बिहार: धोती-कुर्ता और गंवई ठाठ में चार दशक तक गरीबों की आवाज बने रहे रघुवंश बाबू, गांव से करते थे बहुत प्यार

बिहार: धोती-कुर्ता और गंवई ठाठ में चार दशक तक गरीबों की आवाज बने रहे रघुवंश बाबू, गांव से करते थे बहुत प्यार
रघुवंश प्रसाद सिंह (फाइल फोटो)।

पटना। चार दशक से राजनीतिक में एक्टिव रहे रघुवंश प्रसाद सिंह पांच बार वैशाली से एमपी रहे। सादगी भी वैसी ही और विचार भी वैसे ही। अनवरत चलते रहने और लोगों को जगाए रखने की जिद ही थी जो रघुवंश बाबू  इस ‘काली कोठरी’ से भी मुस्कुराते हुए बेदाग निकल गये। दपदप धोती और कुर्ता, हवाई चप्पल,कंधे पर गमछा, ठंडे में गर्दन से लिपटी खादी की चादर, बिखरे बाल और चेहरे पर मुस्कान, ठेठ भाषण और दिल में उतर जाने वाला गंवई अंदाज। यही रघुवंश बाबू की पहचान थी।  

भूजा फांकते और बनाते थे भविष्य की नीति
उन्होंने कई बार कहा भी था कि मुझे खाने-पीने का नहीं बस लोगों को हंसाने का शौक है। और लोग हंसेंगे कैसे जब भर पेट रोटी-दाल मिले। लोकनायक जेपी के साथ ही मैंने खाली पेट ये सपने देखे थे। रघुवंश बाबू के कई सहयोगियों का कहना है कि सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में जब वे अवैतनिक शिक्षक हुआ करते थे तब कभी शिक्षक तो कभी छात्रों के साथ बैठकर आगे की रणनीति बनाते थे। कॉलेज से उतने पैसे मिलते नहीं थे कि ठीक से रह सकें और बढ़िया भोजन कर सकें। कई दिन भूजा फांककर ही काम चल जाता था। लेकिन मुस्कुराहट ऐसी की कोई इसे भांप तक नहीं पाता। बाद में कॉलेज को सरकारी मान्यता मिली तो कुछ पैसे मिलने लगे।

अपना आशियाना न बना सके
रघुवंश बाबू का कोई स्थाई ठिकाना नहीं था। स्वाभाव से यायावर भी नहीं थे। बस अपना घर नहीं था तो पता कहां का देते। वैशाली के महानार शाहपुर गांव में धर था। मगर राजनीति वहां से की नहीं। नेता तो देश के हुए मगर राजनीतिक कर्मभूमि वैशाली, मुजफ्फरपुर और सीतामढ़ी रही। पांच बार एमएलए, व पांच बार वैशाली के एमपी, सेंट्रल स्टेट में मिनिस्टर रहे लेकिन मुजफ्फरपुर में हमेशा किराए के मकान में रहे। जब चुनाव आता तो मकान खोजने लगते। करीबियों की मानें तो कई बार तो मकान पसंद होने के बावजूद उसे नहीं लेते क्योंकि उसका किराया दो हजार से अधिक होता। कम किराये वाले मकान में रघुवंश बाबू की धुनी रमती थी। वहीं से चुनाव जीत कर दिल्ली पहुंच जाते। पांच साल सरकारी कोठी में और फिर दो से तीन कमरे के मकान की खोजश शुरू हो जाती।

