नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला,बहू को अपने सास-ससुर के घर में रहने का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत बहू को अपने पति के माता-पिता के घर में रहने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यह ऐतिहासिक फैसला दिया है। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन जस्टिस की बेंच ने तरुण बत्रा मामले में पूर्व के फैसले को पलट दिया है।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला,बहू को अपने सास-ससुर के घर में रहने का अधिकार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत बहू को अपने पति के माता-पिता के घर में रहने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यह ऐतिहासिक फैसला दिया है। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन जस्टिस की बेंच ने तरुण बत्रा मामले में  पूर्व के फैसले को पलट दिया है।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि फैमिली की ज्वाइंट प्रोपर्टी और रिहायशी घर में भी घरेलू हिंसा की शिकार पत्नी को हक मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा है कि पीड़ित पत्नी को अपने ससुराल की पैतृक और ज्वाइंट प्रोपर्टी यानी घर में रहने का कानूनी अधिकार होगा। पति की अर्जित की हुए प्रोपर्टी यानि अलग से बनाये हुए घर पर तो अधिकार होगा ही। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में घरेलू हिंसा कानून 2005 का हवाला देते हुए कई बातें स्पष्ट की है।कोर्ट ने कहा कि फौजदारी अदालत द्वारा घरेलू हिंसा कानून में किसी विवाहित महिला को दिया गया आवास का अधिकार प्रासंगिक है और सुसराल के घर से उसे निष्कासित करने की दीवानी कार्यवाही में भी उस पर विचार किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण कानून, 2005 पर विस्तार से चर्चा करते हुए  कहा, किसी भी समाज की प्रगति महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने और उसे बढ़ावा देने की क्षमता पर निर्भर करती है। संविधान द्वारा महिलाओं को समान अधिकार और विशेषाधिकार की गारंटी देना देश में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने की तरफ बढ़ाया गया कदम था।बेंच ने कानून के तहत साझा घर की परिभाषा की व्याख्या वाले पहले के फैसले को गलत कानून करार दिया और इसे दरकिनार कर दिया। पीठ ने कहा कि परिभाषा काफी व्यापक है और इसका उद्देश्य कानून के तहत पीड़ित महिला को आवास मुहैया कराना है।

बेंच नेअपने 151 पन्ने के फैसले में कहा, अनुच्छेद 2 (एस) के तहत साझा घर की परिभाषा केवल यही नहीं है कि वह घर जो संयुक्त परिवार का घर हो जिसमें पति भी एक सदस्य है या जिसमें पीड़ित महिला के पति का हिस्सा है। इसने कहा कि साझा घर वह स्थान है जहां महिला रहती है या घरेलू संबंध में अकेले अथवा पति के साथ कभी रही हो और इसमें वह घर भी शामिल है जिस पर मालिकाना हक है या जो किराये पर दिया गया है।कोर्ट ने कहा कि कानून के तहत किसी महिला के आवास के अधिकार की रक्षा पर अंतरिम आदेश संपति को लेकर दायर किये जाने वाले दीवानी मामलों के आड़े नहीं आयेगा। फैसले में कहा गया कि विभिन्न पक्षों द्वारा पेश साक्ष्यों के आधार पर दीवानी अदालतें मुद्दों को तय करेंगी।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला 76 वर्षीय दिल्ली निवासी सतीश चंदर आहूजा की याचिका पर आई जिन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी।दिल्ली हाई कोर्ट ने  वर्ष 2019 में लोअर कोर्ट के एक फैसले को दरकिनार कर दिया जिसमें आहूजा की पुत्रवधू को उनका कैंपस खाली करने का आदेश दिया गया था। आहूजा ने कहा था कि संपत्ति उनकी है और इस पर न तो उनके बेटे या न ही उनकी पुत्रवधू का मालिकाना हक है जिसके बाद कोर्ट ने  महिला को कैंपस खाली करने के आदेश दिए थे।

उल्लेखनीय है कि तरुण बत्रा मामले में पहले के फैसले में कहा गया था कि कानून में बेटियां, अपने हसबैंड के माता-पिता के स्वामित्व वाली संपत्ति में नहीं रह सकती हैं। एक वाइफ के पास केवल अपने पति की संपत्ति पर अधिकार होता है। तरुण बत्रा की ओर से सीनीयर एडवोकेट निधि गुप्ता ने ने दलील पेश की। उन्होंने कहा कि अगर बहू ज्वाइंट फैमिली की प्रोपर्टी है, तो मामले की समग्रता को देखने की जरूरत है। उसे घर में निवास करने का अधिकार है। इसके बाद कोर्ट  ने दलील को स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने कहा कि हसबैंड की अलग-अलग संपत्ति में ही नहीं, बल्कि ज्वाइंट घर में भी बहू का अधिकार है।