Jharkhand: ' सहमति से बना शारीरिक संबंध रेप नहीं…' झारखंड HC ने लोअर कोर्ट का फैसला पलटा

झारखंड हाई कोर्ट ने रेप के एक मामले में लोअर कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया। साथ ही आरोपित को बरी कर दिया। जस्टिस गौतम चौधरी की कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सभी तथ्यों को देखने के बाद यह स्पष्ट होता है कि आरोपित ने शादी का झांसा देकर नहीं बल्की युवती की सहमती से शारीरिक संबंध नहीं बनाये थे।

Jharkhand: ' सहमति से बना शारीरिक संबंध रेप नहीं…' झारखंड HC ने लोअर कोर्ट का फैसला पलटा
झारखंड हााई कोर्ट (फाइल फोटो)।

रांची। झारखंड हाई कोर्ट ने रेप के एक मामले में लोअर कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया। साथ ही आरोपित को बरी कर दिया। जस्टिस गौतम चौधरी की कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सभी तथ्यों को देखने के बाद यह स्पष्ट होता है कि आरोपित ने शादी का झांसा देकर नहीं बल्की युवती की सहमती से शारीरिक संबंध नहीं बनाये थे।
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हाईकोर्ट ने एक क्रिमिनल अपील पर सुनवाई करते हुए लोअर कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें रेप के आरोप में एक युवक को दोषी करार देते हुए सात वर्ष सश्रम कारावास की सजा सुनायी थी।  कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सभी तथ्यों को देखने के बाद यह स्पष्ट होता है कि आरोपित ने शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध नहीं बनाये थे, बल्कि युवती की सहमति से ही शारीरिक संबंध स्थापित हुआ। इसलिए यह दुष्कर्म नहीं माना जायेगा।
पाकुड़ सिविल कोर्ट ने 2012 में मोहिदुल को सुनाई थी सजा
पाकुड़ सिविल कोर्ट ने वर्ष 2012 में प्रार्थी मोहिदुल को युवती से रेप करने का दोषी पाते हुए सात साल कारावास की सजा सुनाई थी। मोहिदुल ने लोअर कोर्ट के आदेश खिलाफ उसने हाई कोर्ट में अपील दाखिल कर सजा को चुनौती दी थी। युवती ने नवंबर 2007 में मोहिदुल के खिलाफ शादी का झांसा देकर यौन शोषण का मामला दर्ज कराया था। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इस मामले के प्राथमिकी दर्ज कराने में छह महीने की देरी हुई है। लगभग छह महीने तक दोनों को बीच शारीरिक संबंध बने और जब पीड़िता गर्भवती हो गई तब मामले की जानकारी हुई।
पीड़िता ने अपने बयान बताया था कि आरोपित ने उससे शादी करने का वादा किया था। साक्ष्य में यह भी आया है कि अपीलकर्ता विवाह के पंजीकरण के लिए न्यायालय गया था, लेकिन वहां अन्य व्यक्तियों ने उसे रोक दिया। साक्ष्यों से शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म करने का आरोप साबित नहीं होता है।
कोर्ट ने कहा कि गवाहों की गवाही को संयुक्त रूप से पढ़ने से यह पता चलता है कि पंचायत में अपीलकर्ता को पीड़ित लड़की से शादी करने के लिए कहा गया था, लेकिन दूसरों की आपत्ति के कारण ऐसा नहीं हो सका। सबूत स्पष्ट रूप से सहमति से संबंध बनाने की ओर इशारा करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पीड़िता गर्भवती हुई जिसके बाद मामला दर्ज किया गया।पीड़ित की सहमति बलपूर्वक या धोखाधड़ी के तहत प्राप्त नहीं की गई थी। इसलिए अदालत का मानना है कि अभियोजन अपीलकर्ता के खिलाफ दुष्कर्म के आरोप को साबित करने में विफल रहा है।