गांव से करते थे बहुत प्यार
हॉस्पीटल में एडमिट होने के पहले रघुवंश बाबू वैशाली स्थित अपने गांव में ही रहते थे। खेती में भी हाथ बंटाते थे। दर्जनों देशों में राजनीतिक दौरा करने वाले रघुवंश बाबू ने कभी दिल्ली या पटना में आशियाना नहीं बनाया। उनके संसदीय क्षेत्र के लोगों ने बताया कि बतौर मंत्री रहते वे गांव में रुक जाते थे। उस समय उनके गाड़ियों का काफिला होता था। चंद घंटे में दिल्ली या पटना पहुंच सकते थे।
रघुवंश बाबू ने वैशाली में दिया था अंतिम भाषण, उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहां जो सोवत है...
वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह वर्ष 2020 की 26 जनवरी  को वैशाली झंडातोलन कार्यक्रम में पहुंचे थे। उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहां जो सोवत है। जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है। रघुवंश बाबू का वैशाली गढ पर दिया गया यह अंतिम है। उन्होंने इन्हीं लाइनों से कार्यकर्ताओं के मनोबल ऊपर उठाने का काम किया था।
उन्होंने तब तक वैशाली गढ पर झंडोत्तोलन कराने की बात कही थी, जब तक वैशाली गढ़ पर गवर्नर व सीएम द्वारा राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया जाए। उन्होंने इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा अपनी सहमति भी देने की बात कही थी। वह वैशाली में 26 जनवरी और 15 अगस्त को झंडातोलन करने के लिए बिहार सरकार को हमेशा वे पत्र लिखा करते थे। वैशाली में स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडातोलन कराने के मांग को लेकर हमेशा आवाज बुलंद की। यहां झंडातोलन कराने को लेकर पांच दलित महिलाओं के माध्यम से वैशालीगढ पर झंडोत्तोलन की उन्होंने शुरूआत कराई। लगभग दो दशक से रघुवंश बाबू के नेतृत्व में यहां झंडोत्तोलन का कार्य शुरू कराया गया था। 

कद्दावर नेताओं थी पहचान

रघुवंश बाबू की पहचान कद्दावर नेताओं में होती थी। तीन दिन पहले यानी 10 सितंबर को ही उन्होंने आरजेडी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी थी। हालांकि, रघुवंश के इस्तीफे को लालू ने खारिज कर दिया था। लालू ने कहा था कि आप कहीं नहीं जा रहे हैं। आरजेडी के वर्तमान माहौल से रघुवंश का मन दुखी हो गया था कि लालू की अपील को नजरअंदाज करते हुए वह आगे भी पत्र जारी करते रहे। उन्होंने अपने अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए सीएम नीतीश कुमार को भी पत्र लिखा। आग्रह किया कि मैंने प्रयास किया, किंतु पूरा नहीं कर पाया। 

रघुवंश प्रसाद सिंह का जन्म वैशाली जिला के शाहपुर में वर्ष 1946 की छह जून को हुआ था। उन्होंने पांच-पांच बार लोकसभा-विधानसभा और एक बार विधान परिषद में प्रतिनिधित्व किया। सेंट्रल में UPA गवर्नमेंट में मिनिस्टर रहे। युवावस्था से ही रघुवंश सक्रिय राजनीति में रम गये थे। वह मैथ में पीएचडी के साथ-साथ प्रोफेसर भी थे। जेपी आंदोलन के पहले से ही वे राजनीति में सक्रिय थे। वर्ष 1973 में उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का सचिव बनाया गया था। वर्ष 1977 से 1990 तक वे बिहार विधानसभा के सदस्य थे। उसी दौरान बिहार में कर्पूरी ठाकुर की सरकार में ऊर्जा मंत्री भी बनाये गये। वर्ष 1990 में विधानसभा में उपाध्यक्ष बनाए गये। बाद में जब लालू प्रसाद की सरकार बनी तो विधान परिषद के सभापति और बाद में मंत्री भी बने। 1996 में लोकसभा चुनाव जीतकर रघुवंश पहली बार केंद्रीय राजनीति में गये। 1998 और 1999 में दूसरी और तीसरी बार भी जीते। कई समितियों के सदस्य रहे। 2004 में चौथी बार लोकसभा के लिए चुने गए और 23 मई 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास मंत्री मंत्री रहे। मजदूरों के लिए शुरू की गई मनरेगा पहली बार उन्होंने ही शुरू की थी। 2009 में रघुवंश पांचवी बार लोकसभा के लिए चुने गये। तब केंद्र की संप्रग सरकार में उनकी पार्टी शामिल नहीं थी। फिर भी सोनिया गांधी ने उनके सामने लोकसभा अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उन्होंने सिर्फ इसलिए इनकार कर दिया कि केंद्र सरकार में उनकी पार्टी को हिस्सेदारी नहीं दी गई थी। 

