Manipur Violence: अफवाहों और फेक न्यूज से मणिपुर में हिंसा को मिली बढ़ावा, मैतेइ व कुकी समुदाय के 160 लोगों की मौत

मणिपुर में जातीय हिंसा के दौरान बड़े स्तर पर फैली अफवाहों और फेक न्यूज ने हिंसा को हवा दी। इससे स्टेट में हालात बिगड़े। यह बात पूर्वोत्तर राज्य में स्थिति की निगरानी कर रहे विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के अफसरों ने कही है। मणिपुर में दो समुदायों के बीच तीन मई से भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।

Manipur Violence: अफवाहों और फेक न्यूज से मणिपुर में हिंसा को मिली बढ़ावा, मैतेइ व कुकी समुदाय के 160 लोगों की मौत
अफवाहों और फेक न्यूज से मणिपुर में हिंसा फैली।
  • फर्जी फोटो की वजह से ही चार मई को कांगपोकपी में भड़की थी हिंसा
  • फर्जी तस्वीर के कारण अराजकता जंगल की आग की तरह फैली

इंफाल। मणिपुर में जातीय हिंसा के दौरान बड़े स्तर पर फैली अफवाहों और फेक न्यूज ने हिंसा को हवा दी। इससे स्टेट में हालात बिगड़े। यह बात पूर्वोत्तर राज्य में स्थिति की निगरानी कर रहे विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के अफसरों ने कही है। मणिपुर में दो समुदायों के बीच तीन मई से भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।

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अफवाह और झूठी खबर का रिजल्ट
कांगपोकपी जिले में चार मई को दो महिलाओं को नग्न करके घुमाने और सामूहिक दुराचार की घटना अफवाह और झूठी खबर का ही परिणाम थी। पालिथीन में लिपटे एक बॉडी की फोटो इंटरनेट मीडिया शेयर कर दावा किया गया कि चूड़चंदपुर में आदिवासियों द्वारा इस पीड़िता की मर्डर की गई है। हालांकि बाद में पता चला कि प्रसारित फोटो दिल्ली में हुई एक वारदात की थी लेकिन उस समय तक घाटी में हिंसा भड़क चुकी थी।
दो और महिलाओं की दुराचार के बाद मर्डर

इंटरनेट पर बैन का विरोध
अगले दिन कांगपोकपी में बदले की भावना से मानवता को शर्मसार करने वाली घटना को अंजाम दिया गया दिया। उसी एक अन्य स्थान पर 20 साल की दो और महिलाओं की दुराचार के बाद मर्डर कर दी गई। अफसरों ने कहा कि फर्जी फोटो के कारण अराजकता जंगल की आग की तरह फैल गई और राज्य सरकार द्वारा इंटरनेट बंद करने का एक कारण यह भी था। हालांकि इंटरनेट पर रोक का विरोध भी हुआ। विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकला है कि लोकल समाचार पत्रों द्वारा भी प्रसारित की जा रही फर्जी या एकतरफा खबरों पर कोई कंट्रोल नहीं है।
पुलिस जांच में सच्चाई का खुलासा
अफसरों ने कहा कि एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र ने हाल में दावा किया था कि आर्म्स से लैस आदिवासी लोगों ने चंदेल जिले के क्वाथा गांव में बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों पर हमला करने और गांव जलाने की योजना बनाई थी। पुलिस जांच में सामने आया कि खबर में कोई सच्चाई नहीं थी। पुलिस ने फिर से अपील की कि संवेदनशील मामलों में केवल सही जानकारी ही प्रकाशित की जानी चाहिए। मणिपुर में मैती समुदाय की आबादी लगभग 53 परसेंट और कुकी-नगा की लगभग 47 परसेंटहै।
सिविल सोसाइटी ग्रुप के विरुद्ध राजद्रोह का केस दर्ज
असम राइफल्स ने मणिपुर इंटीग्रिटी पर समन्यवय समिति (कोकोमी) के प्रमुख जितेंद्र निंगोम्बा के खिलाफ देशद्रोह और मानहानि का मामला दर्ज किया है। हाइ लेवल डिफेंस सोर्सेज ने  ने कहा कि इस सिविल सोसाइटी ग्रुप के खिलाफ 10 जुलाई को एफआइआर दर्ज की गई थी।इस संगठन ने लोगों से पुलिस से लूटे गयेवापस नहीं लौटाने का आह्वान किया था। मणिपुर में तीन मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद 4,000 से अधिक आर्म्स और लाखों गोलियां पुलिस शस्त्रागार से छीन लिए गए थे।

घर के अंदर बंद कर स्वतंत्रता सेनानी की वाइफ को जलाया गया
महिलाओं से हैवानियत का मामला सामने आने के बाद अब हिंसा प्रभावित मणिपुर में कई घटनाएं सामने आ रही हैं। इंफाल से करीब 45 किलोमीटर दूर काकचिंग जिले के सेरौ गांव में एक स्वतंत्रता सेनानी की 80 साल की वाइफ को 28 मई की सुबह एक सशस्त्र समूह ने उनके घर के अंदर बंद कर घर को आग के हवाले कर दिया था। सेरौ पुलिस पुलिस स्टेशन में महिला की हत्या के संबंध में केस दर्ज हुआ है।मैतेइ समुदाय के स्वतंत्रता सेनानी महिला के पति एस चुराचंद सिंह को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने सम्मानित किया था। सैरो हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित गांवों में से एक था। महिला को बचाने आए उनके पौत्र को भी गोलियों से जख्मी कर दिया गया था।
160 से अधिक लोगों की मौत
3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 160 से अधिक लोगों की जान चली गई है और कई घायल हुए हैं। हिंसा की आग उस समय भड़की जब मेतैई समुदाय ने कुकी समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल होने की मांग का हिंसक रूप से विरोध किया। कुकी समुदाय ने 'आदिवासी एकजुटता मार्च' निकाला, जिसका विरोध करते हुए मेतैई समुदाय की ओर से घरों में आग तक लगा दी गई।समणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नागा और कुकी की 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं।