बिहार: मुजफ्फरपुर में इंसेफेलाइटिस से अब तक 100 से ज्यादा बच्चे की मौत, सेंट्रल हेल्थ मिनिस्टर की मौजूदगी में भी दो मासूम ने दम तोड़ा

आक्रोशित लोगों ने हेल्थ मिनिस्टर को दिखाये काला झंडा पटना में भी जाप कार्यकर्ताओं ने हर्षवर्धन को काला झंडि दिखाया पटना: बिहार में एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) या इंसेफेलौपैथी से अब तक 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. सेंट्रल हेल्थ मिनिस्टर डॉ. हर्षवर्धन के निरीक्षण के दौरान रविवार को दो बच्चों की मौत हो गयी. रविवार को 15 और बच्चों की मौत हो गयी है. इसमें नौ बच्चों की मौत केवल मुजफ्फरपुर में हुई है.एईएस से मौतों के कारण अब मुजफ्फरपुर से पटना-दिल्ली तक हाहाकर मच गया है. सेंट्रल मिनिस्टर हर्षवर्धन रविवार को मुजफ्फरपुर पहुंच बीमारी की स्थिति का जायजा लिया. डा. हर्षवर्धन के साथ राज्यमंत्री अश्विनी चौबे, बिहार के हेल्थ मिनिस्टर मंगल पांडेय  व नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा भी थे.निरीक्षण के बाद वापस लौट रहे मिनिस्टर को आक्रोशित लोगों ने मिनिस्टर को काला झंडा झंडे दिखाया.पटना जन अधिकार पार्टी के कार्यकर्ताओं का आरोप था कि केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन 2014 में भी एईएस का जायजा लेने आए थे. उस वक्त भी उन्होंने कई वायदे किए थे, जो पूरे नहीं हुए. बच्चों की मौत कष्टदायी निरीक्षण व डॉक्टरों व अधिकारियों के साथ बैठक के बाद डॉ. हर्षवर्धन ने बच्चों की मौत को कष्टदायी बताया. इसके लिए 100 बेड के बच्चों की आइसीयू के निर्माण पर बल दिया. उन्होंने कहा कि बीते कुछ सालों के दौरान इस साल अधिक मामले सामने आए हैं. उन्होंने बीमार बच्चों से बात की, सभी बातों की बारीकी से जानकारी ली.एक डॉक्टर होने के नाते भी लोगों को देखा.डॉ. हर्षवर्धन ने बीमारी के विभिन्न कारणों की चर्चाकरते हुए इस पर लगातार शोध पर बल दिया. उन्होंने इसके लिए एक रिसर्च सेंटर की जरूरत पर बल देते कहा कि इसकी स्थापना के लिए भारत सरकार मदद करेगी. सेंट्रल हेल्थ मिनिस्टर ने माना कि अस्पताल की व्यवस्थाओं के अंतर्गत इस बीमारी के लिए बच्चों की आइसीयू की व्यवस्था पर्याप्त नहीं है. यहां सौ बेड का बच्चों का एक अलग आइसीयू होनी चाहिए. हर्षवर्धन ने मीडिया से बातचीत में कहा कि मस्तिष्क बुखार से बच्चों की मौत बेहद दुखद है. कुछ सालों में एईएस और जापानी इसेफलाइटिस से मरने वाले बच्चों की संख्या में काफी कमी आई थी. 2014 में इस बुखार से काफी बच्चे की जान गई थी. उसके बाद से इस तरह के कम केस आ रहे थे, लेकिन इस बार यह बुखार काफी तेजी से फैल रहा है. बच्चों की मौत सभी के लिए कष्टदायक है. एक डॉक्टर के नाते मैं यह महसूस कर सकता हूं कि बच्चों की मौत माता-पिता के लिए कितनी तकलीफदेह है. स्वास्थ्य अधिकारियों और डॉक्टरों के साथ बैठक में यह बात सामने आई है कि करीब 85% बच्चों को सुबह में इस बीमारी से जुड़ी समस्याएं शुरू होती हैं. ज्यादातर केस सुबह का ही है. ऐसे में जो बच्चे समय से अस्पताल पहुंचे, उनमें ज्यादातर को बचा लिया गया. देर से पहुंचने की वजह से भी काफी बच्चों की जान गई है. विषम परिस्थिति के बावजूद भी डॉक्टर यहां बच्चों की जान बचाने में जुटे हैं. स्वास्थ्य संगठन इस बीमारी पर रिसर्च करेंगे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि इस बीमारी को लेकर यहां लीची के बारे में बहोत बातें होती हैं। कुछ लोग हीट और ह्यूमिडिटी के बारे में भी बात करते हैं। इस बीमारी के जड़ का पता लगाने के लिए रिचर्च काफी जरूरी है। इस तरह की बिमारियों के लिए खासकर मुजफ्फरपुर में रिसर्च फैसिलिटी जरूरी है। देश के स्वास्थ्य संगठन कुछ वर्षों तक लगातार इस पर रिसर्च करे। 100 बेड का एक अलग आईसीयू बनेगा हर्षवर्धन कहा कि मैंने बिहार सरकार से एक निवेदन किया है कि एसकेएमसीएच परिसर में 100 बेड का एक अलग आईसीयू बनना चाहिए। इसके लिए बिहार स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे से भी चर्चा हुई है. एक साल के अंदर एक बिल्डिंग तैयार हो जाना चाहिए. हर्षवर्धन ने लोगों को चाय और काफी नहीं पीने की सलाह दी है. जब तक तापमान सामान्य नहीं होता लोग घर से बाहर न निकलें. तेज गर्मी दिमाग पर असर डालती है. बच्चों को किसी भी हालत में धूप में नहीं निकलने दें. बच्चों को पानी देते रहें और तबीयत बिगड़ने पर तुरंत अस्पताल लेकर पहुंचें.