चैत्र नवरात्र 25 मार्च से,इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग,पांच रवि योग और गुरु पुष्य योग का दुर्लभ संयोग

  • कलश स्थापना 25 मार्च बुधवार को
  • नाव पर आ रही हैं माता, विदाई हाथी पर
नई दिल्ली। चैत्र नवरात्र पर इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग है। पांच रवि योग और गुरु पुष्य योग का दुर्लभ संयोग भी बन रहा है।चैत्र के माह में मनाये जानेवाले नवरात्रि के त्योहार को चैत्र नवरात्र कहतें है। चैत्र नवरात्र 25 मार्च से शुरू होगा और दो अप्रैल को समाप्त होगा। चैत्र नवरात्र की तिथियां प्रतिपदा- 25 मार्च बुधवार द्वितीया - 26 मार्च गुरुवार तृतीया- 27 मार्च शुक्रवार चतुर्थी - 28 मार्च शनिवार पंचमी- 29 मार्च रविवार षष्ठी - 30 मार्च सोमवार सप्तमी-31 मार्च मंगलवार अष्टमी-01 अप्रैल बुधवार नवमी- 02 अप्रैल गुरुवार दशमी-03 अप्रैल शुक्रवार नवरात्र में नौ दिनों तक परम दिव्य शक्ति की देवी दुर्गा का पूजन किया जाता है। देवी दुर्गा के सभी नो रूपों की पूजा होती है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री चैत्र नवरात्र के प्रत्येक दिन पूजा करनेवाले शक्ति के नौ रूप है। हिंदू कैलेंडर के पहले दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के दौरान हर साल मार्च-अप्रैल के महीने में नवरात्र पड़ता है। चैत्र नवरात्रि को वसंत नवरात्र भी कहा जाता है।यह भारत में वसंत के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। यह पर्व भगवान राम के जन्मदिन रामनवमी के साथ समाप्त होता है। चैत्र नवरात्रि का महत्व चैत्र नवरात्र के पहले तीन दिन ऊर्जा की देवी मां दुर्गा को समर्पित है। अगले तीन दिन मां लक्ष्मी को समर्पित हैं जो धन की देवी हैं। अंतिम तीन दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती को समर्पित है। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 5:57 बजे से शाम 4:02 बजे तक गुली काल मुहूर्त : सुबह 10:24 बजे से 11:56 बजे तक अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 11:31 बजे से 12:20 बजे तक सिद्धि और अति वृष्टि का योग नवरात्र में माता नाव पर सवार होकर आ रही हैं। नाव पर माता का आगमन भक्तों के लिए शुभ फलदायी है। माता की विदाई गज यानी हाथी पर हो रहा है। माता का हाथी से गमन होने से अतिवृष्टि का योग बन रहा है। इस वर्ष देश में अच्छी बारिश होने का योग है। नवरात्र में सर्वार्थ सिद्धि योग,पांच रवि योग, गुरु पुष्य योग का दुर्लभ संयोग बना है। कलश स्थापना का विशेष महत्व चैत्र नवरात्र में कलश स्थापना के साथ मां की आराधना मंगलकारी है। कलश में ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, नवग्रह, नदियों, सरोवर, सात द्वीप के साथ देवी-देवताओं का वास माना जाता है। नवरात्र पूजन के दौरान कलश स्थापना कर कलश की पूजा विधि-विधान से करना शुभ माना जाता है। पुराण में कहा गया है कि अगर शुक्रवार के दिन माता विदा होती हैं तो उनका वाहन हाथी होता है। हाथी वाहन होना भी इसी बात का सूचक है कि अच्छी वर्षा होगी। लेकिन कृषि के मामले में स्थिति अच्छी रहेगी। अच्छी उपज से किसान उत्साहित रहेंगे। नवसंवत् के मंत्री चंद्रमा और राजा बुध का होना भी यह बताता है कि आने वाले साल में अर्थव्यवस्था को संभलने का मौका मिलेगा।चैत्र नवरात्र के अवसर पर नौ दिनों तक माता की पूजा नियमित करें और हर दिन कवच, कीलक अर्गलास्तोत्र का पाठ करते हुए हो सके तो हर दिन एक कन्या भोजन करवायें।दशमी तिथि को कन्या को वस्त्र और दक्षिणा सहित विदा करें। हर दिन माता को पूजा करते समय एक लवंग जरूर चढ़ाएं। इसे प्रसाद रूप में ग्रहण करें। कन्या पूजन का विशेष महत्व नवरात्र के मौके पर कन्या पूजन का विशेष महत्व है। तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष तक की कन्या पूजन का विधान है। कन्याएं छल-कपट से दूर होने के साथ पवित्र मानी जाती है। जिनका पूजन करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।