आधुनिक बिहार के दानवीर, महापुरुष बाबू लंगट सिंह की 110 वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि

आधुनिक बिहार के दानवीर, महापुरुष बाबू लंगट सिंह की 110 वीं पुण्यतिथि पर स्टेट में कई कार्यक्रमों का आयोजन कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।महामानव बाबू लंगट सिंह और उनके परिवार का  राष्ट्र और समाज में उनके योगदानपर चर्चा की गयी। 

आधुनिक बिहार के दानवीर, महापुरुष बाबू लंगट सिंह की 110 वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि

पटना। आधुनिक बिहार के दानवीर, महापुरुष बाबू लंगट सिंह की 110 वीं पुण्यतिथि पर स्टेट में कई कार्यक्रमों का आयोजन कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।महामानव बाबू लंगट सिंह और उनके परिवार का  राष्ट्र और समाज में उनके योगदानपर चर्चा की गयी। 

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लंगट बाबू का जीवन परिचय 
हाजीपुर मुजफ्फरपुर रेल रूट के सराय स्टेशन से पांच किमी पश्चिम वैशाली जिले के धरहरा ग्राम के गोउनाइत् मूल के भूमिहार ब्राह्मण किसान बाबू बिहारी सिंह के पुत्र के रूप में लंगट सिंह का जन्म  10 अक्टुबर सन 1850 के अश्विन माह में हुआ था। इनके दादा उजियार सिंह पढ़े लिखे किसान थे। गांव में कोई स्कुल नही होने की वजह से इनकी शिक्षा प्राइमरी तक हुई। माता-पिता ने 15-16वर्ष में हीं लंगट बाबू की शादी करा दी। लंगट सिंह के परिवार को कोई ज्यादा भूमि नही थी जिस वजह से लंगट सिंह आजीविका के लिये समस्तीपुर आ गये। वहां समस्तीपुर- दरभंगा रेल लाइन का काम चल रहा था। वहां उन्हें रेल पटरी के बगल में टेलीफोन लाइन में लाइन मैन का काम मिल गया। रेल लाइन का काम कर रहे अंग्रेज इंजीनियर जेम्सविल्सन काम के लग्न से प्रभावित होकर लंगट सिंह को मजदूरों का सुपरवाइजर बना दिया। इसके बाद लंगट सिंह जेम्स साहब के साथ दरभंगा में रहने लगे। 

अंग्रेजी लिखना बोलना सिखाया गया
जेम्स साहब की पत्नी की बहन मुजफ्फरपुर रहती थी जिसके पति विलियम विल्सन मुजफ्फरपुर के निलहे जमींदार थे। उन दिनों मुजफ्फरपुर दरभंगा टेलीफोन से ज़ुड़ा हुआ नही था। इस वजह से जेम्ससाहव की पत्नी का जरूरी पत्र लेकर लंगट सिंह पैदल मुजफ्फरपुर आये। वहां से 18 घंटे में जबाव लेकर  लौट आये। इससे  की पत्नी लंगट सिंह को काफी मानने लगी। लंगट सिंह को अंग्रेजी लिखना बोलना सिखाई। जेम्स से पैरवी कर लंगट बाबू को दरभंगा- नरकटियागंज रेल लाइन निर्माण में ठेकेदारी दिलवा दी।  लंगट सिंह मजदूर से ठीकेदार हो गये। रेल लाइन निर्माण के क्रम में ट्राली से जाते समय लंगट सिंह का ट्राली मालगाड़ी से टकरा गया जिसके चलते उन्हें अपना एक पैर गवाना पड़ा। लेकिन लंगट सिंह ने हार नही मानी और न अंग्रेज जेम्स ने लंगट बाबु का साथ छोड़ा। ठीकेदारी के काम में इनके लड़के श्यामानन्द प्रसाद सिंह उर्फ आनन्द बाबू सहयोग देने लगे। रेल की ठीकेदारी से लंगट सिंह ने काफी रुपया कमाया। गांव में बहुत सी जमीन और जमींदारी खरीदा। अपने गांव में भव्य मकान बनाना शुरू किया।
कलकत्ता प्रवास 
दरभंगा से  जेम्स कलकत्ता महानगर निगम के इंजीनियर बनकर कलकत्ता आ गये।  जेम्स दम्पति के अनुरोध पर लंगट सिंह भी अपने पुत्र आनन्दा बाबु के साथ 1880 के लगभग कलकत्ता आ गये। वे  कलकत्ता महा नगरनिगम  में ठीकेदारी करने लगे। ठीकेदारी और काम में ईमानदारी के लिये लंगट सिंह का नाम आदर के साथ लिया जाता था। मैक डोनाल्ड बोर्डिंग हॉउस के निर्माण के दौरान लंगट सिंह का पंडित मदन मोहन मालवीय से सम्पर्क हुआ। मालवीय जी के अलावे वहां स्वामी दयानन्द सरस्वती,रामकृष्ण प्रमहंस, ईश्वरचंद विद्या सागर व आशुतोष बनर्जी से सम्पर्क हुआ। इन महापुरूषो के सम्पर्क में आने के बाद लंगट सिंह का झुकाव भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की ओर हो गया। लंगट सिंह स्वदेशी के समर्थक हो गये।कलकत्ता में स्थापित प्रथम स्वदेसी बिक्री केंद्र स्वदेसी स्टोर्स बंग कॉटन मिल्स के लंगट सिंह भी एक निर्देशक थे।