जीवन के अंतिम पड़ाव में आरजेडी से हुआ मोहभंग

रघुवंश पसाद सिंह पटना एम्स में इलाज के दौरान ही आरजेडी के उपाध्यकक्ष सहित पार्टी के सभी पदों से इस्तीीफा दे दिया था। उन्हेंश मनाने की कोशिशें चल ही रहीं थीं कि वे फिर बीमार पड़ गये। इस बार दिल्लीा एम्स में इलाज के दौरान उन्होंंने 10 सितंबर को पार्टी से भी इस्तीेफा दे दिया। रघुवंश के इस्तीौफे को पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने स्वी्कार नहीं किया। वे पार्टी में अपने विरोधी रामा सिंह की एंट्री की कोशिशों से नाराज चल रहे थे।

जब तीन दिनों तक पिता से नहीं की थी बात, कर्पूरी का आग्रह भी किया था दरकिनार
वर्ष 1977 में रघुवंश प्रसाद सिंह ऊर्जा मंत्री थे। उनके पिता जी एक दिन अचानक उनके घर आ गये। रघुवंश बाबू ने उनके पटना पहुंचने पर कोई प्रतिक्रिया ही व्यक्त नहीं की। पिता ने सोचा कि संभव है व्यस्तता की वजह से ऐसा हुआ। पर दूसरे दिन भी उन्होंने कोई बात नहीं की। तीसरे दिन भी यही सिलसिला था।

पैरवी लेकर आये थे पिता इसलिए नहीं की बात
रघुवंश बाबू के स्कूल के दिनों के साथी रघुपति उनके पहुंचे। रघुवंश बाबू के पिता जी ने रुआंसा होते हुए उन्हें बताया कि- बउआ त हमरा से बाते नय करैय। रघुपति को यह बड़ा खराब लगा। वे तुरंत रघुवंश बाबू से मिलने पहुंचे और कहा कि- हद है भाई, आपके पिता जी के आये दो दिन हो गए हैं और आप उनसे बात ही नहीं कर रहे। रघुवंश बाबू ने उन्हें पूरी बात बतायी। कहा, बाबूजी को बिजली विभाग का एक इंजीनियर यहां अपनी पैरवी के लिए लेकर आया है। अगर उनसे बात करने लगें तो इंजीनियर समझ जायेगा कि बाबूजी को लेकर हम किस तरह से कमजोर हैं। इसलिए उनसे बात नहीं कर रहे हैं।

सरकारी गाड़ी रहते रिक्शा से पिता को भेजा

रघुवंश बाबू ने अपने बाल मित्र रघुपति जी को पैसा देते हुए कहा कि बाबू जी के लिए कपड़ा और जूता खरीद दीजिए। कपड़ा और जूता जब खरीद कर आ गया तो कहा कि रिक्शे से जाकर इन्हें बच्चा बाबू का स्टीमर पकड़वा दीजिए। रिक्शे की बात सुन रघुपति भौंचक रह गये । उन्होंने सवाल किया कि जब आपके पास गाड़ी है ही तो फिर रिक्शा से क्यों जायेंगे? रघुवंश बाबू ने कहा कि यह सरकारी गाड़ी है। इस पर भेजने से संदेश ठीक नहीं जायेगा। ऐसा नहीं था कि वह अपने पिता का मान-सम्मान नहीं करते थे। हालांकि बाद के दिनों में जब उनके पिता बीमार पड़े तो पटना लाकर अपने घर में रखा। पिता की मृत्यु भी उनके पटना स्थित आवास पर ही हुई।

