फारूक और उमर अब्दुल्ला का घर गवर्नमेंट जमीन पर, जम्मू-कश्मीर प्रशासन का खुलासा 

जम्मू-कश्मीर के प्रशासन ने खुलासा कियाहै कि फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला का जम्मू में रिहायशी आवास गैरकानूनी तरीके हासिल भूमि पर बनाया गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस के जम्मू और श्रीनगर स्थित मुख्यालयों को भी रोशनी कानून के तहत वैध बनाया गया है।

  • नेशनल कॉन्फ्रेंस के जम्मू और श्रीनगर हेडक्वार्टर भी रोशनी कानून के तहत वैध बनाया गया

जम्मू। जम्मू-कश्मीर के प्रशासन ने खुलासा कियाहै कि फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला का जम्मू में रिहायशी आवास गैरकानूनी तरीके हासिल भूमि पर बनाया गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस के जम्मू और श्रीनगर स्थित मुख्यालयों को भी रोशनी कानून के तहत वैध बनाया गया है। हलांकि फारूक और उमर दोनों ने इन आरोपों से इनकार किया है।
जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट के आदेश के बाद केंद्रशासित क्षेत्र के प्रशासन ने विवादित रोशनी भूमि योजना के तहत जमीन हासिल करने वालों की लिस्ट सार्वजनिक की है। प्रशासन ने मंगलवार को ऐसे लोगों की एक लिस्ट जारी की है जिन्होंने दूसरों को दी गई जमीन पर कथित तौर पर अतिक्रमण किया। लिस्ट में उल्लेख किया गया है कि विवादित रोशनी कानून के तहत नेशनल कॉन्फ्रेंस के श्रीनगर और जम्मू के हेडक्वार्टरों को भी वैध बनाया गया।

जम्मू के संभागीय प्रशासन ने अपनी वेबसाइट पर लिस्ट जारी कर  खुलासा किया है कि सुजवां में करीब एक एकड़ क्षेत्र में बना फारूक और उमर का आवास अतिक्रमण वाली सरकारी जमीन पर बना है। राजस्व रिकॉर्ड में तो इसे नहीं दिखाया गया, लेकिन इस पर अतिक्रमण किया गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने  कहा कि सूत्रों के आधार पर खबर आई है कि डॉ. फारूक अब्दुल्ला रोशनी कानून के लाभार्थी हैं। यह बिल्कुल झूठी खबर है और गलत मंशा से इस खबर का प्रसार किया जा रहा। जम्मू और श्रीनगर में बने उनके मकानों का उक्त कानून से कोई लेना-देना नहीं है।उमर ने कहा कि फारूक अब्दुल्ला ने श्रीनगर या जम्मू में अपने आवास के लिए रोशनी योजना का लाभ नहीं उठाया। जो भी ऐसा कह रहा है वह झूठ बोल रहा है। सूत्रों के हवाले से आई इस खबर में कोई तथ्य नहीं है। अफसरों ने बताया कि फारूक अब्दुल्ला का मकान 1990 के दशक में बना था जिसके लिए लकड़ियों का आवंटन सरकारी गोदाम से हुआ था। सभी राजस्व रिकार्ड में रिकॉर्ड मिलने के बाद ही यह जारी किया जाता है।

इससे पहले तीन एक्स मिनिस्टर, कई लीडर और एक पूर्व नौकरशाह के नाम लाभार्थियों की सूची में आये थे जिन्होंने रोशनी कानून के तहत जमीन हासिल की। इस कानून को निरस्त किया जा चुका है। संभागीय प्रशासन ने हाई कोर्ट के नौ अक्टूबर के आदेश के तहत सूची सार्वजनिक की। कोर्ट ने रोशनी कानून को ''गैर कानूनी,असंवैधानिक बताया था और इस कानून के तहत भूमि के आवंटन की सीबीआई जांच का आदेश दिया था। कश्मीर के संभागीय प्रशासन ने 35 लाभार्थियों की लिस्ट जारी करते हुए दिखाया है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुख्यालय, कई होटलों और दर्जनों वाणिज्यिक इमारतों को कानून के तहत नियमित घोषित कर दिया गया।

