सुप्रीम कोर्ट : शादी के लिए तय उम्र नहीं तो लिव-इन में रह सकते हैं कपल

नई दिल्ली। हादिया मामले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अब एक और मामले में केरल हाईकोर्ट के शादी रद्द करने के फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने कहा कि विवाह हो जाने पर उसे रद्द नहीं किया जा सकता। साथ ही कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को वैध माना है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि शादी के बाद भी अगर वर- वधू में से कोई भी विवाह योग्य उम्र से कम हो तो वो लिव इन रिलेशनशिप में साथ रह सकते हैं। इससे उनके विवाह पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने के अधिकार को ना तो कोई कोर्ट कम कर सकता है ना ही कोई व्यक्ति, संस्था या फिर संगठन। अगर युवक विवाह के लिए तय उम्र यानी 21 साल का नहीं हुआ है तो भी वह अपनी पत्नी के साथ ‘लिव इन’ रह सकता है। केरल हाई कोर्ट ने पुलिस को हैबियस कॉर्पस के तहत लड़की को अदालत में पेश करने का निर्देश दिया। पेशी के बाद कोर्ट ने विवाह रद्द कर दिया। लड़की को उसके पिता के पास भेज दिया गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि दोनों हिंदू हैं और इस तरह की शादी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत एक शून्य विवाह नहीं है। धारा 12 के प्रावधानों के अनुसार, इस तरह के मामले में यह पार्टियों के विकल्प पर केवल एक अयोग्य शादी है।