS विनय चौबे को झटका, बेल पिटीशन खारिज
IAS विनय चौबे (फाइल फोटो)।

रांची। झारखंड शराब घोटाला के आरोपी व स्टेट के सीनीयर IAS अफसर विनय चौबे को झारखंड हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट ने विनय चौबे को बेल देने से इनकार करते हुए उनकी बेल पिटीशन खारिज कर दी है।
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हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस संजय द्विवेदी की कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई। विनय चौबे की ओर से अधिवक्ता देवेश आजमानी ने बहस की। विनय चौबे ने अपनी याचिका में एसीबी द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गयी एफआइआर और गिरफ्तारी को चुनौती दी थी। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया था कि उनके खिलाफ दर्ज FIR और सभी दंडात्मक कार्रवाई को रद्द किया जाए। 
20 मई को पू एसीबी ने विनय चौबे को किया था गिरफ्तार
ACB ने बीते 20 मई को शराब घोटाले से जुड़े मामले में विनय चौबे को पूछताछ के लिए बुलाया था। पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर कर लिया था। विनय चौबे न्यायिक हिरासत में बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल में बंद है। सरकार उन्हें सस्पेंड कर दिया है।
विनय चौबे को किया जा सकता है हजारीबाग जेल शिफ्ट!
बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल में बंद IAS अफसर विनय चौबे को जल्द ही हजारीबाग जेल में शिफ्ट किया जा सकता है। इसके लिए कोर्ट से अनुमति मांगी गयी है।फिलहाल इस केस में बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए विनय चौबे की हजारीबाग ACB की विशेष कोर्ट में पेशी हुई जिसके बाद कोर्ट ने उन्हें इस केस में भी न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।
एसीबी के थाना प्रभारी सौरभ लकड़ा की शिकायत पर यह कार्रवाई की गयी। इससे पहले ACB ने तत्कालीन खासमहल पदाधिकारी विनोद चंद्र झा, बसंती सेठी, उमा सेठी,  इंद्रजीत सेठी, राजेश सेठी,  विजय प्रताप सिंह और सुजीत कुमार सिंह को आरोपी बना चुकी है। एसीबी ने इस मामले की प्राथमिक जांच (प्रीलिमिनरी इंक्वायरी) पहले ही कर ली थी, जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आये थे।
हजारीबाग की लगभग 2.75 एकड़ खासमहल की जमीन 1948 में एक ट्रस्ट को 30 साल के लिए लीज पर दी गयी थी।  इस लीज को 1978 में 2008 तक के लिए नवीनीकृत (रिन्यूअल) किया गया था। एसीबी की जांच में पाया गया कि 2008  से 2010  के बीच एक साजिश के तहत इस जमीन को सरकारी बताकर 23 निजी व्यक्तियों को आवंटित कर दिया गया। जांच में पता चला कि लीज के रिन्यूएल के दौरान तत्कालीन खासमहल पदाधिकारी विनोद चंद्र झा ने जानबूझकर 'ट्रस्ट सेवायत' शब्द को हटा दिया था। ऐसा इसलिए किया गया, ताकि जमीन को सरकारी दिखाया जा सके और अवैध रूप से उसका हस्तांतरण (ट्रांसफर) किया जा सके।