नई दिल्ली: हमेशा ही कांग्रेस के टॉप लीडरशीप विश्वसनीय व करीबी रहे थे अहमद पटेल

गांधी फैमिली के विश्वनीय व करीबी सीनीयर कांग्रेस लीडर व सेानिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल का निधन होने से पार्टी को बड़ा झटका लगा है। पिछले एक माह से कोरोना पॉजिटिव पटेल के निधन से पार्टी को गहरा झटका लगा है।

नई दिल्ली: हमेशा ही कांग्रेस के टॉप लीडरशीप विश्वसनीय व करीबी रहे थे अहमद पटेल
  • लोअर लेवल से शुरू की थी पॉलिटिक्स
  • कांग्रेस में इंट्री के नौ वर्ष बाद ही पटेल को गुजरात का प्रसिडेंट बनाया गया
  • 1977 में दोबारा आम चुनाव हुए तो पार्टी को हार का सामना करना पड़ा

नई दिल्लीं। गांधी फैमिली के विश्वनीय व करीबी सीनीयर कांग्रेस लीडर व सेानिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल का निधन होने से पार्टी को बड़ा झटका लगा है। पिछले एक माह से कोरोना पॉजिटिव पटेल के निधन से पार्टी को गहरा झटका लगा है। ऐसे समय में जब पार्टी के अंदर घमासान मचा हुआ है।अहमद पटेल पार्टी को ऐसी परेशानी से निकलाने के लिए हमेशा ही एक्टिव रोल में रहते थे। 


अहमद पटेल वर्ष 2001 से सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार रहे। वर्ष 2004 और 2009 में हुए चुनाव में पार्टी को मिली जीत का श्रेय भी पटेल को ही दिया जाता है। हमेशा ही कांग्रेस के टॉप लीडरशीप विश्वसनीय व करीबी रहे अहमद पटेल लोअर लेवल से पॉलिटिक्स शुरू की थी। पार्टी ही नहीं अन्य दलों के लीडरों से पटले के संबंध काफी बेहतर थे। 

पॉलिटिकल करियर की शुरुआत

अहमद पटेल के पॉलिटिकल करियर की शुरुआत वर्ष 1976 मेंगुजरात के भरूच में हुए म्यूनिशिपल कॉरपोरेशन के चुनाव से हुई थी। इसके बाद वो यहां की नगरपालिक के सभा‍पति बने। फिर उन्हों्ने कांग्रेस का हाथ थाम और धीरे-धीरे उनके पॉलिटिक्स को एक नया मुकाम मिलता चला गया। कांग्रेस में इंट्री के नौ वर्ष बाद ही कांग्रेस ने उन्हें् गुजरात में पार्टी प्रसिडेंट की जिम्मेलदारी सौंप दी थी। इंदिरा गांधी के शासन में लगे आपातकाल के बाद जब वर्ष 1977 में दोबारा आम चुनाव हुए तो पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। बावजूद पटेल की पॉलिटिकल जमीन इस कदर मजबूत थी कि उन्होंमने इस चुनाव में जीत हासिल की।  पटेल कांग्रेस के टिकट पर पहली बार लोकसभा पहुंचे। पटेल तीन बार (1977, 1980,1984) लोकसभा मेंबर और पांच बार (1993,1999, 2005, 2011, 2017) राज्य,सभा मेंबर रहे। वर्तमान में वो राज्य,सभा मेंबर थे।

इंदिरा गांधी के भी रहे करीबी

इंदिरा गांधी की मर्डर के बाद जब राजीव गांधी गवर्नमेंट में आये तो वर्ष 1985 में उन्होंंने पटेल को अपना संसदीय सचिव नियुक्त किया। उन्होंनने वर्ष 1987 में बतौर एमपी सरदार सरोवर प्रोजेक्ट की निगरानी के लिए बनाई गई नर्मदा मैनेजमेंट ऑथरिटी के गठन में अहम भूमिका निभाई थी। उन्हें़ वर्ष 1988 में जवाहर भवन ट्रस्ट का सचिव नियुक्त किया गया। नई दिल्ली। स्थित इस भवन का निर्माण पटेल की ही निगरानी में हुआ था। उनके पॉलिटिकल करियर के लिए ये एक मील का पत्थर भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्यों9कि ये प्रोजेक्ट काफी समय से ठंडे बस्तेि में था। पटेल के जिम्मे्दारी संभालते ही उन्हों1ने इसको महज एक साल के अंदर ही पूरा कर दिखाया। इसके बाद पार्टी के अंदर उनका पॉलिटिकल कद तो बढ़ा ही साथ ही कांग्रेस के टॉप ली़रशीप के साथ भी उनकी नजदीकी बढ़ती चली गई। जवाहर भवन को तकनीकी रूप से आगे करने का भी श्रेय पटेल को ही दिया जाता है। इस भवन को कांग्रेस सांसद और पार्टी सदस्य के पैसे से किया गया था।

कांग्रेस के प्रमुख रणनीतिकार

सोनिया गांधी ने वर्ष 2005 में अहमद पटेल को  प्रमुख रणनीतिकार नियुक्त किया था। उन्होंरने 14वीं और 15वीं लोकसभा के लिए यूपीए के गठन का सुझाव दिया था। इसके बाद उन्हों0ने इसके तहत बनने वाली सरकार के लिए जरूरी नंबर जुटाने में भी अहम भूमिका निभाई थी। बावजूद भी पटेल मीडिया की सुर्खियां बनने से दूर ही रहते थे। पर्दे के पीछे पार्टी को लेकर किये गये अपने कामों के जरिए वो कई बार संकटमोचन की भूमिका में भी दिखाई दिए। अहमद पटेल दूसरे ऐसे मुस्लिम नेता थे जो गुजरात से लोकसभा के लिए चुने गये थे। इससे पहले एहसान जाफरी को ये मुकाम हासिल हुआ था।

सोनिया ने दी पटेल को खास तवज्जो़

सोनिया गांधी ने न सिर्फ पटेल की पार्टी और टॉप ली़डरशीप के प्रति उनकी निष्ठाय को पहचाना बल्कि इसको पूरी तवज्जो। भी दी। पटेल ने राजीव गांधी के पॉलिटिकल एडवाइजर के अलावा सोनिया के संसदीय सचिव की भी जिम्मेकदारी बखूबी निभाई। सोनिया गांधी ने ही उन्हेंस पार्टी के ट्रेजरार की जिम्मेकदारी भी सौंपी। इससे पहले ये जिम्मेनदारी पार्टी के सीनीयर लीडर मोतीलाल वोरा के पास थी।

पॉलिटिकल  कद बढ़ता गया

कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद से ही अहमद पटेल का कद कांग्रेस में लगातार बढ़ता ही गया।  कई मोर्चों पर इसका पता भी साफतौर पर चला था। यूपीए गवर्नमेंट के दौरान (2004-2014) करीब एक दशक तक पार्टी के लिए वो संकटमोचक की भी भूमिका में दिखे। उन्होंकने इस भूमिका को काफी हद तक सफलतापूर्वक निभाया। महाराष्ट्रन में वर्ष 2019 में बनने वाली सरकार के गठन को लेकर जो अशांति शुरुआत में दिखाई दी थी उसको शांत करने में पेटल पार्टी लीडरों को एकजुट रखने में भी अहम जिम्मेादारी निभाई थी। पार्टी के अंदर छिड़े या मचे किसी भी तरह के घमासान को शांत करने या इसके बाबत मीडिया में पार्टी के विचार रखने के लिए कांग्रेस हमेशा ही उन्हेंा आगे करती थी।

जमीन से जुड़े लीडर थे अहमद पटेल 

अहमद पटेल जमीन से जुड़े नेता थे जो जानते थे कि आम आदमी से लेकर पार्टी मेंबर और टॉप लीडरशीप उनसे किस तरह की अपेक्षा रखता है। वह इसे  पूरा करने में भी पूरी तरह से सफल रहे। उन्होंने वर्ष 2005 में गुजरात के भरूच में राजीव गांधी विद्यतीकरण योजना की शुरुआत की। भरूच और अंक्लेटश्वर के बीच पुल का निर्माण करवाया। इससे दोनों शहरों के बीच आवाजाही तो सुलभ हुई ही साथ ही इनके कनेक्टेगड रास्तोंत पर लगने वाले जाम से भी निजात मिल सकी। पार्टी के अंदर भी सभी सदस्य पटेल के पॉलिटिकल  से बखूबी वाकिफ थे।