धनबाद: झरिया की चार्मी सिंघवी बनेगी जैन साध्वी,अध्यात्म की राह चली, पारंपरिक रुप से दी गयी विदाई

झरिया:झरिया निवासी जैन धर्म से जुड़ी 28 साल की ग्रेजुएट चार्मी सिंघवी मोह-माया को त्याग तप और तपस्या की राह पर निकल पड़ी है. सांसारिक बंधनों से मुक्त होने के लिए चार्मी ने बुधवार को वरसी दान (सांसारिक वस्तुओं यथा आभूषण और धन का त्याग) की परंपरा पूरी की. चार्ली बुधवार को अपने माता-पिता, परिजनों और सहेलियों से सांसारिक जीवन के तहत अंतिम बार मिली.वह संयम अंगीकार कर सांसरिक दुनिया से दूर होकर ज्ञान पाने की राह पर चल पड़ी. चार्मी के साथ कोलकाता निवासी 20 साल की हिरल बने भी साध्वनी बनेंगी. झरिया जैन उपाश्रय से बुधवार की सुबह भव्य शोभायात्रा निकली. शोभायात्रा में शामिल चार्मी शहर का भ्रमण करते हुए अग्रसेन भवन पहुंची. कोलकाता से आई मुमुक्षु बहने भी थीं. गाजे-बाजे के साथ निकली शोभायात्रा में चार्मी एक लाल कार पर सवार हाथ जोड़कर सभी लोगों का अभिवादन कर रही थी. जुलूस में शामिल लोग जय महावीर, जय जिनेंद्र ‘अहिंसा परमो धर्म.., जय जैनेंद्र दीक्षा की जय जयकार..., दीक्षा अमर रहे...’ आदि उदघोष कर रहे थे. चार्मी ने अपने हाथों से आभूषण और धन उपस्थित लोगों के बीच लुटाया. सांसारिक जीवन को त्याग करने वाली चार्मी के माता पिता के अलावा जैन समाज के सैकड़ों लोग उन्हें विदाई दे रहे थे.इसके बाद अग्रसेन धर्मशाला में जैन संघ परम वार्षिकोत्सव समारोह हुआ. इस दौरान गुजराती समाज की ओर से चार्मी बेन व हिरल बेन को शॉल व दान देकर सम्मानित किया गया. मौके पर आसनसोल, चास, बोकारो, कतरास, धनबाद व गुजरात के जैन समाज के लोग उपस्थित थे.. चार्मी को विदाई देते हुए चार्मी की उसकी मां शीला बेन संघवी, पिता देवेंद्र भाई संघवी, जैन समाज के दीपक उदानी, हरीश जोशी, नयना मोदी की आंखें भर आईं.वरसी दान की रवायत पूरी करने के बाद चार्ली सांसारिक जीवन त्याग कर संत नम्र मुनि के सानिध्य में चली गई. 18 नवंबर को पूर्णिमा के दिन कोलकाता में मुंडन संस्कार के बाद पूर्णत: साध्वी बन जायेंगी. साध्वी का वस्त्र धारण करेंगी.कोलकाता निवासी केतन भाई जेशानी व माता शर्मिला बेन की पुत्री हिरल बेन है. उनके भाई का नाम मनन भाई जेशानी है.का पैतृक गांव जामनगर गुजरात है. हिरन बी-कॉम ग्रेजुएट हैं. चार्मी का परिचय एक साधारण परिवार में चार्मी का जन्म हुआ. चार्मी के पिता फतेहपुर लेन नंदवाणा भवन निवासी देवेंद्र भाई संघवी व माता शीला बेन संघवी हैं. चार्मी का पैतृक गांव गुजरात के मुंद्राकच्छ में है. चार्मी की प्रारंभिक शिक्षा बालिका विद्या मंदिर झरिया में हुई. इंटरमीडिएट की शिक्षा महिला इंटर महाविद्यालय झरिया से की. रत्नाकर से धार्मिक शिक्षा हासिल की. चार्मी दो बहनों में छोटी हैं. चार्मी जैन धर्म के प्रख्यात संत नम्र मुनि जी महाराज के सानिध्य में संयम अंगीकार कर साध्वी बनेगी. चार्मी का प्रारंभ से ही आध्यात्म की ओर झुकाव था. जीवन क्या है, इसका क्या मकसद है, चार्णी तीन वर्ष पहले माता-पिता की आज्ञा लेकर राष्ट्र संत नम्र मुनि जी महाराज के सानिध्य में मुंबई पहुंच तप किया. इसी क्रम में अब वरसी दान की परंपरा बुधवार को पूरी की. झरिया की परी दे साल पहले बनी थी साध्वी झरिया की बेटी परी दो साल साध्वी बन गई थी. वरसी दान की परंपरा के दौरान उसने झरिया का भ्रमण किया था. परी को अब परम पावंता महासती के नाम से लोग जानते हैं.