लंगट सिंह ने मुजफ्फरपुर में भी पहला स्वदेशी तिरहुत स्टोर्स खुलबाय। 1890 के आसपास लंगट सिंह को मुजफ्फरपुर जिला परिषद में भी बड़े-बड़े कार्यो का ठीक मिलना शुरू हो गया। ठेके का सारा काम उनके पुत्र देखते रहे। ठीकेदारी से बाबु लंगट सिंह और उनके पुत्र ने काफी धन कमाया।र मुजफ्फरपुर का जो आज सुतापट्टी है वहां से कल्याणी तक लंगट सिंह ने करीव 50 बीघा जमीन खरीदी। बहुत से मौजे की जमींदारी भी खरीदी।
कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन 
कलकत्ता प्रवास के दौरान मदन मोहन मालवीय और अन्य विद्वानों के सानिध्य में लंगट सिंह ने देशदुनिया का ज्ञान अर्जित किया। अपना समय समाज सेवा में देने लगे।  लंगट सिंह ने कांग्रेस के 1886 ,में कलकत्ता महाधिवेशन में भाग लिया।
1895 भूमिहार ब्राह्मण महासभा में शामिल
मालवीय जी के अनुरोध पर लंगट सिंह भूमिहार ब्राह्मण महासभा में पहली बार बनारस में सम्मिलित हुए। काशी नरेश की अध्यक्षता में हुई इस महासभा में तमकुही नरेश, दरभंगा महाराज, हथुआ महाराज, टेकरी महाराज,माझा स्टेट सहित भूमिह रजमींदार  सम्मलित हुए। महासभा में मालवीय जी के प्रयास से बनारस में हिन्दू विश्वविद्यालय खोलने का प्रस्ताव पास हुआ । सभी राजयो ने चन्दा देने की बात कही लेकिन जव चन्दा के रूप में लंगट सिंह ने एक लाख टका की अपनी बोरी रखी तो सभी चकित हो गये। एक बैशाखी से चलनेवाला  साधारण व्यक्ति इतना बड़ा चन्दा दे सकता है। मालवीयजी ने लंगट सिंह का सभा मे परिचय करवाया। महासभा में लंगट सिंह को काफी सम्मान मिला।सभा में ही लंगट सिंह को मुज़फ़्फ़रपुर में भी कॉलेज खोलने का विचार आया। लंगट सिंह ने इसी उद्देश्य से मुजफ्फरपुर में  भूमिहार ब्राह्मणों की सभा बुलाने का काशी नरेश से आग्रह किया जिसे सभा ने स्वीकार किया।
मुज़फ़्फ़रपुर में 1899 में हुआ भूमिहार ब्राह्मण महासभा
बाबु लंगट सिंह के प्रयास से जनवरी 1899में भूमिहार ब्राह्मण सभा का मुजफ्फरपुर में अधिवेशन हुआ। इसमें काशी नरेश महाराजा प्रभुनारायण सिंह, दरभंगा महाराज, तमकुही नरेश, हथुआ महाराज,  टेकरी नरेश, माझा स्टेट के अलावे मुजफ्फरपुर के आस पास के सभी जमींदार और विद्वत जन सम्मलित हुए। महासभा में लंगट सिंह द्वारा मुजफ्फरपुर में डिग्री कॉलेज खोलने के प्रस्ताव को पास किया गया। कॉलेज निर्माण के लिये सभी ने चन्दा देना स्वीकार किया। महासभा की समाप्ति के बाद हथुआ महाराज औऱ दरभंगा महाराज ने मुज़फ़्फ़रपुर में कॉलेज खोले जाने को लेकर बाबु लंगट सिंह को सहयोग नही दिया। दरभंगा महाराज दरभंगा में व हथुआ महाराज छपरा में कॉलेज खोलने चाहते थे। इससे लंगट सिंह को परेशानी होने लगी। इसके बाद लंगट सिंह ने मुजफ्फरपुर के सभी जमींदारों की मुजफ्फरपुर में बैठक बुलाई जिसमे सभी ने मुजफ्फरपुर में हाई स्कुल के साथ कॉलेज खोलने का प्रस्ताव दिया क्योंकि मुजफ्फरपुर में जो जिला स्कुल था उसमें गरीव बच्चों का एडमिशन नही हो पाता था इस बैठक में हाई स्कूल और कॉलेज खोलने और उसका खर्च और संचालन का जिम्मेवारी उठानेवाले एक 22 सदस्यों की प्रबन्ध समिति गठित की गई।  इसमें बाबू लंगट सिंह के अलावे शिवहर नरेश शिवराज नन्दन सिंह, हरदी के जमींदार बाबु कृष्ण नारायण सिंह, जैतपुर स्टेट केरघुनाथ दास, यदुनन्दन शाही, महंथ प्रमेश्वरनारायन, महन्थ द्वारिक नाथ, योगेंद्रनारायण सिंह थे। इसी बैठक में बाबु लंगट सिंह ने स्कुलऔर कॉलेज खोलने के लिये अपनी सरैयागंज वाली 13 एकड़ जमीन दिया ।
भूमिहार ब्राह्मण कॉलेजिएट स्कुल और कॉलेज की स्थापना
बाबू लंगट सिंह के नेतृत्व में गठित प्रबन्ध समिति के सदस्यों द्वारा तीन जुलाई 1899को सरैयागंज में बाबु लंगट सिंह द्वारा दी गई भूमि 13 एकड़ में भूमिहार ब्राह्मण कॉलेजिएट स्कुल और भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज की नींव रखा गया। दो माह के अंदर ही छात्रों के पढ़ने के लिये कमरा तैयार हो गया। शिक्षकों की व्यवस्था कर पढ़ाई चालू हो गई ।
कॉलेज का कोलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बन्धन 
बाबू लंगट सिंह के प्रयास से सन1900 मेही कॉलेज को प्री डिग्री कॉलेज के रूप में मान्यता मिल गई। बाद में लंगट सिंह के मित्र और सहयोगी जेम्स के सहयोग से कॉलेज को डिग्री तक मान्यता मिल गई।वर्ष 1906 में बाबु लंगट सिंह कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भाग लेने गये जहाां उनकी मुलाकात बाबु राजेन्द्र प्रसाद से हुई। लंगट सिंह ने राजेन्द्र प्रसाद को कॉलेज में पढ़ने के लिये राजी कर लिया। राजेंद्र प्रसाद सन 1908 में प्रोफेसर के रूप में कॉलेज में आ गये।