कई हाई प्रोफाइल लोगों के पास जमीनें
कई हाई-प्रोफाइल राजनेताओं, व्यापारियों, नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों को जम्मू और कश्मीर राज्य भूमि अधिनियम, 2001 के तहत भूमि आवंटित की गई है, जिस यहां रोशनी अधिनियम नाम दिया गया है।
द्राबू और उनके फैमिली का भी नाम
लाभार्थियों की सूची में जम्मू-कश्मीर के पूर्व वित्त मंत्री, हसीब द्राबू और उनके परिवार के सदस्य शामिल हैं। द्राबू पिपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के द्राबू ने वर्ष 2015 में जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-भाजपा गठबंधन करवाने में अहम भूमिका निभाई थी। पीडीपी संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद की मृत्यु के बाद, द्राबू को मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था। बाद में उन्होंने पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया था।श्रीनगर के गोगी बाग इलाके में द्राबू और उनके तीन रिश्तेदारों के पास चार कैनाल जमीन है, जो उनके नाम से पंजीकृत है। अधिकारियों के अनुसार एक कैनाल 605 वर्ग गज के बराबर होता है।
कई ब्यूरोक्रेट्स ने भी उठाया फायदा
कांग्रेस से जुड़े प्रमुख व्यवसायी केके अमला और उनके तीन रिश्तेदार 14 रेजीडेंसी रोड और मध्य श्रीनगर के राजबाग इलाके में जमीन के मालिक हैं, उन पर रोशनी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।होटल व्यवसायी, मुश्ताक अहमद चाया के पास गुंजी बाग क्षेत्र में नौ कैनाल जमीन है। पूर्व ब्यूरोक्रेट मुहम्मद शफी पंडित और उनकी पत्नी के पास गोगी बाग इलाके में दो कैनाल जमीन है।पूर्व ब्यूरोक्रेट ह तनवीर जहान राजघराने में एक कैनाल भूमि के मालिक हैं, जो रोशिनी अधिनियम के तहत हस्तांतरित है।
रोशनी एक्ट भूमि घोटाले में बड़ा खुलासा हुआ हैकि इस अधिनयम को लागू करने वाले डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने भी सुंजवां में जो आलिशान बंगला बनाया है, वह सरकारी भूमि पर कब्जा कर बनाया है। उनकी बहन सुरैया मट्टू ने भी रोशनी एक्ट का लाभ उठाते हुए 3 कनाल 12 मरले भूमि अपने नाम की है। उन्होंने इस एक्ट के तहत भूमि अपने नाम करने के लिए उन्हें जो सरकारी खजाने में एक करोड़ रुपये जमा कराने थे, वे भी आज दिन तक जमा नहीं कराए गए हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस का जम्मू स्थित कार्यालय व श्रीनगर में स्थित नेकां के ट्रस्ट का कार्यालय भी डॉ अब्दुल्ला ने रोशनी एक्ट का लाभ उठाते हुए अपने नाम किया है।डॉ फारूक अब्दुल्ला समेत, पीडीपी, कांग्रेस के बड़े-बड़े मंत्री, नेता ही नहीं उनके साथ जुड़े बड़े-बड़े व्यापारियों, व्यावसायियों ने भी इस अधिनियम के नाम पर करोड़ों रुपये की संपत्ति अर्जित की है। 7 कनाल वन भूमि अपने कब्जे में ली है।
 नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रधान, एक्स सीएम व एमपी डॉ फारूक अब्दुल्ला ने वर्ष 1998 में जम्मू के गांव सुंजवां में खसरा नंबर 21 पर अलग-अलग जमीन मालिकों से तीन कनाल भूमि खरीदी। जब डॉ अब्दुल्ला ने इस भूमि पर मकान का निर्माण शुरू किया तो उन्होंने उसके साथ लगते सात कनाल भूमि भी अपने अधीन ले ली। राजस्व विभाग के अनुसार, अतिक्रमण की गई वन भूमि की कीमत आज करीब 10 करोड़ रुपये के करीब है।जब डॉ फारूक अब्दुल्ला ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा किया तो उनके देखादेखी अन्य प्रभावशाली नेताओं, मंत्रियों, नौकरशाहों, न्यायाधीशों, व्यापारियों ने भी सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करना शुरू कर दिया। उसी दौरान सैयद अली अखून ने सुंजवान गांव में 1 कनाल सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया। एक पूर्व न्यायाधीश अली मोहम्मद के बेटे अशफाक अहमद मीर ने भी एक कनाल सरकारी भूमि अपने कब्जे में ले ली।एडवोकेट असलम गोनी (1 कनाल), जेएंडके बैंक के पूर्व चेयरमैन एमवाई खान (1.5 कनाल) और कश्मीर के प्रसिद्ध व्यावसायी मुश्ताक चाया (1.5 कनाल) ने भी उसी गांव की सार्वजनिक भूमि पर कब्जा जमा लिया। 
रोशनी कानून क्या है?

