नई दिल्ली: पीएम मोदी ने राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पारित होते ही गृह मंत्री अमित शाह की पीठ ठोंकी

नई दिल्ली: राज्यसभा में सोमवार को लगभग आठ घंटे की लंबी चर्चा के बाद जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पारित हो गयाा. विधेयक पारित होते हीसत्ता पक्ष के खेमें में खुशी छा गयी. बीजेपी का कई दशकों का पुराना सपना पूरा हो गया. विधेयक पारित होते ही गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में मौजूद पीएम नरेंद्र मोदी का हाथ जोड़कर अभिवादन किया. पीएम तुरंत ही सीट से उठकर पास की बेंच में बैठे गृह मंत्री अमित शाह की गर्मजोशी के साथ पीठ ठोंकी. बिल पारित होने के बाद पीएम का उत्साह देखते ही बन रहा था. पीएम मोदी शाह की पीठ ठोंकने के बाद विपक्षी बेंचों की ओर भी बढ़े. पीएम ने एआईडीएमके सहित बीएसपी, डीएमके और दूसरे दलों के सदस्यों के मिलते हुए कांग्रेस सदस्यों की बेंचों तक जा पहुंचे. पीएम ने इस दौरान राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा से हाथ मिलाया.पिछली बेंच में खड़े जयराम रमेश पीएम से मिलने के लिए खुद उनके पास आए.पीएम मोदी को विपक्षी बेंचों की तरफ आया और मिलते देख सदन में उपस्थित दूसरे दलों के सांसदों ने भी आगे बढ़कर उनसे हाथ मिलाया.पीएम बीएसपी सांसद सतीश चंद्र मिश्र से भी गर्मजोशी से मिले और विधेयक का समर्थन करने के लिए उन्हें धन्यवाद भी कहा. बीएसपी ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक का समर्थन किया था. आजाद विचलित दिखे, सदन से निकले बाहर राज्यसभा में विधेयक पारित होने के बाद गुलाम नबी आजाद थोड़े विचलित दिखे.जैसे ही विधेयक पारित हुआ, वह तेजी से सदन से बाहर निकल गये. इससे पहले आजाद ने विधेयक पर गृह मंत्री के बोलने के बाद जिन मुद्दों को उठाया था, उसमें भी स्पष्टता नहीं थी. ऐसा करते वक्त आजाद की झुंझलाहट स्पष्ट दिख रही थी. आजाद के सदन से निकले के बाद भी कांग्रेस के अन्य सांसद काफी देर तक सदन में मौजूद थे. एक साथ चार फैसले गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को राज्यसभा में मोदी गर्वमेंट का एक साथ चार ऐतिहासिक फैसला सुना दिया. फैसला नंबर 1- जम्मू कश्मीर राज्य से संविधान के अनुच्छेद 370 (1) के अलावा सभी खंडों को हटाने और राज्य का विभाजन करने का प्रस्ताव, फैसला नंबर 2- जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव, फैसला नंबर 3-जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र की अपनी विधायिका के बारे में प्रस्ताव, फैसला नंबर 4-लद्दाख बिना विधायिका वाला केंद्र शासित क्षेत्र होने के बारे में प्रस्ताव रखा. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख होंगे देश के दो सबसे बड़े केंद्र शासित प्रदेशजम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने की केंद्र सरकार के प्रस्ताव के लागू होने पर क्षेत्रफल के लिहाज से जम्मू-कश्मीर के बाद लद्दाख देश का दूसरा सबसे बड़ा केंद्र शासित प्रदेश (UT) होगा. गौरतलब है कि वर्तमान समय में सिर्फ दिल्ली और पुदुचेरी में विधानसभा हैं.अब जम्मू-कश्मीर भी विधानसभा वाला तीसरा केंद्र शासित प्रदेश हो जायेगा.विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल की जगह उपराज्यपाल होते हैं.केंद्र शासित प्रदेशों से संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के लिए सदस्य भी चुने जाते हैं. इनकी संख्या हर राज्य में अलग-अलग होती है. सांसदों की संख्या के लिहाज से दिल्ली नबंर एक पर है. संसद में दिल्ली का प्रतिनिधित्व 7 लोकसभा और 3 राज्यसभा सदस्य करते हैं.सरकार के पास थी शक्ति Article 370 हटाने की नई दिल्ली: गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार राज्यसभा में अपने संबोधन के दौरान कहा कि कैसे सरकार के पास अनुच्छेद 370 को खत्म करने की शक्ति है. शाह ने राज्यसभा में दिए अपने बयान में यह साफ कर दिया कि धारा अनुच्छेद 370 को हटाने में इसके तहत आने वाली धारा का ही इस्तेमाल किया गया. सच तो ये है कि मोदी सरकार ने कुछ भी असंवैधानिक ढंग से नहीं किया बल्कि संविधान से ही नुक्ते खोजकर बदलाव लाया गया है. गृहमंत्री ने कहा कि अनुच्छेद 370 के अंदर ही इसका प्रावधान है. केंद्र जो फैसला करता था उसे जम्मू-कश्मीर की विधानसभा अगर माने तो ही वो लागू हुआ करता था. अब चूंकि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा है तो साफ है कि राष्ट्रपति के आदेश मुताबिक संसद फैसले ले सकती है. अलग से उसे पास कराने की ज़रूरत बची ही .अनुच्छेद 370 को पूरी तरह खत्म नहीं किया गया, बल्कि इस अनुच्छेद के क्लॉज 3 के तहत राष्ट्रपति को जो अधिकार मिले हैं, उन्हीं का इस्तेमाल करते हुए केंद्र ने राष्ट्रपति के माध्यम से अधिसूचना जारी की. इस अधिसूचना के अनुसार अब जम्मू-कश्मीर में भी भारत का संविधान लागू होगा और अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को जो विशेष दर्जा और विशेषाधिकार मिले थे, वे सभी खत्म हो जायेंगे. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अनुच्छेद 370 खत्म करने की अधिसूचना जारी कर दी थी. ऐसे में कोई वोटिंग की भी जरुत नहीं.