Jharkhand : हेमंत सोरेन की वाइफ कल्पना सोरेन नहीं बन सकतीं झारखंड की CM, बॉम्बे हाई कोर्ट का आदेश है राह में रोड़ा

झारखंड की सत्ताधारी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के एमएलए सरफराज अहमद द्वारा विधायक पद से इस्तीफा दिये जाने के बाद सियासी तूफान मचा हुआ है। इस बात की चर्चा जोरों पर है कि राज्य के सीएम हेमंत सोरेन अब अपनी वाइफ कल्पना सोरेन को सीएम बना सकते हैं, क्योंकि उन पर ईडी का शिकंजा कस रहा है। गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी है। 

Jharkhand : हेमंत सोरेन की वाइफ कल्पना सोरेन नहीं बन सकतीं झारखंड की CM, बॉम्बे हाई कोर्ट का आदेश है राह में रोड़ा
कल्पना सोरेन व हेमंत सोरेन (फाइल फोटो)।
  • अगर कोई सीएम एमएलए नहीं है तो उसे पद ग्रहण करने के छह महीने के अंदर विधानमंडल के किसी भी सदन की सदस्यता लेनी होगी
रांची। झारखंड की सत्ताधारी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के एमएलए सरफराज अहमद द्वारा विधायक पद से इस्तीफा दिये जाने के बाद सियासी तूफान मचा हुआ है। इस बात की चर्चा जोरों पर है कि राज्य के सीएम हेमंत सोरेन अब अपनी वाइफ कल्पना सोरेन को सीएम बना सकते हैं, क्योंकि उन पर ईडी का शिकंजा कस रहा है। गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी है। 

ईडी की ओर से उन्हें सातवीं और आखिरी बार समन मिला है। सातवें समन में ईडी ने पूछताछ के लिए जगह, तिथि व समय बताने के लिए लिखा था, ताकि पूछताछ की जा सके। लेकिन सीएम ने जो जवाब भेजा है। उसमें जगह, तिथि व समय का कोई उल्लेख नहीं है। सीएम ने सातवें समन को गैरकानूनी बताया है। झारखंड के सियासी गलियारों में यह चर्चा है कि ईडी से गिरफ्तारी होने की स्थिति मं सीएम हेमंत सोरेन पद से इस्तीफा देकर वाइफ कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बना सकते हैं। बीजेपी के झारखंड प्रसिडेंट बाबूलाल मरांडी व गोड्डा एमपी निशिकांत दूबे ने भी अपने सोशल मीडिया X पर लिखा है कि हेमंत सोरेन अपनी वाइफ सीएम बना सकते हैं। निशकांत ने संदेह जताया हैलेकिन कल्पना के सीएम बननेकी राह में कई रोड़े हैं।

हसबैंड की सीट से नहीं लड़ सकतीं चुनाव
दरअसल, कल्पना सोरेन झारखंड विधानसभा की सदस्य नहीं हैं। ऐसे में अगर वह सीएम बनाई जाती हैं तो उन्हें छह महीने के अंदर विधानसभा की सदस्यता लेनी होगी। उनके हसबैंड हेमंत सोरेन फिलहाल बरहेट विधान सभा सीट से एमएलए हैं, जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। कल्पना सोरेन पड़ोसी राज्य ओडिशा के मयूरभंज की रहनेवाली हैं। आदिवासी नहीं हैं। इसलिए वह हसबैंड द्वारा सीट छोड़े जानेके बावजूद बरहेट सीट पर चुनाव नहीं लड़ सकती हैं।
गांडेय जेएमएम का गढ़, पांच बार मिली है पार्टी को जीत इसीलिए, माना जा रहा है कि कल्पना के लिए एक अनारक्षित सीट खाली करवाई गई है। विधायकी छोडने वाले सरफराज अहमद गांडेय अनारक्षित सीट से एमएलए थे। यह सीट जेएमएम का गढ़ रहा है। यह आदिवासी और मुस्लिम बहुल इलाका है। यहां से 1985, 1990, 2000, 2005 और 2019 में कुल पांच बार जेएमएम की जीत हो चुकी है। सरफराज अहमद भी यहां से दो बार विधायकी का चुनाव जीत चुके हैं। 2019 में सरफराज ने यहां 8855 वोटों के अंतर से बीजेपी कैंडिडेट को हराया था। ऐसे में यहां उपचुनाव में कल्पना सोरेन की जीत आसानी से हो सकती है।

