झारखंड:धनबाद के एक्स एमपी वामपंथी थिंक टैंक AK Roy का लंबी बीमारी के बाद निधन, शोक में डूबा कोयलांचल

  • सेंट्रल हॉस्पीटल में ली अंतिम सांस
  • तीन-तीन बार एमएलए व एमपी रहे
  • कभी पेंशन नहीं  ली, बैंक आकउंट में कोई बैलेंश नहीं
धनबाद:कोयला राजधानी धनबाद के एक्स एमपी व वामपंथी थिंक टैंक कामरेड एके राय का रविवार की सुबह 11 बजकर 20 मिनट पर  बीसीसीएल की सेंट्रल हॉस्पीटल में निधन हो गया. 84 साल के एक्स एमपी काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. ज्यादा तबियत खराब होने के बाद एके राय को पिछले सप्ताह गंभीर हालत में इलाज के लिए सेंट्रल हॉस्पीटल में एडमिट कराया गया था. सेंट्ल हॉस्पीटल में राय दा ने आज अंतिम सांस ली. उनके निधन से कोयलांचल ही नहीं झारखंड में शोक की लहर है. सीएम रघुवर दास ने भी शोक जताया है. सीएम ने अपने शोक संदेश में कहा है कि एके राय के निधन से झारखंड को बड़ा नुकसान हुआ है. सीएम ने राजकीय सम्मान के साथ कामरेड राय की अंत्येष्टि कराने का निर्देश दिया है. एके राय तीन-तीन बार धनबाद के एमपी रह चुके हैं. Marxist Co-ordination Committee (एमसीसी) के संस्थापक व सीटू से संबद्ध बिहार कोलियरी कामगार यूनियन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. वामपंथी चिंतक Arun Kumar Roy को लोग AK ROY या राय दादा के नाम से ही जानते थे. धनबाद के मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल, एमएल अरुप चटर्जी, ढुल्लू महतो समेत विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं कई एमपी व एमएलए ने राय दा के निधन पर शोक जताया है. राय दा की ईमानदारी व सादगी एक्स एमपी एके राय कई दशक तक धनबाद टाउन के पुराना बाजार स्थित एमसीसी ऑ़फिस में ही रहते थे. खपरैल के इस ऑफिस एक राय खुद खाना बनाते थे और खाते थे. वह खुद ही ऑफिस की साफ-सफाई भी करते थे. जब तक वह शारीरिक रुप से स्वस्थ्य रहे ऐसा चलता रहा. जब राय दा का शरीर ने साथ देना छोड़ना शुरू किया तो उन्हें नुनूडीह निवासी मासस लीडर सबुर गोराई ने अपने घर में रखा. सबुर ही अपने घर में रखकर राय दा की देखभाल करते थे. राय दा पिछले कई सालों से सबुर गोराई के घर में ही थे. तबीयत खराब होने के कारण इस दौरान कई बार कामरेड राय को सेंट्रल हॉस्पीटल में एडमिट होना पड़ा. हॉस्पीटल में इलाज से ठीक हने पर फिर सबुर गोराई के घर चले जाते थे. इस बार तबीयत खराब होने पर राय दा ने हॉस्पीटल में ही अंतिम सांस ली. सिंदरी एफसीआइ में थे इंजिनियर एक राय पोलिटिक्स में आने से पहले सिंदरी खाद कारखाना (एफसीआइ) में केमिकल इंजीनियर थे. मैनेजमेंट ने वर्ष 1966-67 में खाद कारखाना में हड़ताल का समर्थन करने के कारण एक राय को डिसमिस कर दिया. खाद कारखाना से डिसमिस होने के बाद एके राय कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (एम) में शामिल होकर राजनीति शुरु की.