नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश

  • मुर्मु जम्मू-कश्मीर और माथुर लद्दाख के पहले उप राज्यपाल पद की शपथ ली
  • रेडियो कश्मीर का नाम अब ‘ऑल इंडिया रेडियो’
  • पांच अगस्त को केंद्र सरकार ने पास कराया था अनुच्छेद 370 हटाने का प्रस्ताव
  • अब देश में केंद्र शासित राज्य बढ़कर 9 और राज्य घटकर 28 हो गये
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर व लद्दाख 31 अक्टूबर 2019 यानी गुरुवार से दो नये केंद्र शासित राज्य हो गये. सेंट्रल गर्वमेंट द्वारा पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 खत्म करने के साथ इस राज्यों को दो केंद्र शासित राज्यों में विभाजित करने का प्रस्ताव बहुमत से पास किया गया था.इस फैसले को लेकर जहां भारत को अंतराष्ट्रीय समुदाय का साथ मिला, वहीं भारत में आतंक फैलाने के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान अलग-थलग नजर आया. देश में केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या बढ़कर नौव कुल राज्य 29 से घटकर 28 हो गयी. ऐसी चीजें होंगी, जो जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और पूरे देश के लिए पहली होंगी. श्रीनगर में गिरीश चंद्र मुर्मु ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर के पहले उपराज्यपाल के रूप में शपथ ग्रहण की. लद्दाख के पहले उपराज्यपाल के तौर पर राधाकृष्ण माथुर ने लेह में शपथ ली. जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गीता मित्तल ने दोनों को शपथ दिलाई. जम्मू, श्रीनगर और लेह के रेडियो स्टेशनों के नाम भी बदल गये हैं. इन स्टेशनों से आज से रेडियो कश्मीर की जगह ऑल इंडिया रेडियो और आकाशवाणी के नाम से प्रसारण शुरू हो गया है. अब इन्हें नाम ‘ऑल इंडिया रेडियो जम्मू’, ‘ऑल इंडिया रेडियो श्रीनगर’ और ‘ऑल इंडिया रेडियो लद्दाख’ कहा जायेगा. न्यायिक व्यवस्था केंद्र शासित प्रदेश होने के साथ ही कई बदलाव आज से हो गये हैं. नये नियमों के तहत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की न्यायिक व्यवस्था में कोई खास अंतर नहीं होगा. हाई कोर्ट की श्रीनगर और जम्मू बेंच पहले की तरह ही काम करती रहेंगी.लद्दाख के केस की सुनवाई भी पहले की तरह ही होती रहेगी. फिलहाल लगभग ऐसी व्यवस्था पंजाब और हरियाणा के लिए चंडीगढ़ बेंच की है. पुलिस प्रशासन इन सेवाओं के अधिकारी के कामकाज के बंटवारे को लेकर दोनों केंद्र शासित प्रदेशों के एलजी लेफ्टिनेंट गवर्नर अपनी-अपनी सिफारिशें केंद्र सरकार को देंगे. इनकी सिफारिशों के आधार पर ही केंद्र सरकार कोई फैसला लेगी. जम्मू-कश्मीर में डीजीपी (डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस) का मौजूदा पद बना रहेगा. लद्दाख में आईजीपी (इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस) पुलिस के प्रमुख होंगे. दोनों ही अधिकार केंद्र सरकार के निर्देश पर काम करेंगे. सेंट्रल गर्वमेंट के कानून होंगे लागू केंद्र सरकार के कई ऐसे कानून हैं जो पूरे देश में लागू होते थे, लेकिन जम्मू-कश्मीर के लोगों को उनका लाभ नहीं मिल पाता था. सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और आयुष्मान भारत जैसे कई कानूनों को जम्मू-कश्मीर में स्थान नहीं था. कई ऐसे नियम थे जो पूरे देश को छोड़कर सिर्फ जम्मू-कश्मीर में लागू होते थे. जैसे कश्मीर में महिलाओं के लिए शरिया कानून लागू था. पंचायतों को पर्याप्त अधिकार नहीं थे. कश्मीर में अल्पसंख्यक (हिंदू और सिखों) को मिलने वाला आरक्षण कानून लागू नहीं था.अब तक अन्य राज्यों के लोग कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे. अब यह फैसला लागू नहीं होगा. अब अन्य राज्यों के लोग भी जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकेंगे.वहां निजी उद्योग लागने के लिए भी जमीन खरीदी जा सकेगी. नई नियुक्तियां सरकार ने एसएस खंडारे को केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख का आईजीपी नियुक्त किया है. खंडारे 1995 बैच के जम्मू-कश्मीर काडर के आईपीएस हैं. आईएएस उमंग नरूला को लद्दाख में लेफ्टिनेंट गवर्नर सलाहकार नियुक्त किया गया है. देश के नक्शे पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो नये केंद्र शासित प्रदेश 31 अक्टूबर गुरुवार की सुबह 70 वर्षों की लंबी जद्दोजहद के बाद एक देश, एक विधान और एक निशान का सपना साकार हो गया. जम्मू-कश्मीर राज्य अतीत का हिस्सा बन गया और दो नये केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख देश के नक्शे पर उभर आये. दोनों ही जगह अलग-अलग प्रशासनिक व्यवस्था होगी, जिसकी कमान राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर उपराज्यपाल संभालेंगे. लद्दाख बिना विधानसभा के, जबकि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी लद्दाख बिना विधानसभा का केंद्र शाासित राज्य होगा, जबकि जम्मू कश्मीर में विधानसभा