मोहन भागवत का बड़ा बयान: " RSS केंद्र सरकार के फैसले नहीं लेता, सिर्फ सलाह देता है"
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ भाजपा या केंद्र सरकार के लिए फैसले नहीं करता, केवल मार्गदर्शन देता है। उन्होंने साफ कहा कि मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद नहीं।

- बीजेपी-RSS में मतभेद हो सकते हैं, मनभेद नहीं
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने केंद्र सरकार और भाजपा के साथ संघ के रिश्तों को लेकर गुरुवार को बड़ा बयान दिया है। उन्होंने साफ किया कि संघ सरकार या भाजपा के लिए फैसले नहीं लेता, बल्कि केवल सलाह और मार्गदर्शन देता है।
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आरएसएस चीफ मोहन भागवत गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 100 साल पूरे होने पर दिल्ली के विज्ञान भवन में चल रहे तीन दिवसीय संवाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। दिल्ली के विज्ञान भवन में कार्यक्रम का गुरुवार को समापन हो गया। संघ की 100 वर्ष की यात्रा: नये क्षितिज' विषय पर आयोजित कार्यक्रम के तीसरे और अंतिम दिन सवालों का जवाब देते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि संघ का काम समाज में एकजुटता और राष्ट्रहित की भावना को मजबूत करना है। उन्होंने कहा कि भाजपा एक राजनीतिक दल है और उसके निर्णय उसी के अनुसार लिए जाते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि भाजपा और संघ के बीच कभी मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद नहीं होते।
#WATCH दिल्ली: '75 साल के बाद क्या राजनीति से रिटायर हो जाना चाहिए' सवाल के जवाब में RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, "मैंने ये बात मोरोपंत जी के बयान का हवाला देते हुए उनके विचार रखे थे...मैंने ये नहीं कहा कि मैं रिटायर हो जाऊंगा या किसी और को रिटायर हो जाना चाहिए... हम जिंदगी में… pic.twitter.com/S44vQyCcRD
— ANI_HindiNews (@AHindinews) August 28, 2025
संघ प्रमुख ने कहा कि हमारा काम सरकार चलाना नहीं है। सरकार अपने फैसले खुद लेती है। संघ केवल मार्गदर्शन देता है और यह तभी करता है जब कोई हमसे सलाह मांगे। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा और संघ के रिश्ते पारिवारिक हैं। परिवार में कभी-कभी मतभेद होते हैं, लेकिन झगड़े या कटुता की गुंजाइश नहीं होती। हमारा लक्ष्य एक ही है—राष्ट्रहित और समाजहित। भागवत का यह बयान उस समय आया है जब लगातार यह सवाल उठाये जा रहे थे कि केंद्र सरकार और भाजपा की नीतियों में RSS की कितनी भूमिका होती है।
#WATCH दिल्ली: भाजपा और RSS के बीच संबंधों पर RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, "सिर्फ इस सरकार के साथ नहीं हर सरकार के साथ हमारा अच्छा समन्वय रहा है...कहीं कोई झगड़ा नहीं है..." pic.twitter.com/krBu9IqKOb
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कहीं कोई झगड़ा नहीं
मोहन भागवत ने कहा कि 'हमारा हर सरकार, राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों, दोनों के साथ अच्छा समन्वय है। लेकिन कुछ व्यवस्थाएं ऐसी भी हैं, जिनमें कुछ आंतरिक विरोधाभास हैं। कुल मिलाकर व्यवस्था वही है, जिसका आविष्कार अंग्रेजों ने शासन करने के लिए किया था। इसलिए, हमें कुछ नवाचार करने होंगे। फिर, हम चाहते हैं कि कुछ हो। भले ही कुर्सी पर बैठा व्यक्ति हमारे लिए पूरी तरह से समर्पित हो, उसे यह करना ही होगा और वह जानता है कि इसमें क्या बाधाएं हैं। वह ऐसा कर भी सकता है और नहीं भी। हमें उसे वह स्वतंत्रता देनी होगी। कहीं कोई झगड़ा नहीं है।
हम भाजपा के लिए फैसले नहीं लेते
उन्होंने कहा कि हमारे यहां मतभेद हो सकता है, लेकिन मन भेद नहीं है। क्या आरएसएस सब कुछ तय करता है? यह पूरी तरह से गलत है। ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता। मैं कई सालों से संघ चला रहा हूं और वे सरकार चला रहे हैं। इसलिए हम केवल सलाह दे सकते हैं, निर्णय नहीं ले सकते। अगर हम निर्णय ले रहे होते, तो क्या इसमें इतना समय लगता? हम निर्णय नहीं लेते।
#WATCH दिल्ली: भाजपा और RSS के बीच मतभेद के सवाल पर RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, "मतभेद के कोई मुद्दे नहीं होते। हमारे यहां मतभेद के विचार कुछ हो सकते हैं लेकिन मनभेद बिल्कुल नहीं है। एक दूसरे पर विश्वास है...क्या भाजपा सरकार में सब कुछ RSS तय करता है? ये पूर्णतः गलत बात है। ये… pic.twitter.com/fsqCEVOwe7
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मैंने कभी नहीं कहा 75 साल होने पर पद छोड़ देना चाहिए',
'संघ की 100 वर्ष की यात्रा: नये क्षितिज' विषय पर आयोजित कार्यक्रम के तीसरे और अंतिम दिन सवालों का जवाब देते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत ने ने साफ कहा कि उन्होंने कभी भी 75 साल की उम्र में रिटायर होने की बात नहीं कही थी। न उनके खुद के लिए न ही किसी और के लिए। उन्होंने सफाई दी कि मोरोपंत पिंगले की किताब का विमोचन करते हुए उन्होंने पिंगले के बयानों का हवाला दिया था जो उन्होंने 75 साल पूरे होने पर दिए थे। इसका दूसरा अर्थ निकाले जाने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, 'मैंने कभी नहीं कहा कि 75 होने पर मुझे या किसी और को रिटायर हो जाना चाहिए। संगठन तय करता है कि किसको कब क्या काम करना है। 80 वर्ष होने पर भी संगठन मुझे शाखा चलाने को कहेगा तो करना पड़ेगा।'
उल्लेखनीय है कि मोहन भागवत 11 सितंबर को 75 साल के हो रहे हैं। दरअसल उनके एक बयान का हवाला देते हुए 75 साल की उम्र को ही पीएम नरेन्द्र मोदी के लिए भी जोड़ा जा रहा था। वहीं भागवत ने यह तो स्वीकार किया कि कुछ मुद्दों पर विचार अलग हो सकते है लेकिन भाजपा के साथ मतभेद नहीं है। उनके अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर फैसला खुद भाजपा को लेना है। हालांकि भागवत चुटकी भी ली और कहा ''हम तय करते तो इतना समय लगता क्या ?'' फिर आगे कहा- टेक योर टाइम।(अपने समय से फैसला लीजिए)।
मतभेद, मनभेद में नहीं बदलता
मोहन भागवत ने सरकार या पार्टी के कामकाज में दखल देने के सवाल को भी सिरे से नकार दिया। उन्होंने कहा कि सरकार के साथ कुछ मुद्दों पर विचार अलग होगा स्वाभाविक प्रक्रिया है। उनके अनुसार ऐसे मतभेद हमारे आनुषंगिक संगठनों के बीच आपस में भी है। इसके लिए उन्होंने भारतीय मजदूर संघ और लघु उद्योग भारती का उदाहरण किया। उनके अनुसार सरकार और आनुषंगिक संगठनों के बीच ऐसे मतभेदों को आपसी विचार-विमर्श से दूर करने का प्रयास किया जाता है। कई मुद्दों को देखने के अलग-अलग नजरिये से के कारण मतभेद का आभास होता है लेकिन राष्ट्रहित को लेकर हमारा ध्येय एक है, इस कारण मतभेद, मनभेद में नहीं बदलता। संघ के लिए सभी राजनीतिक दल समान
