वाशिंगटन: TIME मैगजीन ने पीएम मोदी को फिर दी अपनी कवर पेज पर जगह, विवादित उपाधी दी

  • मैगजीन ने लिखा 2014 में लोगों का गुस्सा कैश करने के लिए मोदी ने सबका साथ-सबका विकास नारा दिया था
  • विपक्ष कमजोर, इसलिए मोदी को दूसरा कार्यकाल मिलने के आसार ज्यादा
वॉशिंगटन: अमेरिका की टाइम मैगजीन  ने 20 मई के अपने नये संस्करण में प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी को कवर पेज पर जगह दी है. हालांकि पत्रिका ने पीएम नरेंद्र मोदी को विवादित उपाधि दी है. टाइम मैगजीन के एशिया एडिशन ने लोकसभा चुनाव 2019 और पिछले पांच सालों में नरेंद्र मोदी सरकार के कामकाज पर लीड स्टोरी की है. स्टोरी का हेडिंग है “Can the World's Largest Democracy Endure Another Five Years of a Modi Government?” पीएम नरेंद्र मोदी के कामकाज पर सख्त आलोचनात्मक टिप्पणी करते हुए मैगजीन ने नेहरू के समाजवाद और भारत की मौजूदा सामाजिक परिस्थिति की तुलना की है. आतिश तासीर नाम के पत्रकार द्वारा लिखे गए इस आलेख में कहा गया है कि नरेंद्र मोदी ने हिन्दू और मुसलमानों के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ाने के लिए कोई इच्छा नहीं जताई.आलेख में कहा गया है कि नरेंद्र मोदी ने भारत के महान शख्सियतों पर राजनीतिक हमले किए जैसे कि नेहरू. वह कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं. उन्होंने कभी भी हिन्दू-मुसलमानों के बीच भाईचारे की भावना को मजबूत करने के लिए कोई इच्छाशक्ति नहीं दिखाई.नरेंद्र मोदी का सत्ता में आना इस बात को दिखाता है कि भारत में जिस उदार संस्कृति की चर्चा की कथित रूप से चर्चा की जाती थी वहां पर दरअसल धार्मिक राष्ट्रवाद, मुसलमानों के खिलाफ भावनाएं और जातिगत कट्टरता पनप रही थी. मैगजीन ने इस बार विवादास्पद सवाल किया है.मैगजीन ने पूछा है- क्या विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र फिर से मोदी को पांच साल का मौका देने को तैयार है? मैगजीन ने अपने कवर पेज पर 'इंडियाज डिवाइडर इन चीफ' शीर्षक से मोदी का फोटो लगाया है. टाइम ने इससे पहले 2014, 2015 और 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्व के 100 सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में शामिल किया था. 2012 फिर 2015 में अपने कवर पेज पर जगह दी थी. मैगजीन का मानना है कि 2014 में लोगों को आर्थिक सुधार के बड़े-बड़े सपने दिखाने वाले मोदी अब इस बारे में बात भी नहीं करना चाहते. अब उनका सारा जोर हर नाकामी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराकर लोगों के बीच राष्ट्रवाद की भावना का संचार करना है. भारत-पाक के बीच चल रहे तनाव का फायदा उठाने से भी वह नहीं चूक रहे हैं. मैगजीन का कहना है कि बेशक मोदी फिर से चुनाव जीतकर सरकार बना सकते हैं, लेकिन अब उनमें 2014 वाला करिश्मा नहीं है. तब वे मसीहा थे. लोगों की उम्मीदों के केंद्र में थे. एक तरफ उन्हें हिंदुओं का सबसे बड़ा प्रतिनिधि माना जाता था तो दूसरी तरफ लोग उनसे साउथ कोरिया जैसे विकास की उम्मीद कर रहे थे. इससे उलट अब वे सिर्फ एक राजनीतिज्ञ हैं, जो अपने तमाम वायदों को पूरा करने में नाकाम रहा है. स्टोरी की शुरुआत 1947 से करते हुए बताया गया है कि विभाजन के बाद तीन करोड़ से ज्यादा मुस्लिम भारत में रह गये थे.तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सेकुलरिज्म का रास्ता अपनाया. हिंदुओं के लिए कानून की पालना जहां अनिवार्य की गई, वहीं मुस्लिमों के मामले में शरियत को सर्वोपरि माना गया. मोदी के कार्यकाल से पहले तक यह व्यवस्था कायम रही, लेकिन 2014 में गुजरात जैसे सूबे के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों के गुस्से को पहचाना और 282 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया. देश पर लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस केवल 44 सीटों तक सिमट गयी. यहां तक कि उसे विपक्ष का नेता बनने लायक सीटें भी नहीं मिल सकीं. मैगजीन का कहना है कि यह जरूर है कि लोगों को एक बेहतर भारत की उम्मीद थी, लेकिन मोदी के कार्यकाल में अविश्वास का दौर शुरू हुआ. हिंदू-मुस्लिम के बीच दूरियां बढ़ी और सौहार्द कम हुआ. गाय के नाम पर एक वर्ग विशेष को निशाना बनाया गया और लोगों को मौत के घाट उतारा गया और कोई ठोस कदम उठाने के बजाए मुद्दे पर चुप्पी साध ली.अपनी नाकामियों के लिए अक्सर कांग्रेस के पुरोधाओं को निशाना बनाने वाले मोदी जनता की नब्ज को बेहतर तरीके से समझते हैं और शायद यही कारण है कि जब मोदी फंस जाते हैं तो खुद को गरीब का बेटा बताने लग जाते हैं.लेख की सबसे खास बात ये है कि इसमें बेरोजगारी, गाय, लिंचिंग, नोटबंदी, जीएसटी जैसे हर उस मुद्दे को छुआ गया है जो बीते 5 सालों में सरकार की कार्यप्रणाली से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हैं.