गेस्ट हाउस में रुकने पर पैसे देने की कर दी जिद

रघुवंश बाबू ऊर्जा मंत्री थे उसी समय उन्हें राजगीर के पास एक गांव में किसी वैवाहिक आयोजन में जाना था। पटना से वह निकले। साथ में रघुपति भी थे। तय हुआ कि बख्तियारपुर में नीतीश कुमार को भी साथ में ले लेना है। सभी राजगीर के लिए निकले। जिस गांव में उन्हें जाना था वहां कार नहीं जा सकती थी। बिजली विभाग की एक जीप से सभी वहां गये। लौटकर बिजली विभाग के एक गेस्ट हाउस में रूके। सुबह भोजन के बाद लौटने लगे तो नीतीश कुमार को पैसा देते हुए कहा कि इसे गेस्ट हाउस वाले को दे दीजिए। गेस्ट हाउस वाले ने पैसा लेने से इनकार कर दिया। इंजीनियर साहब को बुलाया गया। इंजीनियर साहब ने कहा कि विभागीय नियम के अनुसार विभाग के मंत्री से भोजन का पैसा नहीं लेना है। इसके  बाद उस नियम को पढ़ा गया। तब जाकर वहां से रघुवंश बाबू निकले।

कर्पूरी ठाकुर की भी नहीं मानी थी बात

जब कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री थे। रघुवंश प्रसाद सिंह ने कई बार उनकी बात भी नहीं मानी। एक समय धार्मिक न्यास बोर्ड के मामले में कुछ परिवर्तन की बात थी। कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि क्यों झंझट मोल ले रहे? रघुवंश बाबू अड़ गये और कहा कि आपको फाइल पर जो लिखना हो लिख दीजिएगा। हमको जो समझ में आ रहा वह लिख रहे हैं।
प्रोफेसर से सेंट्रल मिनिस्टर तक का सफर

सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में मैथ के प्रोफेसर की नौकरी से जीवन की शुरुआत करने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह ने सेंट्रल मिनिस्टर तक की यात्रा की। वह राज्यसभा को छोड़कर शेष सभी तीन सदनों के सदस्य रहे। विधान परिषद के सभापति और विधान सभा में डिप्टी स्पीकर रहने का भी उन्हें सौभाग्य था। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में नरेगा (अब मनरेगा) योजना ने उन्हें देश में एक अलग पहचान दी। इस कारण वह सभी राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं के चहेते रहे। यूपीए टू में जब राजद केन्द्र की सरकार में शामिल नहीं था तब भी पीएम मनमोहन सिंह उन्हें मंत्रिमंडल में लेना चाहते थे। लेकिन अपने नेता लालू प्रसाद को छोड़कर उन्होंने कैबिनेट में जाने से उन्होंने इनकार कर दिया। 

उन्होंने गणित से पीजी करने के साथ पीएचडी की भी डिग्री ली थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में मैथ के प्रोफेसर के रूप में काम करना शुरू किया। लेकिन रघुवंश प्रसाद बहुत दिनों तक वहां नहीं रह सके। वर्ष 1974 के आंदोलन में वह नौकरी छोड कर कूद पड़े। उसके बाद से ही उनका सियासी सफर शुरू हुआ। हालांकि 1973 में ही उन्होंने संसोपा ज्वायन कर लिया था और 1977 तक उस पार्टी में रहे।रघुवंश बाबू पांच बार सांसद रहे। दस वर्षों तक विधायक और लगभग पांच साल तक विधान परिषद के सदस्य रहे। पहली बार 1977 में वह बेलसंड से विधायक बने, तब से 1990 तक वह विधान सभा के लिए चुने जाते रहे। इस बीच कर्पूरी ठाकुर मंत्रिमंडल में उन्हें 1977 में ही ऊर्जा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया। मंत्रिपरिषद से हटने के बाद 1985 से 90 तक वह लोक लेखा समिति के सदस्य रहे। 1990 में उन्हें विधान सभा का डिप्टी स्पीकर बनाया गया। उसी साल लालू प्रसाद की सरकार बनी तो वर्ष 1991 में ही पहली बार उन्हें विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया गया। इस दौरान वह वर्ष 1994 से एक वर्ष के लिए विधान परिषद के सभापति भी रहे। फिर लालू प्रसाद ने उन्हें 1995 में ऊर्जा मंत्री बना दिया। 

