सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, झारखंड की नियोजन नीति असंवैधानिक, नहीं हटेंगे अनुसूचित जिलों नियुक्त शिक्षक

सुप्रीम कोर्ट ने भी वर्ष 2016 में बनी झारखंड गवर्नमेंट की नियोजन नीति को असंवैधानिक करार दिया है। इस नीति से अनुसूचित जिलों में नियुक्त शिक्षकों की नियुक्ति बरकरार रहेगी। यानी अनुसूचित जिलों में जिन शिक्षकों की नियुक्ति हो पर कोई असर नहीं होगा।

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, झारखंड की नियोजन नीति असंवैधानिक, नहीं हटेंगे अनुसूचित जिलों नियुक्त शिक्षक

रांची। सुप्रीम कोर्ट ने भी वर्ष 2016 में बनी झारखंड गवर्नमेंट की नियोजन नीति को असंवैधानिक करार दिया है। इस नीति से अनुसूचित जिलों में नियुक्त शिक्षकों की नियुक्ति बरकरार रहेगी। यानी अनुसूचित जिलों में जिन शिक्षकों की नियुक्ति हो पर कोई असर नहीं होगा।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदिवासी बाहुल क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी है। ऐसे में अगर नियुक्ति किये गये शिक्षकों को हटाने का आदेश देते हैं, तो इससे वहां के छात्रों का नुकसान होगा। इसलिए जनहित को देखते हुए उनकी नियुक्ति को बरकरार रखी जाती है।

सरकार को कॉमन मेरिट लिस्ट बनाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने झारखंड गवर्नमेंट को शेष पदों पर नियुक्ति के लिए एक कॉमन मेरिट लिस्ट बनाने का निर्देश दिया है। मेरिट लिस्ट में वैसे कैंडिडेट्स को शामिल कर बनाया जायेगा जो झारखंड हाई कोर्ट की ओर से जारी पब्लिक नोटिस के बाद कोर्ट में प्रतिवादी बने थे। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को एक राज्यस्तरीय संयुक्त मेरिट लिस्ट जारी करने का निर्देश दिया है। इसमें अनुसूचित और गैर अनुसूचित दोनों कैंडिडेट को शामिल किया जाएगा। हाई कोर्ट में आने वाले कैंडिडेट को नियुक्ति में प्राथमिकी दी जायेगी।

सत्यजीत कुमार के एसएलपी पर फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में प्रार्थी सत्यजीत कुमार व अन्य की ओर से दाखिल एसएलपी पर यह फैसला दिया। प्रार्थियों ने झारखंड हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें वर्ष सरकार की वर्ष 2016 की नियोजन नीति को असंवैधानिक करार देते हुए रद कर दिया था। साथ ही इस नीति के तहत अनुसूचित जिलों में हुई नियुक्तियों को रद कर नई नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था। इस फैसले के खिलाफ सरकार सहित अनुसूचित जिलों के कई कैंडिडेट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार की नियोजन नीति संवैधानिक नहीं है। लेकिन इस नीति के तहत जिन लोगों की नियुक्ति हो गई है उन्हें यदि सेवा से हटाया जाए तो उचित नहीं होगा, क्योंकि इसमें कैंडिडेट और नियुक्त लोगों की गलती नहीं है। इसलिए अदालत ऐसे लोगों की नियुक्ति को सुरक्षित रख रही है। लेकिन सरकार को अब एक संयुक्त मेरिट लिस्ट जारी करना होगा। मेरिट लिस्ट राज्यस्तरीय बनेगी। इसमें अनुसूचित जिलों और गैर अनुसूचित दोनों के अभ्यर्थियों को शामिल कर जारी किया जाएगा और रिक्त पदों पर नियुक्ति की जाएगी। हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया है कि जो अभ्यर्थी हाई कोर्ट में प्रतिवादी बने थे उन्हें नियुक्ति में प्राथमिकता दी जायेगी। इस मामले में अधिवक्ता ललित कुमार सिंह ने प्रतिवादियों की ओर से पक्ष रखा था।

झारखंड सरकार की नियोजन नीति

झारखंड सरकार ने वर्ष 2016 में तृतीय और चतुर्थवर्गीय पदों पर नियुक्ति के लिए नियोजन नीति बनाई थी। इसमें अनुसूचित जिलों की नौकरी में सिर्फ उसी जिले के स्थानीय निवासियों को नियुक्त करने का प्रविधान था। जबकि गैर अनुसूचित जिले में सभी जिलों के लोग आवेदन कर सकते थे। सरकार ने यह प्रावधान 10 साल के लिए किया था। इस नीति के आलोक में वर्ष 2016 में अनुसूचित जिलों में 8423 व गैर अनुसूचित जिलों में 9149 पदों पर (कुल 17572 शिक्षक) नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई थी। इसके खिलाफ सोनी कुमारी ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
हाई कोर्ट रद की थी नियोजन नीति 
झारखंड हाई कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से सरकार की नियोजन नीति को असंवैधानिक करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि इस नीति से एक जिले के सभी पद किसी खास लोगों के लिए आरक्षित हो जा रहे हैं। जबकि शत-प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया जा सकता। कोर्ट  ने इस नीति को लागू करने के लिए जारी अधिसूचना को भी निरस्त कर दिया। राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया को रद करते हुए इन जिलों में फिर से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया। जबकि 11 गैर अनुसूचित जिलों में जारी नियुक्ति प्रक्रिया को बरकरार रखा था।