स्किन-टू-स्किन कान्टैक्ट के बिना भी माना जायेगा यौन उत्पीड़न, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया बाम्बे हाईकोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने स्किन-टू-स्किन कान्टैक्ट मामले में लेकर बाम्बे हाई कोर्ट के फैसले को रद कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि कानून का उद्देश्य क्रिमिनल को कानून के जाल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता है। बाम्बे हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि पॉक्सो ऐक्ट के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध तभी माना जा सकता है, जब आरोपी और पीड़िता के बीच स्किन कॉन्टेक्ट हुआ हो।

स्किन-टू-स्किन कान्टैक्ट के बिना भी माना जायेगा यौन उत्पीड़न, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया बाम्बे हाईकोर्ट का फैसला

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने स्किन-टू-स्किन कान्टैक्ट मामले में लेकर बाम्बे हाई कोर्ट के फैसले को रद कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि कानून का उद्देश्य क्रिमिनल को कानून के जाल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता है। बाम्बे हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि पॉक्सो ऐक्ट के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध तभी माना जा सकता है, जब आरोपी और पीड़िता के बीच स्किन कॉन्टेक्ट हुआ हो।

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महाराष्ट्र सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग और अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी अपील
बाम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग और अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए ही जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस. रविंद्र भट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की बेंच ने फैसले को खारिज कर दिया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अब साफ कर दिया है कि पाक्सो एक्ट में फिजिकल कान्टैक्ट के मायने सिर्फ स्किन-टू-स्किन टच नहीं है। सेशन कोर्ट ने आरोपी को पाक्सो अधिनियम और आइपीसी की धारा 354 के तहत अपराधों के लिए तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी। 

 कोर्ट अस्पष्टता पैदा करने में अति उत्साही नहीं हो सकती
जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन इरादा है, न कि बच्चे के साथ स्किन-टू-स्किन कान्टैक्ट। जब विधायिका ने इसपर स्पष्ट इरादा व्यक्त किया है, तो अदालतें प्रावधान में अस्पष्टता पैदा नहीं कर सकती हैं। अदालतें अस्पष्टता पैदा करने में अति उत्साही नहीं हो सकती हैं।महाराष्ट्र सरकार ने बाम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले को अपमानजनक करार दिया था और सुप्रीम कोर्ट से इसे रद्द करने का आग्रह किया था। इस फैसले की आलोचना करते हुए उन्होंने तर्क दिया था कि सर्जिकल दस्ताने पहनने वाला व्यक्ति एक महिला के पूरे शरीर को टोटल कर सकता है और फिर वह किसी भी सजा से बच सकता है।अपील पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने 27 जनवरी को हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। 

यह है मामला
अभियोजन पक्ष के अनुसार मामला 14 दिसंबर 2016 का है। जब लड़की की मां ने पुलिस के सामने बयान दिया था कि आरोपी उनकी 12 साल की बेटी को कुछ खिलाने के बहाने ले गया। उसके साथ गलत हरकत की। उसके कपड़े खोलने की कोशिश की और उसके अंदरूनी अंग को कपड़े के ऊपर से दबाया। लोअर कोर्ट आरोपी को दोषी करार दिया और तीन साल कैद की सजा सुनाई थी। हालांकि, हाई कोर्ट ने आदेश में बदलाव किया और मामले को पोक्सो के तहत सेक्सुअल असॉल्ट न मानकर आईपीसी की धारा-354 के तहत छेड़छाड़ माना था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि बिना कपड़े को हटाये, ये मामला पोक्सो के तहत सेक्सुअल असॉल्ट का नहीं बनता।