लालू प्रसाद ने वर्ष 1996 में रघुवंश बाबू वैशाली से लोकसभा का टिकट दिया। रघुवंश प्रसाद सिंह पहली बार सांसद बन गये। उसके बाद से लगातार पांच बार उन्होंने वैशाली लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया। इस बीच 1996 से 97 तक केन्द्रीय पशुपालन राज्य मंत्री और 1997 से 98 तक केन्द्रीय खाद्य राज्य मंत्री रहे। 2004 में जब वह चौथी बार सांसद बने तो यूपीए वन की सरकार में उन्हें केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बनाया गया। 
जेपी आंदोलन से शुरू हुआ राजनीतिक सफर, 1977 में पहली बार बने एमएलए
रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपना राजनीतिक सफर जेपी आंदोलन में शुरू किया। 1977 में वह पहली बार एमएलए बने और बाद में बिहार में कर्पूरी ठाकुर सरकार में मंत्री भी बने। आरेजडी सुप्रीमो लालू प्रसाद से रघुवंश प्रसाद का संबंध जेपी आंदोलन से रहा है। दोनों एक दूसरे के बेहद करीब भी रहे। जब 1990 में लालू प्रसाद बिहार के सीएम बने तो रघुवंश प्रसाद सिंह को विधान पार्षद बनाया, जबकि वह विधानसभा चुनाव हार चुके थे। वहीं जब एच डी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने तो लालू प्रसाद ने उन्हें बिहार कोटे से मंत्री बनवाया।रघुवंश प्रसाद सिंह की राष्ट्रीय राजनीति में पहचान अटल सरकार के दौरान बतौर आरजेडी नेता के रूप मिली। तब लालू प्रसाद बिहार के मधेपुरा से लोकसभा चुनाव हार गये थे। रघुवंश प्रसाद सिंह लोकसभा में पार्टी के नेता बने।

जीवन के अंत काल में लालू यादव से मोहभंग

रघुवंश प्रसाद सिंह पिछले 32 सालों तक लालू प्रसाद यादव के साथ रहे। उन्हेंर लालू का संकटमोचक कहा जाता था। कर्पूरी ठाकुर के दौर से दोनों साथ थे। रघुवंश प्रसाद सिंह ने ही लालू को बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाने में मदद की थी। कर्पूरी ठाकुर की मौत के बाद रघुवंश ने ही लालू को आगे बढ़ाया था। लालू प्रसाद यादव के साथ वे आरजेडी के संस्थापकों में रहे तथा पार्टी संविधान बनाने में भी उनकी अहम भूमिका रही। लेकिन जीवन के अंत काल में उनका लालू यादव से मोहभंग हो गया। उन्होंने लालू को चिठ्ठी भेजकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीाफा पत्र में लालू को संबोधित करते हुए उन्होंने लिखा कि जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक वे पीछे-पीछे खड़े रहे, लेकिन अब नहीं।

राजनीति में थे बेदाग व बेबाक चेहरा

रघुवंश प्रसाद सिंह बिहार की राजनीति में एक बेदाग चेहरा थे, जो आरजेडी में रहते हुए लालू के विरोध की हिम्मत रखते थे। समाजवादी नेता के तौर पर उनकी पहचान रही। वे पिछड़ों की राजनीति करने वाले आरजेडी में बड़ा सवर्ण चेहरा भी थे।बेदाग और बेबाक अंदाज को लेकर पहचान रखने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह का पढ़ने-पढ़ाने का शौक रहा। राजनेता बनने के पहले वे प्रोफेसर रहे। उन्होंने 1969 से 1974 के बीच करीब पांच साल तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में मैथ पढ़ाया था। हालांकि, आपातकाल के दौरान जयप्रकाश आंदोलन के दौरान जब वे जेल गए, जब राज्य की जगन्नापथ मिश्र की कांग्रेस सरकार ने उन्हें डिसमिस कर दिया।

