बिहार यंग थिंकर्स फोरम ने "सेना में बिहार रेजिमेंट की विरासत" विषय पर वेब संगोष्ठी का आयोजन किया

बिहार यंग थिंकर्स फोरम ने "सेना में बिहार रेजिमेंट की विरासत" विषय पर एक वेब संगोष्ठी का आयोजन किया।कार्यक्रम में वाइस एडमिरल शेखर सिन्हा ,लेफ्टिनेंट जनरल ए के बख्शी व नितिन गोखले वक्ता थे।

बिहार यंग थिंकर्स फोरम ने "सेना में बिहार रेजिमेंट की विरासत" विषय पर वेब संगोष्ठी का आयोजन किया


पटना। बिहार यंग थिंकर्स फोरम ने "सेना में बिहार रेजिमेंट की विरासत" विषय पर एक वेब संगोष्ठी का आयोजन किया।कार्यक्रम के प्रथम वक्ता वाइस एडमिरल शेखर सिन्हा बिहार के पूर्णिया जिले निवासी थी। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत के सबसे बड़े नौसैनिक जहाज विक्रमादित्य मैं उन्हें अपनी सेवा देने का अवसर मिला। बिहार रेजिमेंट के बारे में बताते हुए उन्होंने यह कहा कि यह थल सेना की एक लड़ाकू टुकड़ी है एवं भारतीय वायु सेना की छठी स्क्वाडर्न का हिस्सा भी है। सैनिक गतिविधियों में मारक क्षमता रखने वाले जगुआर लड़ाकू विमानों का का संचालन इसी छठी स्क्वाड से किया जाता है।

लेफ्टिनेंट जनरल ए के बख्शी ने बिहार रेजिमेंट के इतिहास के बारे में जानकारी दी। उन्होंने यह बताया कि अंग्रेजो के खिलाफ भारतवर्ष में होने वाले विभिन्न क्रांति हूं मैं बिहार के सपूतों ने अपना योगदान दिया। आज की बिहार रेजिमेंट की नींव 1941 में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने के बाद रखी गई थी। उन्होंने यह भी बताया कि ऐतिहासिक दृष्टि से बिहार रेजिमेंट में उत्तरी एवं दक्षिणी बिहार (आज का झारखंड) के लोग शामिल होते थे। आज के बिहार रेजिमेंट ना सिर्फ बिहार बल्कि झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश एवं गुजरात से भी भर्तियां करती है। इस रेजिमेंट ने 1947 एवं 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। संयुक्त राष्ट्र के अफ्रीकी देशों में शांति गतिविधियों में भी बिहार रेजिमेंट आगे रही है। हाल ही में भारत एवं चीन के मध्य हुए गलवान घाटी के प्रकरण में बिहार रेजिमेंट के जवानों ने शत्रु के दांत खट्टे करते हुए वीरगति पाई।

नितिन गोखले ने गलवान घाटी की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि 16 बिहार रेजिमेंट के जवान गत दो वर्षों से इलाके में तैनात थे। कर्नल संतोष बाबू इसके कमांडिंग ऑफिसर थे। इस पूरे सैनिक मुठभेड़ में करीब 35 से 40 चीनी सैनिकों की मृत्यु हुई तथा यह घटना अगले 20- 30 वर्षों तक भारत के दृढ़ निश्चय एवं चीनी विस्तारवाद के विरुद्ध एक मजबूत नेतृत्व के तौर पर याद की जायेगी। इस घटना की तुलना उन्होंने नाथूला एवं चोला घाटी के चीनी पराजय से किया। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय सेना में अब महिलाओं की भी अहम भूमिका है।