Revised Jharia Master Plan :मोदी कैबिनेट की बड़ी सौगात, झरिया संशोधित मास्टर प्लान के लिए 5940 करोड़ मंजूर

पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को नई दिल्ली में हुई सेंट्रल कैबिनेटकी बैठक में झारखंड के धनबाद जिले के काफी पुराने मुद्दे पर अपनी स्वीकृति दे दी है। सेंट्रल कैबिनेट ने झरिया भूमिगत आग (अंडरग्राउंड फायर) के लिए संशोधित मास्टर प्लान को लेकर 5940 करोड़ रुपये की स्वीकृति दे दी है।

Revised Jharia Master Plan :मोदी कैबिनेट की बड़ी सौगात, झरिया संशोधित मास्टर प्लान के लिए 5940 करोड़ मंजूर
100 ‍वर्षों से कोयला में लगी है आग।

नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को नई दिल्ली में हुई सेंट्रल कैबिनेटकी बैठक में झारखंड के धनबाद जिले के काफी पुराने मुद्दे पर अपनी स्वीकृति दे दी है। सेंट्रल कैबिनेट ने झरिया भूमिगत आग (अंडरग्राउंड फायर) के लिए संशोधित मास्टर प्लान को लेकर 5940 करोड़ रुपये की स्वीकृति दे दी है। कैबिनेट की बैठक में पारित प्रस्ताव की जानकारी सेंट्रल मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव ने दी।
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पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार 25 जून 2025 को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) ने इस फैसले को मंजूरी दी। जमीन के अंदर कोयले में लगी आग के कारण झरिया टाउन पिछले 100 वर्षों से अधिक समय से जल रहा है। अग्नि प्रभावित परिवारों को राहत देने के लिए वर्ष 2009 में झरिया मास्टर प्लान बना था। अब 2025 में संशोधित मास्टर प्लान को मंजूरी दी गयी है।सेंट्रल गवर्नमेंट ने अगस्त 2009 में धनबाद जिले में आग, भूस्खलन और पुनर्वास से निपटने के लिए झरिया मास्टर प्लान को मंजूरी दी थी। इस पर 7,112.11 करोड़ रुपये का अनुमानित निवेश किया गया था। इसकी कार्यान्वयन अवधि 10 वर्ष और कार्यान्वयन-पूर्व अवधि दो वर्ष रखी गयी थी। पिछली मास्टर प्लान योजना वर्ष 2021 में खत्म हो गयी थी।  
संशोधित मास्टर प्लान में प्रावधान
झरिया संशोधित मास्टर प्लान में आग से प्रभावित क्षेत्रों से पुनर्वासित किये जा रहे परिवारों के लिए आजीविका सृजन पर जोर दिया गया है। इसके तहत कौशल विकास कार्यक्रम चलाये जायेंगे। पुनर्वास वाले परिवारों की आर्थिक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए आय-सृजन के अवसर भी पैदा किये जायेंगे। प्रभावित परिवारों को एक-एक लाख रुपये का आजीविका अनुदान और संस्थागत ऋण के जरिये तीन लाख रुपये तक की कर्ज सहायता मुहैया करायी जायेगी। पुनर्वास स्थलों पर व्यापक बुनियादी ढांचे एवं सड़क, बिजली, पानी की आपूर्ति, सीवरेज, स्कूल, अस्पताल, कौशल विकास केंद्र, सामुदायिक हॉल जैसी जरूरी सुविधाएं भी विकसित की जायेंगी।
समर्पित झरिया वैकल्पिक आजीविका पुनर्वास कोष की स्थापना होगी। ऑफिसियल बयान में कहा गया है कि इन प्रावधानों को संशोधित झरिया मास्टर प्लान के कार्यान्वयन के लिए गठित समिति की सिफारिशों के अनुरूप लागू किया जायेगा, ताकि समग्र और मानवीय पुनर्वास दृष्टिकोण सुनिश्चित हो। आजीविका सहायता उपायों के क्रम में रोजगार से संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए एक समर्पित झरिया वैकल्पिक आजीविका पुनर्वास कोष की स्थापना की जायेगी. क्षेत्र में संचालित बहु-कौशल विकास संस्थानों के सहयोग से कौशल विकास पहल भी की जायेगी।