भाजपा को छोड़कर अन्य राजनीतिक दलों से दूरी के सवाल पर मोहन भागवत ने कहा कि संघ के लिए सभी राजनीतिक दल समान है। जो भी राजनीतिक दल सहायता मांगता है, संघ उसे देने के लिए तैयार रहता है। उन्होंने कहा कि हम किसी को अपना पराया नहीं मानते हैं, किसी से परहेज नहीं है। इस सिलसिले में उन्होंने नागपुर में आयोजित एनएसयूआइ के कार्यक्रम में झगड़े के कारण मची भगदड़ का उदाहरण दिया। उस समय मोहन भागवत खुद नागपुर के जिला प्रचारक थे। नागपुर से कांग्रेस के तत्कालीन सांसद के अनुरोध पर स्वयंसेवकों ने एनएसयूआइ कार्यकर्ताओं के भोजन का प्रबंध किया था।
उन्होंने 1948 में आरएसएस मुख्यालय को जलाने के लिए मशाल लेकर आने वाले जयप्रकाश नारायण का उदाहरण दिया, जिन्होंने 1975 में देश में सकारात्मक परिवर्तन के लिए आरएसएस पर भरोसा जताया था। इसी तरह से पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के विजयादशमी के कार्यक्रम में आरएसएस मुख्यालय में आने का भी उदाहरण दिया। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि कहा कि यह सच नहीं है कि आरएसएस भाजपा के लिए फैसले लेता है। जेपी नारायण से लेकर प्रणब मुखर्जी तक, लोगों ने हमारे बारे में अपना नजरिया बदला है। इसलिए हमें किसी के नजरिए में बदलाव की संभावना से कभी इनकार नहीं करना चाहिए। अन्य राजनैतिक दलों के भी मन परिवर्तन हो सकते हैं। अच्छे काम के लिए जो मदद मांगते हैं उन्हें मदद मिलती है। और यदि हम मदद करने जाते हैं और जो मदद नहीं लेना चाहते उन्हें मदद नहीं मिलती।
भाषा, परंपरा, वेशभूषा और संस्कृति बनाये रखना जरूरी
RSS चीफ मोहन भागवत ने संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर समझाया है कि अपने घरों में अपनी भाषा, परंपरा, वेशभूषा और संस्कृति बनाये रखना जरूरी है। उन्होंने कहा कि तकनीक और आधुनिकता शिक्षा के विरोधी नहीं हैं। शिक्षा केवल जानकारी नहीं है; यह व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाने के बारे में है। नई शिक्षा नीति में पंचकोसीय शिक्षा के प्रावधान शामिल हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) सही दिशा में एक कदम है।
बेहतर समाज का निर्माण
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर आरएसएस द्वारा 100 वर्ष की संघ यात्रा - 'नये क्षितिज' के तहत अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने परिवार को एकजुट करने के तरीके भी बताए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एक-दूसरे के पर्व-त्योहारों में शामिल होकर सामाजिक एकता मजबूत होती है, साथ ही प्रेम और करुणा बढ़ती है।
कानूनी व्यवस्था पर भरोसा करना चाहिए
आरएसएस चीफ ने कहा कि विवाद या भड़काऊ स्थिति में कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए, बल्कि कानूनी व्यवस्था पर भरोसा करना चाहिए। हमारे देश की विविध संस्कृति में विभिन्न जाति, पंथ, और समुदाय के लोग रहते हैं. इन सबके बीच सौहार्द बनाये रखने और संबंध मजबूत करने के लिए एक-दूसरे के पर्व-त्योहारों में सम्मिलित होना बहुत जरूरी है।
दूसरों की खुशियों में शामिल होने से समाज में समरसता
उन्होंने समझाया कि ऐसा करने से सामाजिक दूरियां घटती हैं और विश्वास बढ़ता है। इसके साथ ही समाज में प्रेम और करुणा की भावना पनपती है। दूसरों की खुशियों में शामिल होने से समाज में समरसता आती है और आपसी भेद-भाव कम होते हैं।संघ प्रमुख ने कहा कि नाम और शब्दों के झगड़े में हम नहीं पड़ते। इन शब्दों के कारण हिंदू-मुस्लिम की भावना आ गयी है। हिंदू-मुस्लिम एकता की जरूरत नहीं है ये तो पहले से एक हैं। इनकी सिर्फ पूजा बदली है। लेकिन जो डर भर दिया है कि ये लोग रहेंगे तो क्या होगा, इतनी लड़ाई हुई, अत्याचार हुआ इतने कत्लेआम हुए, देश भी टूटा।
