6th JPSC से अफसर बने 60 कैंडिडेट्स को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, झारखंड हाईकोर्ट का फैसला रद

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से 6th JPSC से बहाल हुए उन 60 अफसरों को बड़ी राहत मिली है, जिनकी नौकरी खतरे में थी। छठी जेपीएससी के संशोधित मेरिट लिस्ट के बाद 60 अफसर बाहर हो गये थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने छठी जेपीएससी की संशोधित मेरिट लिस्ट जारी करने के झारखंड हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस ओका की बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि प्रार्थी दो साल से नौकरी कर रहे हैं। उन्होंने प्रोवेशन की अवधि भी पूरी कर ली है। जो भी नियम बनाये गये थे वह सरकार और जेपीएससी के थे।

6th JPSC से अफसर बने 60 कैंडिडेट्स को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, झारखंड हाईकोर्ट का फैसला रद

रांची। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से 6th JPSC से बहाल हुए उन 60 अफसरों को बड़ी राहत मिली है, जिनकी नौकरी खतरे में थी। छठी जेपीएससी के संशोधित मेरिट लिस्ट के बाद 60 अफसर बाहर हो गये थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने छठी जेपीएससी की संशोधित मेरिट लिस्ट जारी करने के झारखंड हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस ओका की बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि प्रार्थी दो साल से नौकरी कर रहे हैं। उन्होंने प्रोवेशन की अवधि भी पूरी कर ली है। जो भी नियम बनाये गये थे वह सरकार और जेपीएससी के थे।
कैंडिडेट की कोई गलती नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शर्तों की व्याख्या दो प्रकार से हो सकती है। इसके लिए जेपीएससी और हाई कोर्ट ने अगल-अलग व्याख्या की है। जिस पैटर्न पर पहले परीक्षा हुई है, उसी पर एग्जाम होनी चाहिए। लेकिन छठी जेपीएससी में पैटर्न को बदल दिया गया है। इसमें प्रार्थियों की गलती नहीं थी, लेकिन हाई कोर्ट के आदेश से यही कैंडिडेट प्रभावित हो गये। कोर्ट ने सिर्फ छठी जेपीएससी को ही ध्यान में रख कर फैसला सुनाया है, जबकि सरकार ने अब सातवीं जेपीएससी की एग्जाम ले ली है। नियमावली भी तैयार कर ली है। ऐसे में हाई कोर्ट के आदेश को उचित नहीं माना जा सकता।

जय गुड़िया बनाम झारखंड का आदेश लागू नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस मामले में जय गुड़िया बनाम झारखंड सरकार का आदेश लागू नहीं होता है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद संशोधित मेरिट लिस्ट से बाहर हुए अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की थी। इनकी ओर से कहा गया था कि पेपर-वन (हिंदी और अंग्रेजी) का अंक कुल प्राप्तांक में जोड़ा जाना सही है। यह दोनों क्वालिफाइंग पेपर हैं, क्योंकि इसमें निर्धारित न्यूनतम अंक लाने वाले को ही पास माना जाएगा, भले ही वे दूसरे अन्य पेपर में फेल हों। जेपीएससी ने पेपर-वन के अलावा किसी भी अन्य पेपर में न्यूनतम अंक लाने की शर्त नहीं लगाई है। जेपीएससी ने विज्ञापन में यह शर्त रखी थी। पहली मेरिट लिस्ट इसी नियम के तहत ही जारी की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इनकी दलीलों को मानते हुए हाई कोर्ट के संशोधित मेरिट लिस्ट जारी करने के आदेश को रद कर दिया।

गवर्नमेंट ने कहा था, नहीं कर सकते समायोजित

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि संशोधित मेरिट लिस्ट से बाहर हुए कैंडिडेट्स को वह समायोजित करेगी या नहीं। सरकार के पास ऐसा कोई प्रावधान है या नहीं। इस पर सरकार की ओर से कहा गया था कि वह इन्हें समायोजित नहीं कर सकती और न ही कोई प्रविधान ही है।

संशोधित लिस्ट के कैंडिडेट्स की नहीं हुई नियुक्ति

जेपीएससी के संशोधित लिस्ट जारी होने के बाद जो 60 नये कैंडिडेट शामिल हुए उनकी नियुक्ति सरकार ने नहीं की है। सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल होने के बाद अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था।

यह है पूरा मामला

जेपीएससी ने छठी सिविल सेवा एग्जाम के बाद 326 कैंडिडेट्,स की मेरिट लिस्ट जारी की थी। आयोग की अनुशंशा के बाद सरकार ने सभी को नियुक्त भी कर दिया था। इस बीच मेरिट लिस्ट को झारखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट की सिंगल बेंचने मेरिट लिस्ट को गलत बताते हुए संशोधित लिस्ट जारी करने का निर्देश दिया था। इस आदेश के खिलाफ सफल कैंडिडेट ने बेंच में अपील की थी। बेंच ने भी एकल पीठ के आदेश को सही बताते हुए जेपीएससी को संशोधित मेरिट लिस्ट जारी करने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद जेपीएससी ने संशोधित लिस्ट जारी की। संशोधित लिस्ट में 60 ऐसे कैंडिडेट बाहर हो गये थे जिनकी नियुक्ति विभिन्न विभागों में हो गई थी। इनके बदले 60 दूसरे कैंडिडेट के नाम लिस्ट में शामिल कर लिया गया। सूची से बाहर हुए अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।