धनबाद:18 से 45 वर्ष तक की महिला को ही IVF कराना चाहिए, 45 की उम्र के बाद आइवीएफ प्रिगनेंसी डैंजर: जयदीप मल्होत्रा

  • गुंटूर की महिला ने गलत आइडिया से पैदा किया था जुड़वा बच्चा
  • 14 को जागरुकता कार्यक्रम किया जायेगा
धनबाद: इंडियन सोसायटी फॉर असिस्टेड रिप्रोडक्शन (इसार) नेशनल प्रसिडेंट डॉ. जयदीप मल्होत्रा ने कहा है कि 18 से 45 वर्ष की महिलाओं को ही इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आइवीएफ) कराना चाहिए. 45 की उम्र से ज्यादा की महिलाओं को आइवीएफ मेथड से गर्भ धारण बड़ा खतरा हो सकता है. बांझपन बड़ी समस्या बनकर उभर रही है. ऐसे लोगों के लिए इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) किसी वरदान से कम नहीं है, लेकिन इसके लिए कई गाइडलाइन और कानून भी हैं,जिसे कई आइवीएफ सेंटर पूरे नहीं कर रहे हैं डा मलहोत्रा सोमवार को सिटी सेंटर सात्विक आइवीएफ में प्रेस कांफ्रेस में बोल रहे थे. मौके पर डॉ. नेहा प्रियदर्शिनी, डॉ. शिवानी झा, डॉ. वाईएन चौधरी, विजय झा उपस्थित थे. डॉ मल्होत्रा ने कहा कि हाल ही में गुंटूर (आंध्र प्रदेश) में 74 वर्ष की महिला मंगायम्मा को आइवीएफ पद्धति से दो बच्चे हुए हैं, जो नियम विरुद्ध हैं. आइवीएफ के नियम के विरुद्ध इस कार्य को अंजाम दिया गया है, 74 वर्ष के बाद आइवीएफ से बच्चे होने से कई कपल सेंटर पर आने लगे हैं. कईयों की उम्र 70 से ज्यादा है. ऐसे में प्रेगनेंसी खतरे से खाली नहीं होती. आइवीएफ में जटिलताएं ज्यादा होती है आइवीएफ पद्धति से इलाज करने वाले डॉक्टर एवं बच्चा जन्म देने के लिए यह पद्धित अपनाने को इच्छुक लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी. सामान्य प्रसूति में जहां मृत्यु दर 130 के लगभग है, वहीं आइवीएफ में इसकी संभावना दोगुनी होती है.उन्होंने कहा कि डॉ. मल्होत्रा ने कहा कि प्रदूषण, सब्जियों में कीटनाशक, मोबाइल और लैपटॉप रखने के कारण भी तेजी से बांझपन की कंपलेन हो रही है. पुरुषों में जहां स्पर्म कम हो रहे हैं, वहीं महिलाओं में अंडाणु कम हो रहे हैं, जो बांझपन का कारण हैं. 35 वर्ष से पहले शादी के एक वर्ष तक बच्चा नहीं होने पर बांझपन के संकेत होते हैं. इसार, आइएफएस एसीइ लोगों को जागरूक कर रही है डॉ मल्होत्रा नेकहा कि इन सभी गंभीर विषयों पर इसार, इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी (आइएफएस) और एकेडमी ऑफ क्लीनिकल इम्ब्रियोलॉजिस्ट (एसीइ) तीनो ही संस्थायें लोगों को जागरूक कर रही है. मै बांझ नही हूं, गली में धमक, मेरी मर्जी जैसी कई फिल्में भी बनायी गयी हैं. मैं बांझ नहीं हूं इस पर इसार 14 सितंबर को एक जागरूकता कार्यक्रम आोयिजत कर रही है. इसार देश के चार हजार स्थानों में संचालित है. इंडिया में इसके 25 स्टेट चैप्टर हैं. इसार आइवीएफ के लिए कार्यरत है. डॉक्टरों को हेल्प करती है. कई तरह की रिसर्च करती है. गर्वमेंट के साथ मिलकर पॉलिसी भी बनाती है.आइवीएफ पद्धति को अपनाने का भाव उन महिलाओं में आता है जो खुद को बांझपन का शिकार समझती हैं. इस स्थिति में वे उस उम्र तक भी कोशिश करती है जिस उम्र को रूल रेग्युलेशन उसकी इजाजत नहीं देता है. बांझपन के लक्षण डा मल्होत्रा ने कहा कि एक कपल एक साल से बच्चे की प्लानिंग में है और महिला में भ्रूण नहीं बन रहा हो तो यह बांझपन के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं कहीं न कहीं . खानपान भी बांझपन को बढ़ावा दे रहा है. इसके लिए काफी हद तक सब्जियों का सेवन भी जिम्मेदार है. सब्जियां काफी ज्यादा पेस्टिसाइज युक्त होती है. जिसके सेवन के कारण महिलाओ में बांझपन का खतरा बढ़ जाता है.डॉक्टर सब्जियों के सेवन से पहले उसे 15 मिनट से आधे घंटे तक पानी में भिगो कर रखने की सलाह देते हैं.उन्होंने कहा कि पुरुषों में 15 मिलियन से कम शक्राणु बनने पर दिक्कत होती है नशे का सेवन करने से पुरुष बांझपन की शिकायत होता है. एक सामान्य व्यक्ति में जहां शक्राणु 120 मिलियन तक बनता है, वहीं नशे के आदी व्यक्ति में शक्राणु बनने की क्षमता घट कर 60 या 15 मिलियन तक पहुंच जाती है.