Electoral Bonds Scheme: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर लगाई रोक, जनता को जानने का है अधिकार 

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉंड योजना को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया है। लोकसभा चुनाव से पहले सेंट्रल गवर्नमेंट को यह बड़ा झटका लगा है। 

Electoral Bonds Scheme: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर लगाई रोक, जनता को जानने का है अधिकार 
सेंट्रल गवर्नमेंट को लगा बड़ा झटका।
  • लोकसभा इलेक्शन से पहले सेंट्रल गवर्नमेंट को बड़ा झटका
  • चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन
  • चुनावी बॉन्ड योजना, अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉंड योजना को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया है। लोकसभा चुनाव से पहले सेंट्रल गवर्नमेंट को यह बड़ा झटका लगा है। 
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सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। सरकार से पूछना जनता का कर्तव्य है। इस फैसले पर जजों की राय है। चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना है।  कोर्ट ने कहा कि है कि जनता को सूचना का अधिकार है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया साल 2023 के अप्रैल महीने से लेकर अब तक की सारी जानकारियां चुनाव आयोग को दे। आयोग ये जानकारी कोर्ट को दे। 
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवी चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले में सुनवाई कर रहे सभी जजों ने सर्वसम्मति से अपना फैसला सुनाया है। सेंट्रल गवर्नमेंट की चुनावी बॉन्ड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि दो अलग-अलग फैसले हैं - एक उनके द्वारा लिखा गया और दूसरा जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा और दोनों फैसले सर्वसम्मत हैं। सीजेआई ने कहा कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। सरकार से पूछना जनता का कर्तव्य है। इस फैसले पर जजों की राय है। 
चुनावी बॉन्ड को रद्द करना होगा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, चुनावी बॉन्ड योजना, अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द करना होगा। चुनावी बॉन्ड के माध्यम से कॉर्पोरेट योगदानकर्ताओं के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए क्योंकि कंपनियों द्वारा दान पूरी तरह से बदले के उद्देश्य से है। राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयां हैं और चुनावी विकल्पों के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है।सीजेआई ने कहा कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को तीन हफ्ते में सारी जानकारी देनी होगी। काले धन को रोकने के लिए दूसरे रास्ते भी हैं।  बैंक तत्काल चुनावी बांड जारी करना बंद कर दें।
...तो इसलिए मैंने याचिका दायर की: जया ठाकुर
चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर याचिकाकर्ता जया ठाकुर ने कहा, "कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को कितना पैसा और कौन लोग देते हैं इसका खुलासा होना चाहिए। 2018 में जब यह चुनावी बॉन्ड योजना प्रस्तावित की गई थी तो इस योजना में कहा गया था कि आप बैंक से बॉन्ड खरीद सकते हैं। पैसा पार्टी को दे सकते हैं जो आप देना चाहते हैं लेकिन आपका नाम उजागर नहीं किया जायेगा, जो कि सूचना के अधिकार के खिलाफ है।  इन जानकारियों का खुलासा किया जाना चाहिए। इसलिए मैंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की जिसमें मैंने कहा कि यह पारदर्शी होना चाहिए और उन्हें नाम बताना चाहिए और राशि, जिसने पार्टी को राशि दान की।”
कोर्ट ने असीमित योगदान को भी खत्म कर दिया: प्रशांत भूषण
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद  वकील प्रशांत भूषण ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है और इसे लागू करने के लिए किए गए सभी प्रावधानों को रद्द कर दिया है। उन्होंने कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को दिए जा रहे असीमित योगदान को भी खत्म कर दिया है।"
मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, चुनावी बॉन्ड से जुड़ी राजनीतिक फंडिंग पारदर्शिता को प्रभावित करती है और मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है। याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि इस योजना में शेल कंपनियों के माध्यम से योगदान करने की अनुमति दी गई है।
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड, कब हुई थी शुरुआत
भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को कानूनन लागू कर दिया था। आसान भाषा में इसे अगर हम समझें तो इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है। यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है। अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है। इलेक्टोरल बॉन्ड को ऐसा कोई भी दाता खरीद सकता है, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है, जिसकी केवाईसी की जानकारियां उपलब्ध हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है।

योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक की निर्दिष्ट शाखाओं से 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं। चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है, जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है। केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया जा सकता है, जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो।योजना के तहत चुनावी बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए खरीद के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं। इन्हें लोकसभा चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी जारी किया जा सकता है।
ऐसे काम करते हैं चुनावी बॉन्ड
इलेक्टोरल बॉन्ड को इस्तेमाल करना काफी आसान है। ये बॉन्ड 1,000 रुपए के मल्टीपल में पेश किए जाते हैं जैसे कि 1,000, ₹10,000, ₹100,000 और ₹1 करोड़ की रेंज में हो सकते हैं। ये आपको एसबीआई की कुछ शाखाओं पर आपको मिल जाते हैं। कोई भी डोनर जिनका KYC- COMPLIANT अकाउंट हो इस तरह के बॉन्ड को खरीद सकते हैं, और बाद में इन्हें किसी भी राजनीतिक पार्टी को डोनेट किया जा सकता है। इसके बाद रिसीवर इसे कैश में कन्वर्ट करवा सकता है। इसे कैश कराने के लिए पार्टी के वैरीफाइड अकाउंट का यूज किया जाता है। इलेक्टोरल बॉन्ड भी सिर्फ 15 दिनों के लिए वैलिड रहते हैं।
किसे मिलता है इलेक्टोरल बॉन्ड?
देश में जितने भी पंजीकृत राजनीतिक दल हैं, उन्हें यह बॉन्ड मिलता है, लेकिन इसके लिए शर्त यह है कि उस पार्टी को पिछले आम चुनाव में कम-से-कम एक फीसदी या उससे ज्यादा वोट मिले हों। ऐसी ही पंजीकृत पार्टी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा पाने का हकदार होगी। सरकार के मुताबिक, 'इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा और चुनाव में चंदे के तौर पर दिए जाने वाली रकम का हिसाब-किताब रखा जा सकेगा। इससे चुनावी फंडिंग में सुधार होगा।' केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि चुनावी बांड योजना पारदर्शी है।
कब और क्यों की गई थी शुरुआत
2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को फाइनेंस बिल के जरिए संसद में पेश किया था। संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया। इसके जरिए राजनीतिक दलों को चंदा मिलता है। चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है। केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया जा सकता है जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो।
31 मार्च तक चुनावी बॉन्ड का डेटा शेयर करने का निर्देश
कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड तुरंत रोकने के आदेश दिये हैं। अदालत ने निर्देश जारी कर कहा, "स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) चुनावी बांड के माध्यम से अब तक किए गए योगदान के सभी विवरण 31 मार्च तक चुनाव आयोग को दे।" कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह 13 अप्रैल तक अपनी वेबसाइट पर जानकारी शेयर करे।