बिहार : एक्स एमपी आनंद मोहन किडनैपिंग केस में बाइज्जत बरी

वर्ष 1991 में मधेपुरा लोकसभा आम चुनाव के उपचुनाव में एक पीठासीन पदाधिकारी गोपाल यादव के किडनैपिंग के मामले में एक्स एमपी आनंद मोहन लोकल एमपी- एमएलए स्पेशल कोर्ट से रिहा कर दिये गये। मामले की सुनवाई करते हुए एमपी- एमएलए स्पेसल कोर्ट के जज एडीजे तीन विकास कुमार सिंह ने एवीडेंस के अभाव में एक्स एमपी को बरी कर दिया।

बिहार : एक्स एमपी आनंद मोहन किडनैपिंग  केस में बाइज्जत बरी
  • अंधेरा कितना भी घना हो, रोक नहीं सकता सूरज की रोशनी

पटना। वर्ष 1991 में मधेपुरा लोकसभा आम चुनाव के उपचुनाव में एक पीठासीन पदाधिकारी गोपाल यादव के किडनैपिंग के मामले में एक्स एमपी आनंद मोहन लोकल एमपी- एमएलए स्पेशल कोर्ट से रिहा कर दिये गये। मामले की सुनवाई करते हुए एमपी- एमएलए स्पेसल कोर्ट के जज एडीजे तीन विकास कुमार सिंह ने एवीडेंस के अभाव में एक्स एमपी को बरी कर दिया।

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साजिश के कारण सजा पूरा होने के बाद भी जेल के सीखचों में हैं बंद
आनंद मोहन ने कहा कि न्याय व्यवस्था के प्रति हमेशा से उनकी आस्था रही है। इस मामले में न्याय मिलने से न्यायपालिका के प्रति उनका विश्वास और मजबूत हुआ है। उन्होंने कहा कि एक गहरी राजनीतिक साजिश के तहत उन्हें सजा पूरा होने के बाद भी जेल में बंद रखा गया है। परंतु इससे वह निराश और हताश नहीं हैं। कोई अंधेरा इतना घना नहीं होता, जो सूरज की रोशनी को रोक दे। किसी रात में इतनी औकात नहीं कि दिन के उजाले को आने से रोक दे। एक्स एमपी ने कहा कि तमाम बंदिशों के बावजूद वह न्याय के प्रति अटूट आस्था रखते हुए न्यायादेश का पालन करते रहेंगे।कृष्णइया हत्याकांड मामले में उन्होंने कहा कि वो पूरी तरह निर्दोष हैं लेकिन उस मामले में उन्होंने पूरी सजा काट ली है फिर भी जेल में बंद हैं। न्यायालय पर भरोसा है।

आनंद मोहन के बारे में जानें

सहरसा जिले के पचगछिया गांव के रहने वाले हैं आनंद मोहन
स्वतंत्रता सेनानी थे दादा

आनंद मोहन ने जेपी आंदोलन से ही राजनीति पॉलिटिक्स में ली थी एंट्री।
आनंद मोहन 17 साल की उम्र से सक्रिय राजनीति में उतर गये।
1990 में जनता दल की टिकट पर माहिषी विधानसभा सीट से उन्होंन जीत दर्ज की।
आनंद मोहन ने 1993 में अपनी खुद की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई।
समता पार्टी से हाथ मिलाते हुए चुनाव लड़ा।
1995 में आनंद मोहन का नाम सीएम कैंडिडेट के रूप में भी उभरा।
1998 में आनंद मोहन शिवहर से एमपी बने, आरजेडी को समर्थन दिया।
1999 में वे बीजेपी के साथ आ गये।
IAS अफसर की मौत का मामला

गोपालगंज के डीएम आईएएस अफसर की पांच संबर 1994 में की मर्डर के मामले में आनंद मोहन पर कार्रवाई हुई।
आरोप था कि जिस भीड़ ने आईएएस जी कृष्णइया की पिटाई और गोली मारकर मर्डर कर दी। उसे उसकाने वाले आनंद मोहन थे।
2007 में पटना हाइकोर्ट ने आनंद मोहन को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई।
आजाद भारत का ये पहला मामला था जब किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले नेता को फांसी की सजा दी गई हो।
2008 में इस सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया।
आनंद मोहन पर कई मामले दर्ज थे, इनमें वे बच जाते रहे।