बिहार के नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा ने कहा है कि राज्य सरकार शुरू से ही इस बीमारी पर काम कर रही है. दवाइयों की कोई कमी नहीं है. उन्होंने माना कि वर्तमान में आपात स्थिति को देखते हुए बेड और आईसीयू की कमी है. एम्स के डायरेक्टर रंदीप गुलेरिया ने कहा है कि एम्स और केंद्र सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास के लिए मदद करने को तैयार हैं. उन्होंने बताया कि चमकी बुखार बिहार में सामान्य बात है और इस संबंध में कई शोध भी किए गये हैं. हमारा उद्देश्य मौतों पर कंट्रोल पाना है. बिहार के हेल्थ मिनिस्टर मंगल पांडेय इलाज की व्यवस्था को मुकम्मल मानते हैं. उनके अनुसार बीमार बच्चों के इलाज में कोई कमी नहीं जा रही है. उत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पताल श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (एसकेएमसीएच) में बीमार बच्चों की संख्या व मौत की संख्या बढ़ती जा रही है. अभी तक उत्तर बिहार में एईएस से 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है.एसकेएमसीएच में शनिवार को 16 और केजरीवाल अस्पताल में दो बच्चों की मौत हो गयी थी.. इन दोनों हॉस्पीटल में 64 बच्चों को एडमिट कराया गया है. एसकेएमसीएच में 38 और केजरीवाल अस्पताल में 26 बच्चों को एडमिट कराया गया है. मुजफ्फरपुर सदर अस्पताल भी में एक बच्चे का इलाज किया जा रहा है. पूर्वी चंपारण में शनिवार दो और वैशाली में एक बच्चे की मौत हो गयी. पूर्वी चंपारण, समस्तीपुर, सीतामढ़ी आदि उत्तर बिहार के कई अन्य जिलों में भी बीमारी का फैलाव हो रहा है. एईएस के इलाज के लिए मुकम्मल व्यवस्था के लिए सीएम नीतीश कुमार ने निर्देश दिया है. उन्होंने मृतकों के परिजनों को चार-चार लाख रुपये की सहायता देने की भी घोषणा की है. स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार एसकेएमसीएच शनिवार को मुजफ्फरपुर में एईएस वार्ड का जायजा लिया और इलाज के संबंध में पूरी जानकारी ली. प्रिसिपल व सुपरिटेंडेट व एचओडी के साथ रिव्यू मीटिंग की.पटना एम्स से डॉ. लोकेश तिवारी और डॉ. रामानुज के नेतृत्व में विशेष रूप से प्रशिक्षित छह नर्सों की टीम देर शाम एसकेएमसीएच पहुंची गयी है. यह टीम यहां इलाज के साथ-साथ स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित भी कर रही है. गृहराज्य मंत्री ने बच्चों का हाल जाना केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय एसकेएमसीएच पीआइसीयू में जाकर एईएस से पीडि़त बच्चों का हाल जाना. मिनिस्टर ने डॉक्टरों से बीमारी व चल रहे इलाज के संबंध में जानकारी ली.बीमारी की गंभीरता को देखते हुए अस्पताल अलर्ट मोड में हैं. वहां जरूरी सुविधाओं के साथ डॉक्टरों की रोस्टर ड्यूटी तय कर गई है. आशा, आंगनबाड़ी सेविका व एएनएम की जिम्मेदारी भी तय कर दी गई है. एईएस से बचाव के लिए आशा, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका एवं एएनएम को अपने पोषण क्षेत्र के बच्चों के स्वास्थ्य पर निगरानी रखनी है. उन्हें बच्चों को जल्द से जल्द प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भेजने में मदद करनी है. वे माता-पिता एवं परिजनों को इस बीमारी के लक्षणों व बचाव की भी जानकारी दे रहीं हैं. एईस के फैलाव को रोकने के लिए मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन की ओर से जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. अक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (AES) अक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी AES शरीर के मुख्य नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है.और वह भी खासतौर पर बच्चों में. इस बीमारी के लक्षणों की बात करें तो... शुरुआत तेज बुखार से होती है. फिर शरीर में ऐंठन महसूस होती है. इसके बाद शरीर के तंत्रिका संबंधी कार्यों में रुकावट आने लगती है. मानसिक भटकाव महसूस होता है. बच्चा बेहोश हो जाता है. दौरे पड़ने लगते हैं. घबराहट महसूस होती है. कुछ केस में तो पीड़ित व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है. अगर समय पर इलाज न मिले तो पीड़ित की मौत हो जाती है.