वह वर्ष 1966-71 तक सीपीआइएम में रहे. एक राय ने सीपीएम से अलग होकर Marxist Co-ordination Committee ( मार्क्सवादी समन्वय समिति) नामक पोलिटिकल पार्टी बनाकर राजनीति शुरू की. एकीकृत बिहार में वह सिंदरी विधानसभा क्षेत्र चुनाव लड़कर जीते. वह तीन बार सिंदरी के एमएलए रहे. देश में आपातकाल लागू होने के बाद कामरेड राय को भी जेल जाना पड़ा. कामरेड राय धनबाद जेल से ही पहली बार वर्ष 1977 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में धनबाद लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और जीत गये. इस चुनाव में कामरेड राय को जनता पार्टी का समर्थन मिला था. इसके बाद कामरेड राय 1980 और 1989 में भी धनबाद से लोकसभा का चुनाव जीता. एक्स एमपी व एमएलए की कभी पेंशन नहीं ली एके राय अविवाहित थे. वह देश के संभवत: इकलौते एक्स एमपी रहे जिन्होंने कभी पेंशन नहीं ली. तीन-तीन बार के एमपी रहे एके राय की पेंशन राष्ट्रपति कोष में जाती रही. लोकसभा में 1989-91 के दौरान सांसदों के वेतन और पेंशन बढ़ाने का बिल आया तो कामरेड राय ने इसका विरोध किया. एके राय ने तर्क दिया था कि लोग सांसद को सेवा के लिए चुनते हैं, वे शासक नहीं है जो उन्हें वेतन या पेंशन दिया जाय. एके राय 1991 में लोकसभा का चुनाव राय हार गये. चुनाव हारने के बाद पेंशन लेने की बारी आई तो लिखकर दे दिया कि वे पेंशन नहीं लेंगे. उन्होंने लिखित दे दिया कि उनकी पेंशन राष्ट्रपति कोष में दे दी जाय. कामरेड राय की पेंशन राशि आज तक राष्ट्रपति कोष में जाती रही थी. तीन बार एमएलए और तीन बार एमपी होने के बावजूद राय दादा के पास कोई जमीन-जायदाद और बैंक बैलेंस नहीं थी. बिनोद बिहारी महतो व शिबू सोरेन के साथ झारखंड अलग राज्य आंदोलन का लीडरशीप किया कामरेड एके राय झारखंड अलग राज्य आंदोलन का लीडरशीप किया और इसके अगुवा भी रहे हैं. बिहार को बांटकर अलग झारखंड राज्य बनाने के आंदोलन के लिए ही वशर्ष 1972की चार फरवरी को धनबाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) का गठन हुआ. शिबू सोरेन और विनोद बिहारी महतो के साथ एके राय की जेएमएम के गठन में मुख्य भूमिका भूमिका थी. एके राय बाद में जेएमएमअध्यक्ष शिबू सोरेन के साथ कुछ वैचारिक मतभेद के कारण राजनीतिक सफर अलग हो गया. बावजूद राय झारखंड अलग राज्य आंदोलन को समर्थन देते रहे. बंगाल में जन्में राय ने धनबाद को कर्मभूमि बनाया एके राय का जन्म देश का बंटवारा से पहले ब्रिटिश राज में 15 जून 1935 को बंगाल के राजशाही जिले के सापुरा गांव में हुआ था. एक राय के पिता शिवेश चंद्र राय एडवोकेट थे. देश बंटवारा होने के बाद राय का परिवार बांग्लादेश से कोलकाता आ गया. एके राय ने वर्ष1959 में कोलकाता विश्वविद्यालय से केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद ने राय ने सिंदरी खाद कारखाना में नौकरी ज्वाइन की. एक राय इसके बाद धनबाद को ही अपनी कर्मभूमि बना ली. एके राय ने धनबाद में कोयला मजदूरों के साथ-साथ निजी फैक्ट्रियों में कार्यरात मजदूरों के लिए कई बड़ी आंदोलन की. एके राय नियमित रूप से देश की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विषयों पर कॉलम लिखते थे. राय का विचार और आलेखों को देश के हिंदी और अंग्रेजी के बड़े अखबारों में प्रमुखता से स्थान मिलता था. एके राय की पहचान देश में मार्क्सवादी चिंतक के रूप में थी.