कई अन्य आंदोलनों में भी गये जेल

आपातकाल के विरोध के अलावा वे कई अन्य आंदोलनों में भी जेल गए। वे पहली बार 1970 में शिक्षकों के आंदोलन में जेल गयेए। कर्पूरी ठाकुर के संपर्क में आने के बाद 1973 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के आंदोलन के दौरान फिर जेल गये। साल 1974 के जेपी आंदोलन में रघुवंश प्रसाद सिंह को फिर जेल भेज दिया गया। इसके बाद रघुवंश प्रसाद सिंह कर्पूरी ठाकुर और जयप्रकाश नारायण के रास्ते पर तेजी से चलते हुए राजनीति में अपनी पहचान बनाते चले गये।

लालू से दोस्ती , 32 साल तक चला साथ

वर्ष 1974 में जेपी आंदोलन के समय में रघुवंश को मीसा के तहत गिरफ्तार किया गया। उन्हेंद मुजफ्फरपुर जेल में रखा गया, फिर पटना के बांकीपुर जेल में भेज दिया गया। यहीं वे पहली बार लालू प्रसाद यादव से मिले थे। पटना यूनिवर्सिटी में छात्र नेता के रूप में सक्रिय लालू प्रसाद यादव भी जेपी आंदोलन के दौरान गिरफ्तार कर जेल में रखे गए थे। बांकीपुर जेल में लालू व रघुवंश में जो दोस्ती हुई, वह 32 सालों तक चली।

रघुवंश प्रसाद सिंह का पॉलिटिकल कैरियर

रघुवंश प्रसाद सिंह वर्ष 1977 से 1979 तक बिहार के ऊर्जा मंत्री रहे। उन्हेंा लोकदल का अध्य1क्ष भी बनाया गया। वर्ष 1985 से 1990 के दौरान वे लोक लेखांकन समिति के अध्य क्ष रहे। बतौर एमपी उनका पहला कार्यकाल 1996 से शुरू हुआ। उसी साल उन्हेंे बिहार राज्य के लिए केंद्रीय पशुपालन और डेयरी उद्योग राज्यमंत्री बनाया गया। वे लोकसभा के लिए 1998 और 1999 में भी चुने गये। लोकसभा की चौथी पारी 2004 में शुरू हुई। 2004 से 2009 तक वे केंद्र में ग्रामीण विकास के मंत्री रहे। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंरने पांचवी बार भी जीत दर्ज की थी। रघुवंश प्रसाद सिंह ने कभी बताया था कि यूपीए के दूसरे कार्यकाल में मनमोहन सिंह सरकार में भी उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल होने का मौका मिला था, लेकिन लालू यादव की दोस्ती की वजह से उन्होंाने इस प्रस्ता9व को ठुकरा दिया था। सोनिया गांधी ने रघुवंश को केंद्र में मंत्री या लोकसभा अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन रघुवंश ने कहा था कि उनके लिए पद कोई मायने नहीं रखता है, पार्टी बड़ी है। रघुवंश की इस भावना का लालू ने भी हमेशा सम्मान किया।

बच्चों को पॉलिटक्स से रखा दूर

दो भाइयों में बड़े रघुवंश प्रसाद सिंह के छोटे भाई रघुराज सिंह का पहले ही निधन हो चुका है। पत्नी जानकी देवी भी दुनिया में नहीं रहीं। दोनों बेटे सत्य प्रकाश व शशि शेखर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर नौकरी कर रहे हैं। एक बेटी टीवी चैनल में जर्नलिस्ट हैं। राजनीति में वंशवाद के खिलाफ रहे रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपने बच्चों को राजनीति से दूर रखा।