संशोधित झरिया मास्टर प्लान
झरिया कोयला क्षेत्र में आग, जमीन धंसने और प्रभावित परिवारों के पुनर्वास से संबंधित मसलों के समाधान के लिए संशोधित झरिया मास्टर प्लान को मंजूरी दी गयी है। संशोधित योजना के कार्यान्वयन के लिए कुल 5,940.47 करोड़ रुपए खर्च किये जायेंगे। इस योजना का चरणबद्ध दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करेगा कि आग एवं भू-स्खलन से निपटने और प्रभावित परिवारों का पुनर्वास सबसे संवेदनशील स्थलों से प्राथमिकता के आधार पर किया जायेगा। प्रभावित क्षेत्रों से दूसरी जगह बसाये जाने वाले परिवारों के लिए सतत आजीविका सृजन पर विशेष बल जायेगा। लक्षित कौशल विकास कार्यक्रम चलाये जायेंगे और पुनर्वास वाले परिवारों की आर्थिक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए आय-सृजन के अवसर भी पैदा किये जायेंगे।
2009 में बना था झरिया मास्टर प्लान
सेंट्रल गवर्नमेंट 12 अगस्त 2009 को 7112.11 करोड़ रुपये के बजट के साथ झरिया मास्टर प्लान को मंजूरी दी थी, ताकि अग्नि प्रभावित परिवारों के पुनर्वास सहित आग और भू-धंसान से जुड़ी समस्याओं का निबटारा किया जा सके। आग से निबटने की पूरी जिम्मेदारी बीसीसीएल की है। जबकि कोलकर्मियों को पुनर्वासित करने की जिम्मेदारी बीसीसीएल और गैर बीसीसीएल कर्मियों के पुनर्वासित करने की जिम्मेदारी झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकरण (जेआरडीए) की है। पिछली मास्टर प्लान योजना वर्ष 2021 में खत्म हो गयी।
100 से अधिक साल से जल रहा है झरिया शहर
जमीन के अंदर कोयले में लगी आग के कारण झरिया शहर पिछले 100 वर्षों से अधिक समय से जल रहा है। राष्ट्रीयकरण के समय  झरिया कोयलांचल के लगभग 17.32 स्क्वायर किलोमीटर में आग का दायरा फैला हुआ था। लेकिन यह करीब 1.53 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में सिमट चुका है। नेशनल रिमोट सेंटर (एनआरएससी) की ताजा रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।
राष्ट्रीयकरण से पहले मुनाफा कमाने के लिए होता था माइनिंग
झरिया कोलफील्ड में संचालित कोल माइसं में आग लगने की पहली घटना वर्ष 1916 में सामने आयी थी। उसके बाद से खदान में कोयले भंडार से ऊपर की सतह में कई बार आग लग चुकी है। राष्ट्रीयकरण होने से पहले ये खदानें निजी स्वामित्व में थीं और लाभ कमाने के मकसद से संचालित होती थीं। खनन के अवैज्ञानिक तरीके होने से इन खदानों में सुरक्षा, संरक्षण और पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा जाता था। इस वजह से झरिया में जमीनी सतह का गंभीर क्षरण, भूमि का धंसान, कोयला खदानों में आग लगना और अन्य सामाजिक-पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हुईं।
कोयले में आग के अध्ययन के लिए 1978 में बना था विशेषज्ञ दल
राष्ट्रीयकरण के बाद झरिया में कोयला में आग की समस्या के अध्ययन के लिए वर्ष 1978 में एक विशेषज्ञ दल बनाया गया था। इसकी जांच में पता चला कि बीसीसीएल की 41 कोयला खदानों में आग की 77 घटनाएं हुई थीं। केंद्र सरकार ने वर्ष 1996 में झरिया कोयला क्षेत्रों में आग और जमीन धंसने की समस्याओं की समीक्षा के लिए कोयला सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था।