बिहार: सासाराम में डेढ़ सौ साल पुरानी धूप घड़ी की प्लेट की चोरी, DIG-SP ऑफिस के बगल से उठा ले गये चोर

बिहार के सासाराम जिले में चोरों ने डेढ़ सो साल पुरानी धूप घड़ी को चुरा लिया है। डेहरी पुलिस स्टेशन एरिया के एनीकट सिंचाई वर्कशॉप के पास 1871 में निर्मित धूप घड़ी को अज्ञात चोरों ने मंगलवार रात चोरी कर ली। मॉर्निंग वॉक पर निकले लोगों ने भुधवार की सुबह धूप घड़ी की प्लेट नहीं देखा तो चोरी का पता चला। 

बिहार: सासाराम में डेढ़ सौ साल पुरानी धूप घड़ी की प्लेट की चोरी, DIG-SP ऑफिस के बगल से उठा ले गये चोर
  • 1871 में हुआ था घड़ी का निर्माण 
  • ब्रिटिश शासान काल में बनाया गया था धूप घड़ी 

सासाराम। जिले में चोरों ने डेढ़ सो साल पुरानी धूप घड़ी को चुरा लिया है। डेहरी पुलिस स्टेशन एरिया के एनीकट सिंचाई वर्कशॉप के पास 1871 में निर्मित धूप घड़ी को अज्ञात चोरों ने मंगलवार रात चोरी कर ली। मॉर्निंग वॉक पर निकले लोगों ने भुधवार की सुबह धूप घड़ी की प्लेट नहीं देखा तो चोरी का पता चला। 

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DIG और SP ऑफिस के बगल में चोरी की वारदात
धरोहर के चोरी होने से लोग आक्रोशित हैं। पुलिस मौके पर पहुंच जांच की है। टाउन यह यह एरिया अति सुरक्षित माना जाता है। यहीं शाहाबाद प्रक्षेत्र के डीआइजी, जिले के एसपी, एसडीपीओ, एसडीएम समेत प्रशासनिक अफसरों का आवास और ऑफिस हैं। इस रोड पर 24 घंटे पुलिस अफसरों व पुलिस कर्मियों का आना-जाना लगा रहता है। ऐसे में ऐतिहासिक धूप घड़ी की चोरी को लेकर पुलिस-प्रशासन की लापरवाही पर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं।

 घड़ी को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए गया है प्रोपोजल

धूप घड़ी 1871 में सोन नहर प्रणाली के निर्माण के समय बने सिचाई mechanical workshop में कार्यरत स्टाफ व आइटीआइ के स्टूडेंट्स को समय देखने का काम आता था। अभी भी लोकल लोगों इसके जरिए समय की जानकारी लेते हैं। बिहार की यह इकलौती ऐसी घड़ी है जिससे सूरज के प्रकाश के साथ-साथ समय का पता चलता है। डेढ़ सौ वर्ष पुरानी घड़ी तब से लगातार आज भी लोगों को सही समय बताने का काम कर रही थी।रखरखाव के अभाव में इस धरोहर को नुकसान पहुंच रहा था। हाल ही जिला प्रशासन ने इस घड़ी को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए प्रोपोजल पर्यटन विभाग को भेजा था।
सूर्य की रोशनी से मिलती थी समय की जानकारी

सिचाई विभाग के mechanical workshop के सामने चबूतरे पर स्थापित धूप घड़ी में रोमन और हिंदी में अंक अंकित है। इस पर सूर्य के प्रकाश से समय देखा जाता था। इसी के चलते इसका नाम धूप घड़ी रखा गया था। कहा जाता है कि जब घड़ी आम लोगों की पहुंच से दूर थी तब इसका बहुत महत्व था। mechanical workshop में काम करने वाले श्रमिकों और आईटीआई के छात्रों को समय का ज्ञान कराने के लिए यह स्थापित की गई थी। घड़ी के बीच में मेटल की तिकोनी  प्लेट लगी थी। कोण  के माध्यम से उस पर नंबर अंकित है। उन्होंने बताया कि ऐसा यंत्र है जिससे दिन में समय की गणना की जाती है। इसे नोमान कहा जाता है। यंत्र इस सिद्धांत पर काम करता है कि दिन में जैसे जैसे से सूर्य पूर्व से पश्चिम की तरफ जाता है उसी तरह किसी वस्तु की छाया पश्चिम से पूर्व की तरफ चलती है। सूर्य लाइनों वाली सतह पर छाया डालता है। जिससे दिन के समय का पता चलता है। समय की विश्वसनीयता के लिए धूप घड़ी को पृथ्वी की परिक्रमा की धुरी की सीध  में रखना होता है।