होगी. वाल्मीकि समाज को मिलेंगे सभी अधिकार वाल्मीकि समाज को भी राज्य की नागरिकता के साथ अन्य मूल अधिकार प्राप्त होंगे. छह दशक पहले वाल्मीकि समाज के कई परिवारों को पंजाब से जम्मू कश्मीर साफ सफाई के काम के लिए ही लाया गया था. तब यहां की सरकार ने इन लोगों को साफ सफाई की सरकारी नौकरियां दीं और आज भी यह लोग इन्हीं नौकरियों तक सीमित थे. दूसरी सरकारी नौकरियां पाना इनके लिए सपना ही बना रहा. महिलाओं का विश्वास बढ़ेगा आर्टिकल 370 व 35 ए के खत्म होने व जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने से महिलाओं में भी विश्वास जगा है. पहले जो महिला जम्मू कश्मीर के बाहर दूसरे राज्य में शादी करती थी तो शादी के बाद उसके यहां के सभी अधिकारी समाप्त हो जाते थे. अगर कोई यहां की महिला पाकिस्तान में शादी करती थी तो अगर वह वहां से यहां वापस आना चाहती तो उसे व उसके पति को यहां पर रहने के पूरे अधिकार थे जो देशहित के खिलाफ था. पूरे देश में तीन तलाक का कानून बना है अब वह जम्मू कश्मीर में भी लागू होगा।निर्माणाधीन योजनाओं को मिलेगी गति केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में कई निर्माणाधीन योजनाओं को भी गति मिलने की उम्मीद है. जम्मू में कई ऐसी योजनाएं है जो सालों से लटकी हैं. ये योजनाएं जम्मू को पर्यटन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है. अभी तक इन योजनाओं पर गंभीरता से काम नहीं हुआ, लेकिन अब उम्मीद है कि केंद्र सरकार के नेतृत्व में इन योजनाओं को शीघ्र पूरा किया जायेगा. बाहु फोर्ट केबल कार प्रोजेक्ट, तवी नदी में कृत्रिम झील, मुबारक मंडी जीर्णोद्धार, सुचेतगढ़ बार्डर टूरिज्म ऐसी योजनाएं हैं जो अगर जल्द पूरी हो जाये तो जम्मू में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिल सकता है. जम्मू कश्मीर में नहीं रहेगा सीएम व एमएलए का रूतबा कम होगा जम्मू कश्मीर में एमएलए, सीएम व कैबिनेट भी होगा. सीएम, मिनिस्टर व एमएलए का वह रुतबा व प्रोटोकाल, जो पूर्ण राज्य जम्मू कश्मीर में उन्हें प्राप्त था वह नहीं होगा. जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत केंद्र शासित जम्मू कश्मीर में राज्य विधानसभा होगी. घाटी में हालात पूरी तरह सामान्य होते ही केंद्र सरकार राज्य विधानसभा के गठन को अंतिम रूप देने की कार्ययोजना लागू करेगी. केंद्र, राज्य, केंद्र शासित राज्यों, अदालतों व अन्य संवैधानिक संस्थानों के प्रतिनिधियों व अधिकारियों की प्रतिष्ठा और प्रोटोकाल का जो वारंट ऑफ प्रेसिडेंस है, उसके मुताबिक केंद्र शासित जम्मू कश्मीर व केंद्र शासित लद्दाख के उपराज्यपाल को 11वें स्थान पर रखा गया है. केंद्र शासित जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री प्रोटोकाल वारंट के मुताबिक 15वें स्थान पर रहेंगे. प्रोटोकाल में किसी भी पूर्ण राज्य के राज्यपाल को चौथे नंबर पर रखा गया है. पहले पर राष्ट्रपति, दूसरे पर उपराष्ट्रपति और तीसरे स्थान पर प्रधानमंत्री हैं. ये होंगें उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री से ऊपर पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व उपप्रधानमंत्री, भारत के चीफ जस्टिस, लोकसभा स्पीकर, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, पूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री, नीति आयोग के उपाध्यक्ष, राज्यसभा व लोकसभा में विपक्ष के नेता, भारत रत्न से सम्मानित विशिष्ट नागरिक, राजदूत, सर्वोच्च न्यायालय के जज, केंद्रीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, मुख्य चुनाव अधिकारी, महालेखा नियंत्रक एवं परीक्षक भारत सरकार,पूर्ण राज्यों के उपमुख्यमंत्री, नीति आयोग के सदस्य, अटार्नी जनरल ऑफ इंडिया और कैबिनेट सचिव भी प्रोटोकाल के मामले में उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री से ऊपर होंगे. मुख्यमंत्री जब भी राज्य से बाहर होंगे तो उन्हें 25वें स्थान के मुताबिक प्रोटोकाल व सुविधाएं मिलेंगी. अफसरों के ट्रांसफर नहीं कर सकेंगे केंद्र शासित राज्य को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करने के लिए गत दिनों अभियोजन शाखा को एक अलग प्रशासनिक विंग के रूप में मान्यता दी गई है. पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति और तबादलों में राजनीतिक हस्तक्षेप पूरी तरह बंद हो जायेगा.क्योंकि यह फैसला उपराज्यपाल या फिर केंद्रीय गृह मंत्रालय ही अपने स्तर पर लेगा. फारेंसिंक साइंस लेबोरेटरी के दल-बल में भी आवश्यक सुधाके कदम उठाये गये हैं. पुलिस पर नहीं चलेगा हुक्म राज्य पुलिस और इससे संबंधित संस्थाएं पूरी तरह से उपराज्यपाल के जरिये केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन रहेंगी. इसके अलावा भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) और अखिल भारतीय सेवा कैडर की नौकरशाही भी उपराज्यपाल के अधीनस्थ होगी.