पश्चिम बंगाल के कोल तस्कर लाला को संरक्षण देने का मामला: CBI जांच के दायरे में आ सकते हैं झारखंड कुछ सीनीयर IPS अफसर !

कोयला माफिया अनूप माझी उर्फ लाला के इलिगल कोल कारोबार को संरक्षण देने वालों की मुश्किलें बढ़ सकती है। झारखंड कुछ सीनीयर आइपीएस के अलावा जूनियर आइपीएस सीबीआइ जांच के दायरे में आ सकते हैं।

पश्चिम बंगाल के कोल तस्कर लाला को संरक्षण देने का मामला: CBI जांच के दायरे में आ सकते हैं झारखंड कुछ सीनीयर IPS अफसर !
अनूप माझी उर्फ लाला (फाइल फोटो)।

कोलकाता। कोयला माफिया अनूप माझी उर्फ लाला के इलिगल कोल कारोबार को संरक्षण देने वालों की मुश्किलें बढ़सकती है। झारखंड कुछ सीनीयर आइपीएस के अलावा जूनियर आइपीएस सीबीआइ जांच के दायरे में आ सकते हैं। उल्लेखनीय है कि ईसीएल, सीआइएसएफ और रेलवे के अफसरों व स्टाफ की मदद से लाला बंगाल में इलिगल कोल माइनिंग व कोल तस्करी कर रहा था। 
जानकार सोर्सेज का कहना है मामले की जांच कर रही सीबीआइ के हाथ ऐसे कई महत्वपूर्ण सुराग लगे हैं, जो इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि झारखंड के कुछ सीनीयर व जूनियर आइपीएस अफसर भी इस जांच के दायरे में आ सकते हैं।
धनबाद में लंबे समय तक पोस्टेड रहे एक आइपीएस भी संदेह का दायरे में
बताया जाता है कि पूर्व की गवर्नमेंट के कार्यकाल में धनबाद में काफी दिनों तक पोस्टेड रहे एक युवा आइपीएस भी संदेह के दायरे में हैं। इस आइपीएस को झारखंड का एक सीनीयर आइपीएस का वरदहस्त हासिल था। धनबाद में इस आइपीएस के कार्यकाल में रात दिन कोयले का अवैध कारोबार चलता था। कोयले के इलिगल कारोबार से जुड़े धनबाद व बंगाल के चंद लोगों की संबंधित आइपीएस से सीधा संपर्क था। आइपीएस का एक करीबी रिलेटिव कोलकाता में है। पैसे का लेनदेन कोलकाता में होता था। लाला एंड राखा कंपनी को आइपीएस ने रांची में स्थित अपने आका के इशारे पर काफी मदद की। मदद के एवज में आइपीएस को बड़ी रकम मिलती थी। यह संदिग्ध आइपीएस अभी राजधानी में संटिंग में हैं। इस अफसर के कार्यकाल में धनबाद में चल रहे इलिगल कोल कारोबार की कंपलेन गवर्नमेंट व पुलिस हेडक्वार्टर तक पहुंची थी। मामले की जांच भी शुरु हुई लेकिन तत्कालीन सत्ता व एक सीनयीर आइपीएस के करीबी होने के का्रण आरोपी आफसर को जांच में क्लीन चीट दी गयी। 
लाला के पुलिस अफसरों से हैं बेहतर रिलेशन
सीबीआइ ने इलिगल कोल माइनिंग व तस्करी में अनूप मांझी उर्फ लाला को मास्टरमाइंड माना है। वह पुलिस, ईसीएल, सीआइएसफ व रेलवे समेत  डिपार्टमेंट के अफसरों से मिलीभगत कर इलिगल माइनिंग व तस्करी कराता है। लाला के रिश्ते झारखंड के कई आइपीएस अफसर से भी रहे हैं। लाला बंगाल के इलिगल कोयले को झारखंड के रास्ते यूपी व बिहार के मंडियो तक भेजता था। धनबाद एसएसपी असीम विक्रात मिंज के निर्देश पर स्पेशल टीम के रेड में धनबाद में भी लाला के द्वारा कोयला तस्करी कराये जाने का मामला सामने आया था। अब लाला के ठिकानें पर सीबीआइ की रेड से उसके करीबियों में हड़कंप मची है। लाला के द्वारा लगभग एक दशक से झारखंड के पुलिस अफसरों को कोयला पासिंग के लिए मैनेज किया जाता रहा है।

लाला के काले साम्राज्य को बढ़ाने में झारखंड से भी मिला सहयोग, निरसा में बनता था ट्रकों का अवैध कागजात
पश्चिम बंगाल के कोयला माफिया अनूप मांझी उर्फ लाला के काले कारोबार को बढ़ाने मे झारखंड से भी भरपूर सहयोग मिला। निरसा और मुगमा एरिया के ट्रांसपोर्टरों ने लाल को भरपुर सहयोग दिया। लाला का जो भी ट्रक चोरी का कोयला लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान या दिल्ली के लिए निकलता था, उनके सभी जाली कागजात निरसा इलाके में ही तैयार जाते थे। जांच में यह खुलासा होने के बाद से सीबीआइ अब इन ट्रांसपोर्टरों की भी कुंडली खंगाल रही है।लाला के पश्चिम बंगाल स्थित दर्जन भर ठिकानों, इलिगल माइनिंग स्थल और कांटा घरों की जांच में जो दस्तावेज मिले, उसमें ट्रांसपोर्टिंग से संबंधित दस्तावेज निरसा और मुगमा के एड्रेस हैं।  इन दस्तावेज में ट्रांसपोर्टिंग कंपिनयों के फ्रेट स्लीप, टैक्स इनवॉयस और टोकन शामिल हैं। इन कागजातों का उपयोग अवैध कोयला की ट्रांसपोर्टिंग के लिए अलग-अलग तरीके से किया जाता था।

कागजातों का होता था अलग-अलग उपयोग
 फ्रेट स्लीप का उपयोग कोयला लोडिंग से लेकर उसकी ट्रांसपोर्टिंग के लिए किया जाता था। टैक्स इनवॉयस का उपयोग जीएसटी समेत अन्य प्रकार की कर देनदारी के लिए होता था। इस फर्जी टैक्स इनवॉयस के माध्यम से जीएसटी की भी चोरी की जाती थी। विभिन्न नामों से जारी होने वाले टोकन का प्रयोग पुलिस स्टेशनों के लिए होता था, ताकि इन ट्रकों को कोई नहीं पकड़े। टोकन पर जो नाम होते थे उनमें मुख्य रूप से काली, अष्टमी और शरद शामिल हैं।बताया जाता है कि इलिगल कारोबार में झारखंड के कागजात पर किसी को शक नहीं होता है। यही कारण है कि यहां के कागजात का उपयोग बंगाल के इलिगल कोल के कारोबार में किया जाता है। झारखंड के कागजात होने का फायदा इन ट्रकों को बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि राज्यों में भी मिलता था।