कॉलेज की मान्यता खत्म करने की चेतावनी 

1909 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि कॉलेज निरीक्षण के लिये मुजफ्फरपुर आये। विश्वविद्यालय प्रतिनिधि ने एक ही कैम्पस में स्कूल और कॉलेज और छोटे छोटे कमरों में छात्रों की पढ़ाई की व्यवस्था पर भड़क गये। प्रबन्ध समिति को धमकी दिया की कॉलेज के लिये अलग जमीन और भवन की व्यवस्था नही हुई तो कॉलेज की मान्यता खत्म हो जायेगी। इसके बाद बाबु लंगट सिंह और प्रबन्ध समिति के सदस्यों ने खबरा के जमींदार के सहयोग से दामूचकऔर कलमबाग चौक के बीच 22 एकड़ जमीन खरीदा।इस भूमि में 1911 से कॉलेज के लिये भवन बनना शुरू हुआ।इसी दौरान 15 अप्रैल 1912 को महामानव लंगट सिंह का स्वर्गवास हो गया। उनकी मृत्यु के बाद लगा की कॉलेज का काम ठप्प हो जायेगा लेकिन लंगट बाबु के पुत्र अनन्दा बाबु ने अपने पिता द्वारा शुरू किये गये इस कॉलेज के भवन का कार्य पूरा करवाया।