सरफराज को मिल सकता है सीट छोड़ने का इनाम, राज्यसभा भेजे जायेंगे
झारखंड के राजनीतिक गलियारों में ये भी चर्चा है कि गांडेय सीट छोड़नेवाले सरफराज अहमद को त्याग का इनाम भी दिया जा सकता है। फरवरी-मार्च में होनेवाले द्विवार्षिक राज्यसभा चुनावों में पार्टी उन्हें राज्यसभा भेज सकती है। सरफराज अहमद सीनीयर हैं।एकीकृत बिहार में वह कांग्रेस के प्रसिडेंट भी रह चुके हैं। संयुक्त बिहार में वह गांडेय सीट से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। गिरिडीह का एमपी भी रहे हैं।

कल्पना के राह में रोड़ा 
बररहाल, कल्पना सोरेन की मुश्किल यहीं खत्म नहीं होती। उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा बॉम्बे हाई कोर्ट का वह आदेश है, जिसमें कहा गया था कि अगर चुनाव होने में एक साल या उससे कम समय शेष हो तो उप चुनाव नहीं कराये जा सकते हैं। महाराष्ट्र की काटोल विधानसभा सीट पर उप चुनाव को लेकर दायर अर्जी पर हाई कोर्ट ने 2019 में यह आदेश दिया था। वहां चुनाव होने में एक साल 50 दिन का समय शेष था।
झारखंड विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने में भी अब एक साल का समय रह गया है। ऐसे मेंअगर उप चुनाव की घोषणा होती है और चुनाव की तारीखों का ऐलान होता है तो इस मुद्दे को कोर्ट में घसीटा जा सकता है। बीजेपी एमपी निशिकांत दूबे ने इस बारे में भी कर झारखंड के गवर्नर से पूछा है कि अगर कल्पना सोरेन जी कहीं से विधायक नहीं बन सकती हैं, तो उन्हें सीएम कैसे बनाया जा सकता है? दूबे ने गवर्नर सेइस बारे में विचार करने को भी कहा है।
यह है कानून
संविधान के अनुच्छेद 164 (1) में बताया गया है कि राज्य का गवर्नर सीएम की नियुक्ति करेगा। संविधान में सीएम की नियुक्ति की प्रक्रिया वैसी ही जैसी भारत के प्रधानमंत्री की नियुक्ति की है। अनुच्छेद 164 (1) के तहत मुख्यमंत्री पद के लिए योग्यता वही है जो विधायक की योग्यता है लेकिन इसमें बड़ी और रोचक बात यह है कि यह जरूरी नहीं हैकि जिसे मुख्यमंत्री या मंत्री पद पर नियुक्त किया गया हो, वह विधानसभा या विधानमंडल का सदस्य हो ही। ऐसी दशा में संविधान के अनुच्छेद 164(4) के अनुसार उन्हें पद ग्रहण करनेके छह महीने के अंदर विधानमंडल के किसी भी सदन की सदस्यता लेनी होगी। उनके ससुर शिबू सोरेन भी2009 में ऐसा कर चुके हैं। हालांकि, छह महीने बाद हुए तमाड़ उपचुनाव वह हार गये थे, तब उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।
झारखंड में विधान परिषद नहीं है, इसलिए सीएम बनने की सूरत में कल्पना सोरेन को छह महीने के अंदर विधायकी का चुनाव जीतना होगा। ऐसा नहीं होने पर उन्हें छह महीने बाद स्वत: पद त्यागना होगा। ये अलग बात है कि उनकी पार्टी चाहे तो फिर सेउन्हें दोबारा बिना विधायक बने अगले छह महीनेके लिए सीएम बना सकती है। तब तक चुनाव की तारीख आ जायेगी लेकिन इसमें सबसे बड़ी मुश्किल राजनीतिक जनाधार और विपक्ष के हमलावर होने की आशंका है। दूसरी तरफ ये भी आशंका है कि बीजेपी की चिंताओं के मुताबिक गवर्नर भी चाहें तो कल्पना सोरेन के नाम पर रोड़ा अटका सकते हैं।
चुनाव नहीं कराया जा सकता : निशिकांत दुबे 
सरफराज अहमद के इस्तीफे के साथ ही राज्य का राजनीतिक तापमान बढ़ गया है। गोड्डा के भाजपा सांसद डॉ. निशिकांत दुबे ने कहा है कि गांडेय में विधानसभा का चुनाव नहीं कराया जा सकता है। इस संबंध में उन्होंने मुंबई हाईकोर्ट के काटोल विधानसभा के निर्णय का हवाला दिया है। उन्होंने एक्स पर लिखा- अब गांडेय में चुनाव नहीं हो सकता। काटोल विधानसभा जब महाराष्ट्र में ख़ाली हुआ तब विधानसभा का कार्यकाल एक साल 50 दिन ख़ाली था। राज्यपाल महोदय, यदि कल्पना सोरेन कहीं से विधायक नहीं बन सकती हैं तो मुख्यमंत्री कैसे बनेंगी? झारखंड को कांग्रेस चारागाह बनाने की कोशिश कर रही है।