धनबाद: उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ महापर्व संपन्न

लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ कोयलांचल में धूमधाम के साथ मनाया गया। शनिवार को सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ महापर्व का समापन हो गया

धनबाद: उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ महापर्व संपन्न

धनबाद। लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ कोयलांचल में धूमधाम के साथ मनाया गया। शनिवार को सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ महापर्व का समापन हो गया। दामोदर और बराकर नदी के साथ ही धनबाद जिले के टाउन एरिया, कोलियरी इलाका व गांव से नदी,तालाब व डैम के किनारे सभी घाटों पर श्रद्धालुओं ने उगते सूर्य को अर्घ्य दिया। 

18 नवंबर को नहाय खाय के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ का शुभारंभ शुरू हुआ था। इसके अगले दिन  19 नवंबर को खरना का व्रत था। खरना की पूजा के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हुआ। 20 नवंबर की शाम छठ घाटों पर व्रतियों ने डूबते हुए सूरज को अर्घ दिया। उदीयमान सूर्य  को अर्घ्य देने के साथ ही छठ महापर्व संपन्न हो जायेगा।  

शुक्रवार को सर्वार्थ सिद्धि योग में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद अब बारी उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देने की थी। एक दिन पहले हुई बारिश के कारण टेंपरेचर अचानक से नीचे गिरने से ठंड के बावजूद आस्था में कमी नहीं दिखी।

अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के समय जितनी भीड़ यहां उमड़ी थी, उतने ही श्रद्धालु उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने को आतुर दिखे। बादल होने की वजह सूर्य देवता बादल की ओट में छिपे रहे। उदीयमान सूर्य के निर्धारित समय 6:10 से श्रद्धालुओं ने पूजा करनी शुरू कर दी। 

शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि बुधवार, 18 नवंबर को नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व प्रारंभ हुआ था। इसके अगले दिन शुक्ल पक्ष की पंचमी गुरुवार को खरना का विधान किया गया था। खरना की शाम को रसियाव (गुड़ वाली खीर) का विशेष प्रसाद बनाकर छठ माता और सूर्य देव की पूजा के व्रत रखा गया था। इसके बाद षष्ठी तिथि शुक्रवार 20 नवंबर को पूरे दिन निर्जल रहकर शाम के समय अस्त होते सूर्य को नदी या तालाब में खड़े होकर अर्घ्य दिया गया। इसके बाद आज (शनिवार) सूर्य उदय के साथ छठ पर्व संपन्न हो गया। 

उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही शनिवार को लोक आस्था का महापर्व छठ संपन्न हो गया। चार दिवसीय छठ महापर्व के अंतिम दिन आज सुबह धनबाद जिले के विभिन्न के घाटों पर भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया गया। सूर्योपासना और अर्घ्य के बाद व्रतियां और श्रद्धालु अपने-अपने घरों की ओर लौ गये।