1915 मेंकॉलेज अपने नये भवन में आ गया

कॉलेज अपने नये भवन में 1915 में आ गया। 1915 में सरकार ने इस कॉलेज कोअपने हाथों में ले लिया। इस कॉलेज के विकाश में तिरहुत कमिश्नर  ग्रीयर ने लंगट बाबू की मृत्यु के बाद काफी सहयोग किया। कॉलेज के नाम के आगे ग्रीयर का नाम भी जोड़ा गया। कॉलेज का नाम ग्रीयर भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज हो गया। बाद में इस  कॉलेज का नाम लंगट सिंह कॉलेज हो गया। पटना विश्वविधालय के गठन के बाद लंगट सिंह कॉलेज 1917 में पटना विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हो गया ।बाबु लंगट सिंह बचपन में वे सिर्फ प्राइमरी तक पढ़ना लिखना सिख सके। लेकिन कार्य केदौरान अपने स्वध्यय के बल पर अंग्रेजी,बंगला, और हिंदी का अध्ययन किया। लंगट सिंह को  सात दिसम्बर 1910में हुई इलाहबाद के कांग्रेस अधिवेशन में मुजफ्फरपुर का प्रतिनिधि निर्वाचित किया गया। इलाहाबाद कुम्भ में धर्म संसद द्वारा बाबु लंगट सिंह को बिहार रत्न से सम्मानित किया  गया। इंग्लैंड के राजा द्वारा लंगट बाबु को बिहार का शिक्षा स्तम्भ घोषित किया गया।
लंगट सिंह का रैनी स्टेट से सम्बन्ध
मुजफ्फरपुर जिले का रैनी स्टेट  का साहू परिवार में सबसे धनी घराना था। कुछ मुकदमों के दौरान लंगट बाबू के परिवार के जमीन सम्बन्ध्ति केवला दस्तावेज उनकेके लड़के अनन्दा बाबू और रैनी स्टेट के वरिसो के संयुक्त नाम में है। लोगो ने बताया कि रेल की ठेकेदारीया अन्य जगहों की ठेकेदारी में लंगट सिंह को पैसा रैनी स्टेट से मिलता था इस तरह लंगट बाबू के परिवार का रैनी स्टेट से व्यवसायिक सम्बन्ध था।।
 लंगट बाबू के पुत्र अनन्दा बाबू
अनन्दा बाबू शुरू से ही अपने पिता की ठीकेदारी का काम देखते थे। उनके पिता का अंग्रेज अधिकारी और गवर्नर जेनरल तक नाम आदर के साथ लिया जाता था।अनन्दा बाबू का भी उनसे सम्बन्ध अच्छा था। पिता की जिंदगी से ही अनन्दा बाबू कॉलेज का काम देखते आये। पिता की मृत्यु के बाद अनन्दा बाबू ने अपने पिता द्वारा शुरू किये गये कॉलेज को भव्य बनाने के उद्देश्य से अपने अंग्रेज मित्र से सम्पर्क किया। इंग्लैंड के ऑक्स्फोर्ड विश्वविद्यालय के वेलियोल कॉलेज के भवन के समान कॉलेज भवन बनाने के लिये प्रयास शुरू किया। वर्तमान में जो लंगट सिंह कॉलेज का भवन है वह 1912 में बनना शुरू हुआ जिसका उद्घाटन 22जुलाई 1922 को राज्य के गोवर्नर द्वारा किया गया।अनन्दा बाबू के प्रयास से कॉलेज को सरकार ने ले लिया। अनन्दा बाबू ने अपने पिता द्वारा शुरू कॉलेज को पूर्णता और भव्यता प्रदान किया। अनन्दा बाबू ने अपने गांव में एक  हाई स्कूल के अलावे कई संस्था का निर्माण किया। अनन्दा बाबू देश के स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों को आर्थिक सहयोग दिया करते थे। गद्दार फणीन्द्र नाथ घोष हत्या में फंसे क्रन्तिकारी बैकुंठ शुक्ल और उनके साथियों को बचाने के लिये प्रिवी कौंसिल तक क़ानूनी खर्चे किये।
लंगट सिंह के पौत्र
लंगट सिंह के पौत्र बाबु दिग्विजय नारायण सिंह राजनीतिक संत हुए। 1930 में कांग्रेस से जुड़े और आजादी के बाद सन 1952 से 1980 तक कुल 28 वर्ष तक लगातार मुज़फ़्फ़रपुर और वैशाली से सांसद रहे। 1980 में चुनाव हारने के बाद चुनावी राजनीति से सन्यास ले लिया। दिग्विजय बाबू ने समाज सेवा में अपने पुरखों की समाप्ति बेच कर लगा दिया। 1952 में बिहार विश्वविद्यालय के लिये करीव 70 बीघा जमीन दान दे दी
लंगट सिंह के प्रपौत्र
दिग्विजय नारायण सिंह के दो पुत्र अलखनारायन सिंह और प्रगति कुमार का किसी भी राजनितीक दल से या राजनीती से सम्बन्ध नही है। प्रगति कुमार पटने में डॉक्टर हैं। वर्ष 2020 में  अलख नारायण सिंह और उनकी पत्नी नीलिमा सिंह द्वारा धरहरा दरबार के प्रवेश द्वार पर बाबू लंगट सिंह की प्रतिमा स्थापित की गई है।