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के निर्देश पर जम्मू कश्मीर प्रशासन ने 25 हजार करोड़ रुपयेके रोशनी जमीन घोटाले के लाभार्थियों के नामों की लिस्ट जारी की है। इनमें कई नेता और प्रभावशाली लोग शामिल हैं। इनमें पीडीपी सरकार में वित्त मंत्री रहे हसीब द्राबू सहित कई मंत्री, उनके परिवार के लोग, पीडीपी, कांग्रेस और एनसी से जुड़े होटल कारोबारी, पूर्व नौकरशाह, बैंकर आदि भी शामिल हैं। इस लिस्ट में उन लोगों के नाम भी शामिल हैं जिन्होंने रोशनी ऐक्ट के अलावा जमीन पर अतिक्रमण किया है।  प्रशासन केंद्र शासित प्रदेश में रोशनी ऐक्ट के तहत ट्रांसफर किये गये सभी जमीन का म्यूटेशन रद्द करने की प्रक्रिया में है।अफसरों के अनुसार पिछले 30 40 सालों में जम्मू-कश्मीर में कई अलग-अलग तरीकों से सरकारी और जंगल की जमीन पर कब्जा किया। अमीर और प्रभावशाली लोगों द्वारा जमीन पर कब्जे को वैध बनाने के लिए कानून भी बनाया गया। वर्ष 2001 में जम्मू-कश्मीर स्टेट लैंड्स एक्ट पास किया गया था। इसे रोशनी योजना के नाम से भी जाना जाता है। इसके तहत प्रावधान किया गया कि सरकारी जमीनों पर कब्जा जमाये लोगों से कुछ पैसे लेकर मालिकाना हक कब्जेदार को दे दिया जायेगा। इस योजना के तहत राज्य में 20 लाख कनाल सरकारी जमीन को अतिक्रमणकारियों को सौंपने की बात कही गई और सरकार को 25 हजार करोड़ रुपए की कमाई का दावा किया गया। रोशनी एक्ट को फारूक अब्दुल्ला सरकार में वित्त मंत्री रहे अब्दुल रहीम राथर ने 2000 के बजट भाषण में पेश किया था। इस कानून को बनाने वाली फारूक अब्दुल्ला की सरकार ने तब सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने वालों को मालिकाना हक देने के लिए कटऑफ वर्ष 1990 तय किया था, लेकिन सरकारी जमीन पर कब्जा जारी रहा और सरकारें कट ऑफ डेट बढ़ाकर इन्हें वैध करती रहीं। 'सैकड़ों एकड़ जंगल और राज्य सरकार की जमीनों पर नेताओं, कारोबारियों और नौकरशाहों की ओर से अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया।

वर्ष 2005 में महबूबा मुफ्ती की अगुआई वाली पीडीपी सरकार ने कट ऑफ को बढ़ाते हुए 2004 कर दिया। गुलाम नबी आजाद की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार ने बाद में कट ऑफ को बदलकर 2007 कर दिया। आरोप है कि रोशनी ऐक्ट को मनमाने, बेइमानी और अवैध रूप से लागू किया गया। वर्ष '2007 में नियमों को बदलाव करते हुए कृषि भूमि को मुफ्त में दिया गया, जबकि शहरी जमीनें कम कीमत पर दी गईं। इसके अलावा कृषि और जंगल की जमीनों पर कॉमर्शल एक्टिविटी शुरू करने की भी इजाजत दे दी गई। 2014 में सीएजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2007 से 2013 के बीच अतिक्रमित भूमि के ट्रांसफर से 76 करोड़ रुपए ही मिले, जबकि लक्ष्य 25 हजार करोड़ रुपए का था। 28 नवंबर 2018 को तब के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने इस कानून को खत्म कर दिया था।  कोर्ट ने रोशनी कानून को ''गैर कानूनी,असंवैधानिक बताया था और इस कानून के तहत भूमि के आवंटन की सीबीआई जांच का आदेश दिया था।जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने रोशनी अधिनियम को गैरकानूनी, असंवैधानिक और अरक्षणीय घोषित किया है। इस कानून के तहत भूमि के आवंटन की सीबीआई जांच का आदेश दिया गया है। सीबीआई ने इस संबंध में अब तक चार मामले दर्ज किये हैं।