बिहार: बीजेपी ने सम्राट चौधरी को सौंपी कुढ़नी की कमान, में साहनी की उपेक्षा को भुनाने की कोशिश

बीजेपी ने कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में वैश्य समाज से आने वाले केदार गुप्ता को कैंडिडेट बनाने के साथ ही पूरे चुनाव प्रबंधन की कमान विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता सम्राट चौधरी को सौंप दी है। चौधरी के नेतृत्व में ही उपचुनाव लड़ने का निर्णय किया है। चौधरी कुशवाहा समुदाय से आते हैं। ऐसे में महागठबंधन के कुशवाहा कैंडिडेट को शिकस्त देने के लिए भाजपा ने यह रणनीति तय की है। 

बिहार: बीजेपी ने सम्राट चौधरी को सौंपी कुढ़नी की कमान, में साहनी की उपेक्षा को भुनाने की कोशिश
  • सुरेश शर्मा , राजेश वर्मा व राजेंद्र सिंह को संगठन के स्तर पर समन्वय की जिम्मेदारी 
  • उल्टा भी पड़ सकता है बीजेपी का दांव
  • बोचहां व मोकामा में झटका लगने के बाद भी बीजेपी नहीं कर पा रही बदलाव
पटना। बीजेपी ने कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में वैश्य समाज से आने वाले केदार गुप्ता को कैंडिडेट बनाने के साथ ही पूरे चुनाव प्रबंधन की कमान विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता सम्राट चौधरी को सौंप दी है। चौधरी के नेतृत्व में ही उपचुनाव लड़ने का निर्णय किया है। चौधरी कुशवाहा समुदाय से आते हैं। ऐसे में महागठबंधन के कुशवाहा कैंडिडेट को शिकस्त देने के लिए भाजपा ने यह रणनीति तय की है। 
अहम यह है कि सम्राट चौधरी के लिए समाज को साधने की जिम्मेदारी बड़ी चुनौती भी है। बीजेपी सामाजिक स्तर पर समुदाय विशेष को साधने के लिए प्रदेश संगठन से भी अलग-अलग नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसमें मुख्य रूप से पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा और प्रदेश उपाध्यक्ष राजेश वर्मा के अलावा पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष व महामंत्री रहे राजेंद्र सिंह को संगठन के स्तर पर समन्वय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वहीं, संगठन के स्तर पर पंचायतवार एमएलए को कैंपेंनिंग की जिम्मेदारी सौंपी गई है। संगठन स्तरीय मंडल में पार्टी के प्रदेश पदाधिकारियों को लगाया गया है। विस्तारकों की फील्डिंग बूथ स्तर पर सजाई गई है।
बीजेपी को सामाजिक समीकरण पर भरोसा
बीजेपी को वर्तमान राजनीतिक समीकरण के कारण कुढ़नी की जनता से ज्यादा उम्मीद है। कारण यह है कि पिछले दो चुनाव से जदयू जिसके पक्ष में रहा, उस कैंडिडेट की कुढ़नी में हार हुई। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में यह प्रमाणित हो चुका है। 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू महागठबंधन के साथ था। जदयू के मनोज कुशवाहा को बीजेपी के केदार गुप्ता ने पटकनी दे थी। वहीं, 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ) के साथ था। ऐसे में बीजेपी के केदार गुप्ता मात्र 712 वोट से आरजेडी कैंडिडेट अनिल साहनी से हार गए थे। अब बीजेपी को इस बार कुढ़नी में सत्ता विरोधी समीकरण से लाभ मिलने की उम्मीद है। बीजेपीव्यवसायी वर्ग के बीच बढ़े आपराधिक घटनाओं को भाजपा भुनाने की तैयारी कर रही है।
साहनी की उपेक्षा को भुनाने की तैयारी
बीजेपीअनिल साहनी के परिवार के उपेक्षा को कुढ़नी में मुद्दा बनायेगी। बीजेपी का आरोप है कि महागठबंधन जब राजद के बाहुबली अनंत सिंह, राजबल्लभ यादव, पूर्व मंत्री इलियास हुसैन और शहाबुद्दीन के सजायाफ्ता होने बाद सभी के परिवार पर भरोसा किया था। उपचुनाव में उनके परिवार से प्रत्याशी बनाया था तो फिर अनिल साहनी के परिवार की उपेक्षा क्यों ? साहनी समाज के बीच बीजेपीने इसे मुद्दा बनाने की रणनीति तय की है। 
उल्टा भी पड़ सकता है बीजेपी का दांव
बीजेपी का सामाजिक समीकरण का दांव बोचहां की तरह कुढ़नी में उल्टा पड़ सकता है। बीजेपी के कोर वोटर भूमिहार समुदाय का आंतरिक रुप में विरोधी माने जाने वाले एक सेंट्रल लीडर, एक एक्स मिनिस्टर के हाथ में ही परदे के पीछे से बोचहां की तरह कुढ़नी उपचुनाव की जिम्मेवारी है। सेंट्रल के लेवल के एक लीडर बिहार के सीएम कैंडिडेट की सपना देख रहे हैं। मुजफ्फरपुर के भूमिहारों का बड़ा वर्ग उस लीडर के खिलाफ है। कहा तो जा रहा है कि सीएम नीतीश कुमार से पहले बीजेपी कोटे के मिनिस्टर रहे सम्राट चौधरी ने भी तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष को अपमानित किया था। बीजेपी के किसी सीनीयर लीडर से श्री चौधरी से सवाल करना तक उचित नहीं समझा था। बीजेपी के कुछ नेता जिस तरह अनंत सिंह के खिलाफ मोकामा में जाकर या मीडिया में आक्रामक रुख अपनाते हुए बयानबाजी की उसका भूमिहार वर्ग में गलत संदेश गया। मोकामा में अनंत के जीत के बाद बीजेपी नेताओं का अब भाषा बदल गया है। बोचहां उपचुनाव के दौरान एक्स मिनिस्टर सुरेश शर्मा की अनदेखी की गयी। आरजेडी से बीजेपी में आकर मिनिस्टर बने एक नेता का विशेष तरजीह दी गयी, जिसका बुरा परिणाम हुआ। 
आरजेडी एमएलए को एलटीसी घोटाले में हुई थी सजा 
आरजेडी एमएलए अनिल साहनी के खिलाफ कोर्ट ने एलटीसी घोटाले में सजा सुनाई थी। इस वजह से साहनी की सदस्यता चली गई। इसके बाद अनिल साहनी की मांग थी कि परिवार के सदस्य को प्रत्याशी बनाया जाए। ऐसा नहीं हुआ। इस वजह से आरजेडी और महागठबंधन से अनिल साहनी परिवार ने दूरी बना ली है।