Bihar: जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका इतिहास, कृष्णैया केस में अधिकारी संगठनों की चुप्पी आश्चर्यजनक: सुशील मोदी 

बिहार के एक्स डिप्टी सीएम व बीजेपी के राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी ने कहा कि ड्यूटी पर रहते एक दलित आईएएस अफसर जी. कृष्णय्या की मर्डर के मामले में दोषी एक्स एमपी आनंद मोहन  को जेल मैन्युअल से छेड़छाड़ कर रिहा करने की हर जगह निंदा हो रही है। लेकिन आईएएस अफसर के दोषी की रिहाई पर अधिकारियों के संगठनों ने विरोध करना तो दूर, सरकार के डर से एक निंदा प्रस्ताव तक पारित नहीं किया। ऐसी तटस्थता, डर और चुप्पी को इतिहास क्षमा नहीं करेगा।

Bihar: जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका इतिहास, कृष्णैया केस में अधिकारी संगठनों की चुप्पी आश्चर्यजनक: सुशील मोदी 

पटना। बिहार के एक्स डिप्टी सीएम व बीजेपी के राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी ने कहा कि ड्यूटी पर रहते एक दलित आईएएस अफसर जी. कृष्णय्या की मर्डर के मामले में दोषी एक्स एमपी आनंद मोहन  को जेल मैन्युअल से छेड़छाड़ कर रिहा करने की हर जगह निंदा हो रही है। लेकिन आईएएस अफसर के दोषी की रिहाई पर अधिकारियों के संगठनों ने विरोध करना तो दूर, सरकार के डर से एक निंदा प्रस्ताव तक पारित नहीं किया। ऐसी तटस्थता, डर और चुप्पी को इतिहास क्षमा नहीं करेगा।

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सुशील मोदी ने कहा कि आनंद मोहन की रिहाई पर बिहार प्रशासनिक सेवा संघ और आईएएस एसोसिएशन की राज्य इकाई की चुप्पी आश्चर्यजनक है। उन्होंने इस मुद्दे पर राष्ट्रकवि दिनकर की पंक्ति याद करते हुए कहा - "जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी इतिहास।" जेल मैन्युअल को शिथिल कर राजनीतिक मंशा से 27 दुर्दांत अपराधियों की रिहाई के लिए लोक सेवक और आम नागरिक में अंतर समाप्त करने का सीएम नीतीश कुमार का तर्क बिल्कुल बचकाना है।

सुशील मोदी ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को यदि आम लोगों से अलग और अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करने वाले नियम-कानून हैं, तो इसलिए कि वे निर्बाध ढंग से और निडर होकर अपने कर्तव्य का पालन कर सकें। क्या नीतीश कुमार जेल मैनुअल में संशोधन के बाद हर कानून में ऐसी समानता ला सकते हैं?

मोदी ने कहा-क्या चुनाव लड़ने का भी अधिकार देंगे
सुशील मोदी ने कहा किआईपीसी की धारा-353 लोक सेवकों के सरकारी कामकाज में बाधा डालने पर लागू होती है, लेकिन अन्य पर नहीं। क्या इस अंतर को भी समाप्त किया जाएगा?

लोकसेवकों को विशेष सुरक्षा देने वाले कई कानून हैं, तो कुछ कानून उन पर विशेष प्रतिबंध भी लगाते हैं। लोक सेवकों को आम लोगों की तरह चुनाव लड़ने और राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार नहीं है। क्या यहां भी आम और खास का अंतर खत्म किया जायेगा?