घुसपैठ को रोकना चाहिए
उन्होंने कहा कि डेमोग्राफी की चिंता है। ये बदलती है तो देश का बंटवारा होता है। चिंता इसलिए भी होती है कि जनसंख्या से ज्यादा इरादा क्या है। धर्म अपनी चॉइस है। लोभ-लालच से धर्म नहीं बदला जाना चाहिए, इसे रोकना है। भागवत ने कहा ये सच है कि हमारा सबका डीएनए एक है। लेकिन देश अलग-अलग होते हैं। यूरोप में भी तीन-चार देश ऐसे हैं जिनके डीएनए एक हैं। लेकिन डीएनए एक होने का मतलब ये नहीं कि घुसपैठ की जाए, नियम-कानून तोड़कर नहीं आना चाहिए। परमिशन लेकर ही आना चाहिए। घुसपैठ को रोकना चाहिए। इसके लिए सरकार कोशिश कर रही है।
मोहन भागत ने कहा कि शहरों और रास्तों के नाम बदलना वहां के लोगों की भावना के हिसाब से होना चाहिए। आक्रांताओं के नाम नहीं होने चाहिए। इसका मतलब ये नहीं कि मुसलमान का नाम नहीं होना चाहिए।अखंड भारत एक राजनीतिक विचार नहीं है। क्यों कि अखंड भारत जब था तब भी अलग अलग राजा थे लेकिन जनता किसी भी राज्य में जाकर नौकरी करता था और जीवनयापन करता था। अखंड भारत की भावना फिर से आ जायेगी तो सब सुखी रहेंगे और दोस्त बढ़ जायेंगे। अखंड भारत है ये समझकर हमको चलना चाहिए।
उन्होंने कहा कि संघ शांति की बात करता है, हम बुद्ध के देश हैं। लेकिन हथियार बढ़ाने का मतलब युद्ध करना नहीं है खुद की रक्षा करना भी है। क्यों कि दुनिया के सभी देश बुद्ध के देश नहीं हैं। भागवत ने कहा कि जनसंख्या नीतियों की अनुशंसा की जाती है। परिवारों में तीन बच्चे होने चाहिए लेकिन इससे अधिक नहीं। इससे संतुलन बनाए रखने और समुचित विकास सुनिश्चित करने में मदद मिलती है। अभी जन्म दर में गिरावट आ रही है और हिंदुओं में यह गिरावट तेजी से बढ़ रही है।
1925 में दशहरा के अवसर पर हुई थी RSS की स्थापना
RSS की स्थापना 1925 में दशहरा के अवसर पर हुई थी। इस साल RSS की स्थापना को 100 साल पूरे हो रहे हैं। इसको लेकर संघ की ओर से शताब्दी समारोह मनाया जा रहा है। RSS के 100 साल पूरे होने पर दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिवसीय संवाद कार्यक्रम के आखिरी दिन प्रश्नोत्तर सत्र हुआ। संघ प्रमुख मोहन भागवत कार्यक्रम में पहले व दूसरे दिन देश के भविष्य, संघ की दृष्टि और स्वयंसेवकों की भूमिका पर विचार रखा। तीसरे दिन उन्होंने प्रतिभागियों के सवालों के जवाब दिया। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण मीडिया और सोशल मीडिया पर हो रहा था। आगे ऐसी व्याख्यान श्रृंखलाएं बेंगलुरु, कोलकाता और मुंबई में भी आयोजित होंगी।
मंगलवार को कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, अनुप्रिया पटेल, भाजपा सांसद कंगना रनौत और बाबा रामदेव समेत अन्य हस्तियां शामिल हुईं थीं।
1300 लोगों को निमंत्रण
संघ ने विभिन्न क्षेत्रों से 17 कैटेगरी और 138 सब-कैटेगरी के आधार पर 1300 लोगों को निमंत्रण भेजा था। पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी, क्रिकेटर कपिल देव और ओलिंपिक गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा को निमंत्रण भेजा गया था। कई देशों के राजनयिक भी मौजूद रहें। कार्यक्रम में मुस्लिम, ईसाई, सिख समेत सभी धर्मों के प्रतिनिधि भी शामिल थे।