देश के जेलों में बंद 6.10 लाख कैदियों में से 80 प्रतिशत विचाराधीन: चीफ जस्टिस  एनवी रमना

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने ने कहा कि देश के 6.10 लाख कैदियों में से लगभग 80 प्रतिशत विचाराधीन कैदी हैं। उन्होंने देश में विचाराधीन कैदियों की बड़ी संख्या पर चिंता जताते हुए कहा कि यह आपराधिक न्याय प्रणाली को प्रभावित कर रही है। चीफ जस्टिस ने यह बातें जयपुर में ऑल इंडिया लीगल सर्विसेज के एक कार्यक्रम में कही। 

देश के जेलों में बंद 6.10 लाख कैदियों में से 80 प्रतिशत विचाराधीन: चीफ जस्टिस  एनवी रमना
  • बंद कैदियों की संख्या पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत
  • देश भर की अदालतों में लगभग पांच करोड़ करोड़ मामले लंबित

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने ने कहा कि देश के 6.10 लाख कैदियों में से लगभग 80 प्रतिशत विचाराधीन कैदी हैं। उन्होंने देश में विचाराधीन कैदियों की बड़ी संख्या पर चिंता जताते हुए कहा कि यह आपराधिक न्याय प्रणाली को प्रभावित कर रही है। चीफ जस्टिस ने यह बातें जयपुर में ऑल इंडिया लीगल सर्विसेज के एक कार्यक्रम में कही। 

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उन्होंने कहा कि उन प्रक्रियाओं पर सवाल उठाना होगा जिनके कारण लोगों को बिना मुकदमे के लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है।  भेदभावपूर्ण गिरफ्तारी से लेकर जमानत पाने तक और विचाराधीन बंदियों को लंबे समय तक जेल में बंद रखने की समस्या पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। देश की आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा आपराधिक न्याय प्रणाली में पूरी प्रक्रिया एक तरह की सजा है। उन्होंने कहा कि लक्ष्य विचाराधीन कैदियों की जल्द रिहाई को सक्षम करने तक सीमित नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा इसके बजाय, हमें उन प्रक्रियाओं पर सवाल उठाना चाहिए जो बिना किसी मुकदमे के बड़ी संख्या में लंबे समय तक कैद की ओर ले जाती हैं। दुख की बात है कि देश विधायी प्रदर्शन की गुणवत्ता में गिरावट देख रहा है। उन्होंने कहा कि कानूनों को व्यापक विचार-विमर्श और जांच के बिना पारित किया जा रहा है।

देश भर की अदालतों में लगभग पांच करोड़ करोड़ मामले लंबित:किरेन रिजिजू

कार्यक्रम में केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि चिंता की बात यह है कि आज देश भर की अदालतों में लगभग पांच करोड़ करोड़ मामले लंबित हैं। इन मामलों को कम करने के लिए सरकार और न्यायपालिका को मिलकर काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कल मैनें अपने डिपार्टमेंट के ऑफिसर से बात की है कि कुछ ऐसा ठोस कदम उठाना चाहिए जिससे हम दो करोड़ केस को दो साल में खत्म कर सकें। मैं कहीं भी जाता हूं तो पहला सवाल मेरे सामने यही आता है कि सरकार पेंडिंग केस को खत्म करने के लिए क्या कदम उठा रही है। उन्होंने देश की अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए इसे चुनौती बताया। मिनिस्टर ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव काल में देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या लगभग पांच करोड़ पहुंचने वाली है। न्यायपालिका व सरकार के बीच तालमेल होनी चाहिए और आवश्यकता अनुसार विधायिका को अपनी भूमिका निभानी चाहिए, ताकि इस संख्या को कम करने के लिए हर संभव कदम उठाए जा सके।

अगर कोई एडवोकेट अंग्रेजी बोलता है तो फीस और इज्‍जत ज्यादा क्यों?

किरण रिजिजू ने कहा कि  मैं बिलकुल इस पक्ष में नहीं हूं कि जो वकील अंग्रेजी ज्यादा बोलता है, उसे ज्यादा इज्जत मिले, उसको ज्यादा फीस मिले, उसे ज्यादा केस मिले। मैं इसके खिलाफ हूं। अपनी मातृभाषा को किसी भी रूप में अंग्रेजी से कमतर नहीं मानना चाहिए। अगर मुझे अंग्रेजी नहीं बोलनी आती और मुझे मातृभाषा में बोलना सहज लगता है तो मुझे अपनी मातृभाषा में बोलने की आजादी होनी चाहिए। रिजिजू ने अपना लगभग पूरा संबोधन हिंदी में दिया।

रिजिजू ने अदालतों में स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की वकालत
सेंट्रल लॉ मिनिस्टर किरण रिजिजू ने अदालतों में स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की पुरजोर वकालत की है। उन्‍होंने कहा कि अदालत की भाषा अगर आम हो जाए, तो हम कई समस्याओं को हल कर सकते हैं। उन्होंने सवाल किया कि अंग्रेजी बोलने वाले वकील की फीस ज्यादा क्यों हो और क्यों उसे ज्यादा इज्जत मिले। मंत्री ने कहा कि मातृभाषा को अंग्रेजी से कमतर नहीं माना जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने कार्यपालिका व न्यायपालिका के बीच बेहतर तालमेल पर जोर दिया और कहा कि न्याय के दरवाजे सभी के लिए समान रूप से खुले होने चाहिए।

रिजिजू  विधिक सेवा प्राधिकरणों के दो दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए सुप्रीम कोर्ट में तो बहस से लेकर फैसले सब अंग्रेजी में होते हैं। लेकिन हाई कोर्ट को लेकर हमारी सोच है कि उनमें आगे जाकर स्थानीय व क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, कई वकील हैं जो कानून जानते हैं, लेकिन अंग्रेजी में उसे सही ढंग से पेश नहीं कर पाते। कोर्ट में अगर आम भाषा का उपयोग होने लगे तो इससे कई समस्याएं हल हो सकती हैं। अगर कोई वकील अंग्रेजी बोलता है, तो उसकी फीस ज्यादा होती है, ऐसा क्यों होना चाहिए? अगर मुझे अंग्रेजी नहीं बोलनी आती और मुझे मातृभाषा में बोलना सहज लगता है तो मुझे अपनी मातृभाषा में बोलने की आजादी होनी चाहिए।

10 लाख तक फीस लेते हैं सुप्रीम कोर्ट में कुछ वकील
लॉ मिनिस्टर ने कुछ वकीलों की भारी भरकम फीस को लेकर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘जो लोग अमीर होते हैं, वे अच्छा वकील कर लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट में कई वकील ऐसे हैं, जिनकी फीस आम आदमी नहीं दे सकता है। एक-एक केस में हाजिर होने के अगर 10 या 15 लाख रुपये लेंगे, तो आम आदमी कहां से लाएगा?’ उन्होंने कहा, ‘कोई भी अदालत कुछ विशिष्ट लोगों के लिए नहीं होनी चाहिए। आम आदमी को अदालत से दूर रखने वाला हर कारण हमारे लिए बहुत चिंता का विषय है। मैं हमेशा मानता हूं कि न्याय का द्वार सबके लिए हमेशा व बराबर खुला रहना चाहिए।’ रिजीजू ने कहा कि सरकार ने अब तक 1486 अप्रासंगिक कानूनों को रद्द किया है, साथ ही ऐसे और 1824 कानून चिह्नित किये गये हैं। उन्होंने कहा कि सरकार संसद के आगामी सत्र में ऐसे लगभग 71 कानूनों को हटाने को प्रतिबद्ध है।