IIT ISM धनबाद की बड़ी सफलता, नारियल के खोल से बनी इको-फ्रेंडली ग्रेफीन, इलेक्ट्रॉनिक्स की दुनिया में खोलेगी नये रास्ते

IIT ISM धनबाद के वैज्ञानिकों ने नारियल के खोल से इको-फ्रेंडली ग्रेफीन तैयार करने की तकनीक विकसित की है। यह कम लागत वाली, पर्यावरण-सुरक्षित तकनीक इलेक्ट्रॉनिक्स, बायोसेंसर और सेमीकंडक्टर उद्योग में नए रास्ते खोलेगी।

IIT ISM धनबाद की बड़ी सफलता, नारियल के खोल से बनी इको-फ्रेंडली ग्रेफीन, इलेक्ट्रॉनिक्स की दुनिया में खोलेगी नये रास्ते
आईआईटी आईएसएम धनबाद का अनोखा शोध।

धनबाद।आईआईटी (आईएसएम) धनबाद के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा अनोखा शोध कर दिखाया है, जो पर्यावरण और तकनीक दोनों के क्षेत्र में ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकता है। संस्थान के इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग विभाग की टीम ने नारियल के सख्त खोल (Coconut Shell) से उच्च गुणवत्ता वाली इको-फ्रेंडली ग्रेफीन (Graphene) तैयार करने में सफलता हासिल की है। यह तकनीक सस्ती, टिकाऊ और पर्यावरण के लिए पूरी तरह सुरक्षित मानी जा रही है।
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कैसे हुई सफलता: नारियल के खोल से निकली ‘वंडर मटेरियल’ ग्रेफीन
इस रिसर्च को प्रोफेसर मनोदीपन साहू के मार्गदर्शन में शोधार्थी आरती कुमारी, अनिमेष दुबे और आर. बंगाल ने मिलकर पूरा किया।
टीम ने सूखे नारियल के खोलों को 400°C और 600°C तापमान पर कार्बोनाइजेशन प्रक्रिया से गुजारा, जिससे रिड्यूस्ड ग्रेफीन ऑक्साइड (Reduced Graphene Oxide) तैयार हुआ।शोध में पाया गया कि तैयार ग्रेफीन का सतह क्षेत्रफल 356.97 वर्ग मीटर प्रति ग्राम था, जबकि उसके सूक्ष्म छिद्रों का आकार 1.85 से 86.71 नैनोमीटर के बीच रहा।
 ग्रेफीन की जांच कैसे हुई
ग्रेफीन की संरचना और गुणों की जांच कई उन्नत तकनीकों से की गई—

X-ray Diffraction (XRD)

Raman Spectroscopy

XPS (X-ray Photoelectron Spectroscopy)

HRTEM (High-Resolution Transmission Electron Microscopy)

FTIR (Fourier Transform Infrared Spectroscopy)

UV-Visible NIR Spectroscopy

इन परीक्षणों से पता चला कि तापमान बढ़ने पर ग्रेफीन की ऑप्टिकल बैंड गैप घटकर 1.95 eV से 1.53 eV रह गई, जबकि इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी 289 से बढ़कर 400 माइक्रो-सीमेंस प्रति सेंटीमीटर हो गई — जो इसे उत्कृष्ट विद्युत चालक बनाती है।
कचरे से नवाचार तक: पर्यावरण संरक्षण की दिशा में क्रांतिकारी कदम
यह शोध यह साबित करता है कि ‘वेस्ट’ भी ‘वैल्यू’ बन सकता है। नारियल के खोल जैसे बायो-वेस्ट से ग्रेफीन बनाना न केवल सतत विकास (Sustainable Development) की दिशा में कदम है, बल्कि यह प्रदूषणकारी पारंपरिक तकनीकों का एक ग्रीन और लो-कॉस्ट विकल्प भी प्रदान करता है।
भविष्य में संभावनाएं
IIT ISM द्वारा विकसित यह तकनीक आने वाले वर्षों में कई उद्योगों में उपयोगी साबित हो सकती है, जैसे—

गैस सेंसर (Gas Sensors)

बायोसेंसर (Biosensors)

ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक्स (Opto-electronics)

सेमीकंडक्टर डिवाइस (Semiconductor Devices)

इससे इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण, ऊर्जा संचयन, और नैनोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नये अवसर खुल सकते हैं।

शोधपत्र की उपलब्धि
यह अध्ययन प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘Material Chemistry and Physics’ में प्रकाशित हुआ है, जो IIT ISM धनबाद की अनुसंधान क्षमता और वैज्ञानिक नवाचार का प्रमाण है।
निष्कर्ष
IIT ISM धनबाद का यह शोध भारत में ग्रीन टेक्नोलॉजी और सस्टेनेबल साइंस की दिशा में ऐतिहासिक कदम है। यह न केवल पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि भारतीय विज्ञान विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है।