अनुच्छेद 370 का क्लॉज 3 कहता है कि राष्ट्रपति कश्मीर के संबंध में अधिसूचना जारी कर सकते हैं. इस अधिसूचना के लिए राज्य विधानसभा की सिफारिश जरूरी होती है.राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है, इसलिए राष्ट्रपति ने केंद्र की अनुशंसा पर आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं. उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 370 एक टेंपरेरी प्रावधान था और ये खुद पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार भी मानती थी. इसे एक दिन खत्म होना था और आज भी ये खत्म नहीं हुई है बल्कि उस तरफ एक कदम बढ़ाया गया है. शाह ने राज्यसभा में कहा कि संविधान में अनुच्छेद 370 अस्थाई था, इसका मतलब ही यह था कि इसे किसी न किसी दिन हटाया जाना था लेकिन अभी तक किसी में राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी, लोग वोट बैंक की राजनीति करते थे लेकिन हमें वोट बैंक की परवाह नहीं है. Article 370 भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक 'अस्थायी प्रबंध' के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाला राज्य का दर्जा देता है. भारतीय संविधान के भाग 21 के तहत जम्मू और कश्मीर को यह अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रबंध वाले राज्य का दर्जा हासिल होता है. भारत के सभी राज्यों में लागू होने वाले कानून भी इस राज्य में लागू नहीं होते हैं. 1965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था.संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए.जम्मू और कश्मीर के लिए यह प्रबंध शेख अब्दुल्ला ने वर्ष 1947 में किया था. शेख अब्दुल्ला को राज्य का प्रधानमंत्री महाराज हरि सिंह और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नियुक्त किया था. तब शेख अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में इसका प्रबंध अस्थायी रूप में ना किया जाए.उन्होंने राज्य के लिए कभी न टूटने वाली, 'लोहे की तरह स्वायत्ता' की मांग की थी, केंद्र ने इसे ठुकरा दिया था.इस आर्टिकल के मुताबिक रक्षा, विदेश से जुड़े मामले, वित्त और संचार को छोड़कर बाकी सभी कानून को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को राज्य से मंजूरी लेनी पड़ती है.राज्य के सभी नागरिक एक अलग कानून के दायरे के अंदर रहते हैं, जिसमें नागरिकता, संपत्ति खरीदने का अधिकार और अन्य मूलभूत अधिकार शामिल हैं. इसी आर्टिकल के कारण देश के दूसरे राज्यों के नागरिक इस राज्य में किसी भी तरीके की संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं.  370 व 35A खत्‍म होने से जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी कई नये और महत्वपूर्ण अधिकार मिलेंगे सेंट्रल गर्वमेंट ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने को लेकर इस बड़े फैसले पर अपना रुख स्पष्ट किया है. संसद में अनुच्छेद-370 व 35ए खत्म करने पर केंद्र सरकार ने अंग्रेजी की एक कहावत कही है, 'Article 370 was elephant in the room', मतलब अनुच्छेद-370 कमरे में बंद हाथी की तरह है. सभी इससे परेशान हैं. सब इसे हटाना भी चाहते हैं, लेकिन सामना कोई नहीं करना चाहता. आतंकवाद समाप्त होगा सेंट्रल गर्वमेंट ने कहा कि अनुच्छेद-370 को हटाना इसलिए जरूरी था क्योंकि इसकी वजह से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पनप रहा था. इसकी वजह से राज्य में भ्रष्टाचार बेकाबू हो चुका था.राज्य का विकास बाधित हो रहा था. राज्य में बाहरी निवेश नहीं हो पा रहा था. सरकार ने जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती द्वारा संविदान के अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने के विरोध को भी नजरअंदाज कर दिया है. केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 व 35ए को निरस्त करने के प्रावधानों की व्याख्या करने वाली एक पुस्तिका (बुकलेट) भी तैयार की है.सरकार ने कहा कि इस ऐतिहासिक फैसले के बाद अन्य राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर में भी सूचना का अधिकार (RTI) और नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक (CAG) जैसे भ्रष्टाचार विरोधी कानून स्वतः लागू हो जायेंगे. अब तक ये दोनों कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं थे. सरकार ने उम्मीद जताई है कि इस फैसले के बाद राज्य में समृद्धि आयेगी. राज्य में विकास की रफ्तार तेज होगी और निवेश बढ़ेगा.घाटी में सामाजिक समामेलन से उग्रवाद और आतंकवाद का खतरा कम होगा.कश्मीर, देश ही नहीं दुनिया के शीर्ष पर्यटन स्थलों में शामिल है, लेकिन दहशतगर्दों की वजह से पर्यटक यहां आने से डरते थे.अनुच्छेद 370 खत्म होने और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने के बाद पर्यटक बेफिक्र कश्मीर आ-जा सकेंगे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों जगहों पर पर्यटन बढ़ेगा. केंद्र सरकार ने इस फैसले को भारत-पाकिस्तान विवाद के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण बताया है.यहां के क्षेत्रीय विवादों पर पाकिस्तान से निपटने के लिए ये फैसला अच्छी कूटनीति साबित होगा. इससे घाटी में घुसपैठ रुकेगी.