Shibu Soren : सामाजिक न्याय के प्रणेता थे शिबू सोरेन, प्यार और सम्मान से लोग ‘गुरुजी’ बुलाते थे

शिबू सोरेन का जीवन सामाजिक न्याय, आदिवासी अधिकारों और संघर्ष की मिसाल रहा। 'गुरुजी' के नाम से लोकप्रिय शिबू सोरेन झारखंड आंदोलन के स्तंभ रहे।

Shibu Soren : सामाजिक न्याय के प्रणेता थे शिबू सोरेन, प्यार और सम्मान से लोग ‘गुरुजी’ बुलाते थे
शिबू सोरेन (फाइल फोटो)।
  • 1973 में की थी झामुमो की स्थापना 

रांची। सामाजिक न्याय के प्रतीक और आदिवासी समाज की आवाज माने जाने वाले दिशोम गुरु शिबू सोरेन का जीवन संघर्ष, समर्पण और प्रेरणा की मिसाल है। प्यार और सम्मान से 'गुरुजी' कहे जाने वाले शिबू सोरेन ने न सिर्फ झारखंड की राजनीतिक पहचान गढ़ी, बल्कि देश में आदिवासी अधिकारों के लिए लंबा संघर्ष किया।
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जन्म और प्रारंभिक जीवन
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को एकीकृत बिहार हजारीबाग जिले (अब रामगढ़ जिले) के नेमरा गांव में हुआ था। एक साधारण किसान परिवार में जन्मे सोरेन ने बहुत कम उम्र में अपने पिता को जमींदारी प्रथा की बर्बरता का शिकार होते देखा, जिससे उनके भीतर अन्याय के खिलाफ आग जल उठी। उनके पिता की महाजनों ने मर्डर  कर दी। इससे आहत शिबू सोरेन अपनी पढ़ाई छोड़कर आदिवासियों को एकजुट करना शुरू किया। 
उन्हें शिक्षा के प्रति जागरूक करने लगे। महाजनों के खिलाफ धनकटनी आंदोलन शुरू किया। देखते ही देखते उन्होंने अलग झारखंड राज्य के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने समाज सुधारक, सामाजिक कार्यकर्ता से राजनेता तक का सफर तय किया। अलग झारखंड राज्य के लिए उन्होंने कई कुर्बानियां दीं। झारखंड के सभी दलों के लोग उनकी सम्मान करते थे।
दिशोम गुरु ने लोकसभा के चुनावों में जीत दर्ज की, तो उच्च सदन राज्यसभा के भी सदस्य बने। दो-दो बार सेंट्रल मिनिस्टर बनें। तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, न केंद्रीय मंत्री के रूप में वह कभी अपना कार्यकाल पूरा कर पाये, न मुख्यमंत्री के रूप में। हर बार उन्हें कार्यकाल के बीच में इस्तीफा देना पड़ा। कभी जेल जाने की वजह से, तो कभी उपचुनाव में हार की वजह से।‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन, महाजनी प्रथा से झारखंड अलग राज्य आंदोलन तक संघर्ष किया। वह झारखंड के सबसे बड़े और सर्वमान्य नेता बने रहे। अंत में जिंदगी की जंग को भी योद्धा की तरह लड़े। 
झारखंड आंदोलन और राजनीति में प्रवेश
70 के दशक में उन्होंने 'संथाल परगना टेनेंसी एक्ट' जैसे कानूनों की रक्षा और ज़मीन बचाओ आंदोलन के जरिए आदिवासियों को उनके अधिकार दिलाने का बीड़ा उठाया। 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की और आदिवासियों की आवाज संसद तक पहुंचायी।
लोकप्रियता और 'गुरुजी' की छवि
शिबू सोरेन की छवि एक संघर्षशील और जनप्रिय नेता की रही। वे तीन बार केंद्र सरकार में मंत्री रहे और झारखंड के मुख्यमंत्री भी बने। उन्हें उनके अनुयायी और आम जनता ‘गुरुजी’ कहकर संबोधित करते थे।
उपलब्धियां और विरासत
उनके प्रयासों के कारण झारखंड को 2000 में अलग राज्य का दर्जा मिला। उनका जीवन आदिवासी चेतना और संघर्ष की प्रेरणा है। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और भूमि अधिकार जैसे मुद्दों पर लगातार काम किया।
निधन
रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में 11 जनवरी 1944 जन्मे शिबू सोरेन का 81 वर्ष की उम्र में चार अगस्त 2025 को निधन हो गया। उनके निधन से झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरा देश शोक में डूबा है।